विशेष लेख- - गायत्री परिवार की लघुतम से विराट् बनने की तैयारी युगसंधि महापुरश्चरण की प्रथम पूर्णाहुति

November 1994

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महाप्रयाण से पूर्व परमपूज्य गुरुदेव ने जितनी घोषणायें की वे मिशन के भावी स्वरूप कार्यक्रम और उपलब्धियों की भविष्यवाणी थीं 1. स्वयं के महाप्रयाण 2. ब्रह्म यज्ञों के विस्तार 3. ब्रह्म बीज के उत्पादन और ब्रह्मवर्चस् संपन्न (प्रचंड आत्मिक क्षमता संपन्न) सवा लक्ष महापुरुषों के उपार्जन और 4. सतयुग की वापसी तब कल्पनातीत बातें लगती थी पर आज इस मिशन से जुड़ा हर भावनाशील परिजन इक्कीसवीं सदी का भारतीय संस्कृति से सराबोर उज्ज्वल प्रभात स्पष्ट अपनी आँखों से देख रहा है।

ठन संभावनाओं को साकार बनाने के लिए परमपूज्य गुरुदेव ने 1989 में 24 करोड़ गायत्री महामंत्र के प्रतिदिन ज पके ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान युगसंधि महापुरश्चरण की घोषणा की थी। उस समय इस अनुष्ठान में दो लाख व्यक्ति सम्मिलित हुए थे। उन्हें प्रतिदिन ग्यारह मालाओं की श्रद्धांजलि चढ़ानी थी। इस तरह 24 करोड़ दैनिक गायत्री मंत्र जप से प्रारंभ हुआ। युग संधि महापुरश्चरण 2400 करोड़ गायत्री महामंत्र जप तक जा पहुँचा है। छोटा सा उदाहरण पटना अश्वमेध यज्ञ का है जहाँ 2 लाख तिहत्तर हजार लोगों ने दीक्षा ग्रहण कर इस अनुष्ठान की भागीदारी निश्चित की। इस तरह उत्पन्न ऊष्मा शक्ति का सहज ही अनुमान किया जा सकता है

एक पुरुषार्थ है ऊर्जा का उत्पादन दूसरा और उससे भी बड़ा पुरुषार्थ है उसका नियंत्रण नियोजन यह अपेक्षाकृत कठिन कार्य है। यह कार्य यज्ञों के माध्यम से संपन्न होना है। देव ऊर्जा को पचाने के लिए जप के साथ शताँश आहुति यज्ञ का शास्त्रों में विधान है। इतने बड़े अनुष्ठान की पूर्णाहुति एक बार में संभव नहीं थी। इसलिए परमपूज्य गुरुदेव की दिव्य दृष्टि ने उसे 1995 में प्रथम और 2000 में दूसरी पूर्णाहुति की घोषणा की थी उन्होंने कहा था दूसरी पूर्णाहुति में एक करोड़ व्यक्ति भाग लेंगे। तब संभव है शाँतिकुँज की इस बात पर जनसामान्य को विश्वास न हुआ हो पर जिन्होंने लखनऊ नागपुर पटना भिलाई अश्वमेध देखें होगे उन्हें अब कथनोँ पर पूर्ण विश्वास हो गया होगा, रत्तीभर संदेह नहीं रहा होगा।

प्रथम पूर्णाहुति वर्ष 1995 अब ठीक सामने आ पहुँचा। पिछले चार वर्षों में इस मिशन का मत्स्यावतार विस्तार हुआ है अतएव यदि उसमें 50 लाख व्यक्ति भाग ले तो इसे अतिरंजित न माना जाये। यह एक चुनौती और जोखिम से भरा कार्य है पर खतरों से खेलने के अभ्यस्तों की तरह अब इसे प्राण पण से संपन्न करना शांतिकुंज की नियति बन गया है। एक नवम्बर धनतेरस 14 को संपन्न होने वाली शोभा यात्रा और परमपूज्य गुरुदेव वंदनीया माताजी की जन्मभूमि आंवलखेड़ा (आगरा) में संपन्न हो रहा शक्ति कलश स्थापन समारोह इसी प्रथम पूर्णाहुति का शुभ मुहूर्त है। यही से इस प्रथम पूर्णाहुति की तैयारी सारे देश भर में व्यापक रूप से प्रारंभ हो जावेगी। एक वर्ष तक निरंतर प्रयाग कार्यक्रम की तिथियाँ 4,5,6,7 नवम्बर 15 कार्तिक पूर्णिमा रखी गई है।

