उद्यान में भ्रमण करते करते सहसा राजा विक्रमादित्य महाकवि कालिदास से बोले आप कितने प्रतिभाशाली है, मेधावी हैं पर भगवान ने आपका शरीर भी बुद्धि के अनुसार सुंदर क्यों नहीं बनाया? कुशल कालिदास राजा की गर्वोक्ति समझ गए। उस समय तो वे कुछ ने बोले। राजमहल में आकर उन्होंने दो पात्र मँगाए-एक मिट्टी का और एक सोने का। दोनों में जल भर दिया गया। कुछ देर बाद कालिदास ने पात्र का-विक्रमादित्य ने उत्तर दिया। तब मुसकराते हुए कालिदास बोले जिस प्रकार शीतलता पात्र के बाहरी आधार पर निर्भर नहीं है। उसी प्रकार प्रतिभा भी शरीर की आकृति पर निर्भर नहीं है। विद्वत्ता और महानता का संबंध शरीर से नहीं आत्मा से है।