पुत्र गुरुकुल से लौटा। उसे अहंकार था कि उसने सभी विद्याएँ सीखली सब पढ़ लिया। पिता बोला बेटा अभी जीवन के अनुभवों से भी बहुत कुछ सीखना होगा। अभी विद्या कहाँ पूरी हुई? ज्ञान भी अधूरा है। पुत्र मानने को तैयार न होता था।
पिता ने उसे पका फल दिया। बेटे को कहा इसे काटो। फल काटा वो अनेकों बीज निकल पड़े। पिता ने पूछा क्या तुम बता सकते हो कि वृक्ष कहाँ से उगता है। पुत्र बोला बीज में से। तो फिर बीज को काटो। बीज काटा गया। किंतु उसमें कोई वृक्ष नहीं दिखाई देता फिर कहाँ से उगता है। अब पुत्र निरुत्तर रह गया। पिता ने कहा बस बेटा यही अनुभव से सीखने की बात है। सब कुछ महाशून्य में से आ रहा है। और उसमें ही विलीन होता चला जा रहा है।