आंवलखेड़ा जो कि पूज्य गुरुदेव की जन्मस्थली है का निर्धारण देश भर के करोड़ों परिजनों की भावनाओं से जुड़ा है। ग्रामीण अंचल जहाँ न पर्याप्त विद्युत व्यवस्थायें होगी और न ही आवासीय सुविधायें इस क्षेत्र के जल संसाधन बहुत कठिन हैं अन्य साधनों की दिक्कतें सहज समझ में आने वाली हैं पर जब पृथ्वी पर भावनाओं का संवेदना का संसार ही उतारा जाना हो तो फिर इन कठिनाइयोँ से डरकर पीछे लौटना भी संभव नहीं है। अब तो गायत्री परिवार के मरजीवडों के लिए कठिनाइयोँ से जूझकर सफलता का वरण एक आनंददायी अभिव्यक्ति बन गया है सो पूरा मिशन उत्ताल तरंगों से आप्लावित है। यह अपने समय का अभूतपूर्व आयोजन होगा जिससे सामाजिक अव्यवस्थाओं की चूले हिलेंगी राजनीतिक दिशा हीनता कुछ सोचने को विवश होगी प्रशासनिक भ्रष्टाचार को सेवा साधना में बदलने को विवश होना पड़ेगा। मनुष्य में देवत्व के द्रुत विकास का यह दीपमालिका पर्व जो देखेगा वह अपने आप को धन्य अनुभव करेगा जो सुनेगा वह सन् दो हजार के लिए तिल तिल प्रतीक्षा में समय गुजारेगा।

ब्रह्मतेज का महानता का उपार्जन राष्ट्र के चरणों में सवालक्ष राष्ट्र संतों का महापुरुषों का प्रतिभा परिष्कार और समर्पण ही इस प्रथम पूर्णाहुति का मूलभूत प्रयोजन है। आज दिखाई देने वाले विशालकाय भवनों की भव्यता का शुभारंभ उस दिन होता है जिस दिन बढ़िया वाली मिट्टी कूट छान और गूँथ कर ईंटें पाथी जाती है। दूसरा चरण वह होता है जिसमें वह भट्टों में पकाई जाती हैं तीसरा चरण वह होता है जब कुशल शिल्पी पाचीरें खड़ी करते हैं। यह सब एक बार में न दिखने वाली प्रक्रियायें हैं जिन पर लोग अविश्वास भी कर सकते हैं पर गगन चूमते प्रासाद देखकर उस कारीगरी का सहज बोध हो जाता है। महाकाल भी यही तीन चरणों वाला विश्वकर्मा अभियान छेड़े हुए है जिसके समूर्त होने में अब बहुत अधिक समय नहीं है।

1979 से अब तक एक एक भावनाशील परिजन को जोड़कर मिट्टी की ईंटें पाथने का गुरुतर कार्य ऋषियुग्म द्वारा पूरा हुआ युगसंधि पुरश्चरण उस भट्टे को पकाने में लगा है सतयुग का भवन निर्माण कार्य अब इस प्रथम पूर्णाहुति से प्रारंभ होने जा रहा है। जिसमें बोधिसत्व जैसे अहिंसावादी गाँधी जी जैसे सत्यनिष्ठ सूरदास जैसे अग्नि दीक्षा में प्रविष्ट साधक ईश्वर चंद विद्यासागर जैसे अपरिग्रही महर्षि दयानंद जैसे ब्रह्मचारी इन्द्रिय निग्रही दधिची जैसे साधक व्यास जैसे विद्वान निवेदिता जैसी सेवानिष्ठ आत्मायें जन्मेगी विकसित होगी कार्यक्षेत्र में पदार्पण करेगी। भगवती गायत्री के सविता तेज ने इस देश के स्वामी विवेकानंद जैसे संसार को आलोक देने वाले सरदार बल्लभ भाई जैसे लौह पुरुष प्रखर व्यक्तित्व भगवान् शंकराचार्य जैसे निरंतर गतिशील रहना भारतीय धर्म आध्यात्म और हजारी किसान जैसे सृजन चेतना द्वारा इस देश और विश्व को सुरक्षित करने वाले महापुरुषों के उपार्जन की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी है। भौतिक जगत में इस देश और विश्व को सुरक्षित करने वाले महापुरुषों के उपार्जन की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी है। भौतिक जगत में इस देश में आचार्य द्रोण जैसे सेनापति वराहमिहिर और आर्यभट्ट जैसे वैज्ञानिक नागार्जुन जैसे विश्व विख्यात सुशिक्षित व संस्कारवान भैषजज्ञों के इस देश में अवतरण की पृष्ठभूमि पक चुकी है यह सब अनायास ही नहीं होने वाला महाकाल प्रकृति प्लाज्मा में यह चुपचाप पकाने में लगा है। विशालकाय अट्टालिकाओं के रूप में उसके अभिव्यक्त होने में भी अब अधिक समय नहीं है। युग शिल्पियों को अब उसी में जुटना है।प्रथम पूर्णाहुति समारोह इसी दिशा में मील का एक पत्थर सिद्ध होने जा रहा है।

इस कार्यक्रम के लिए परमपूज्य गुरुदेव की जन्मभूमि के चयन के पीछे कुछ आधार भूत तथ्य हैं। गंगा वाराणसी पटना और कलकत्ता में वही है बड़ा विराट रूप ले चुकी है पर गोमुख की पवित्रता और सिद्धि के कारण ही यह संभव हो पाया। इसी तरह महानता का उपार्जन जिस ब्रह्म बीज से होने जा रहा है वह गोमुख आंवलखेड़ा ही है जिसने विराट् पुरुष को अपनी कोख से जन्म दिया अब यह कोख सारे भारत वर्ष की कोख बनेगा पहले इसने एक कुँडलिनी शक्ति का शक्तिमान पुत्र पैदा किया अब समूचे राष्ट्र की कुँडलिनी महामाया का विस्तार यहीं से होगा। 1995 में हो रहे इस आयोजन की कई मौलिक विशेषतायें होगी 1. दो यज्ञ स्थल समानाँतर विनिर्मित होगे एक का संचालन पुरुषों के लिए पुरुष आचार्यगण करेंगे दूसरों का विदुषी ब्रह्मवादिनी महिलाएँ करेगी उसका समग्र संचालन भी महिलाएँ ही करेगी। यह उन लोगों के लिए चुनौती होगी जिन्होंने देश के नारी जीवन को इस तरह दबाकर रखा कि उन्हें कभी महापुरुषों को जन्म देने के योग्य नहीं रखा उन्हें आत्महीनता के भँवर में एकाकी डूब जाने के लिए विवश किया गया। यह कुचक्र अब टूट कर रहेगा 2. पहली बार प्रजातंत्र की रक्षा और पवित्रता का पाठ पढ़ाया जायेगा। देश भर के उन सभी भावनाशील राजनीतिज्ञों को वे चाहे जिस पार्टी के हो पर जिनके हृदय अभी भी राष्ट्रीय चिंतन से विरत नहीं हुए अभी भी जिनकी कथनी करनी में अंतर नहीं हैं उन्हें बुलाकर समझाया जावेगा जन जीवन से खिलवाड़ करते बहुत समय हो गया अब आदर्शों सिद्धांतों के लिए भी कुछ स्थान मिलना चाहिए। 3. पहली बार अपने प्रवासी भारतीयों को एकजुट करके उन्हें पश्चिमी देशों तक भारतीय संस्कृति दृष्टि से जर्जर इस देश के उपकार में पुनर्निर्माण में योगदान के लिए सहमत किया जावेगा। 4. पहली बार मीडिया को मोड़कर देश की खाली कोने तक पहुँचाने को अभ्यर्थना की जायेगी। वंदनीया माताजी को श्रद्धाँजलि स्वरूप सेवा के लिए प्रतिभा संपन्न सवालाख हीरकों (पूर्ण समयदानी युगशिल्पियों) की माला भेंट की जायेंगी। यह तो उद्देश्य है उसके लिए की जाने वाली तैयारियाँ व्यवस्थाएँ इतनी दर्शनीय होगी जिन्हें लोग लंबे समय तक भूल नहीं पायेंगे।

निस्संदेह यह आयोजन भारी साधन माँगेगा अभूतपूर्व श्रमशक्ति अपेक्षित होगी, नारी जाति को पहली बार स्पर्द्धा में उतरना पड़ेगा। अभी से अभ्यास करने पड़ेंगे। बड़ी संख्या में मूर्धन्यों को समय और प्रतिभा देनी पड़ेगी। साहित्य लेखन चित्रकला, निर्माण कार्य गायक वादक और प्रत्येक क्षेत्र की विभूतियों को शाँतिकुँज के बैनर के नीचे संगठित होना पड़ेगा तब कहीं यह भव्य पूर्णाहुति कार्यक्रम सफलतापूर्वक संपन्न होगा। हम अपनी तरह से अपने परिजनों तक जाकर उन्हें जिम्मेदारियाँ तो सौंपेंगे पर इस मिशन के उस नींव के पत्थरों को उठकर स्वयं ऊपर आना पड़ेगा जिन्होंने अब चुपचाप अपने क्षेत्र में कार्य किया पर उनकी प्रतिभा और नेतृत्व का लाभ मिशन को नहीं मिल पाया। अतएव इन विनम्र अनुरोध है कि इस गोवर्धन पर्वत उठाने जैसे भागीरथ कार्य में अपनी तरह सेवा का संकल्प लें।

कौन परिजन किस तरह सहायता कर सकते हैं सेवाएँ दे सकते हैं उस सब के लिए शाँतिकुँज में एक स्वतंत्र प्रभाव बनाया गया है सभी वरिष्ठ परिजन उसके लिए अभी से पत्राचार प्रारंभ करे ताकि परमपूज्य गुरुदेव शक्तिस्वरूपा माताजी के संकल्पों को पूरा करने की प्रथम श्रद्धाँजलि उतने ही गौरवपूर्ण ढंग से प्रस्तुत की जा सकें।


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