अत्यधिक मोह न पालें अन्यथा .....।

November 1994

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आसक्ति एवं अतृप्त कामनायें मनुष्य को मृत्यु के बाद भी चुपाती रहती है और प्रेत अथवा पितर योनि में सूक्ष्म रूप में रहते हुए भी वे प्रियजनों या वस्तुओं के पास बराबर चक्कर काटती रहती है। उनकी आसक्ति प्रियजनों के हित के भी निमित्त होती है व कभी कभी उन्हीं की आध्यात्मिक प्रगति के अवरोध का कारण भी बनती है।

घटना इंग्लैंड के ब्राइषम नामक एक कस्बे की है। एक रात जॉन स्नो नामक एक बैंक कर्मचारी अपने कमरे में अकेला से रहा था। पत्नी बच्चे किसी संबंधी के यहाँ गये हुए थे। ठीक आधी रात को उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई जगा रहा हो। आँखें खोली तो समाने सचमुच ही कोई जगा रहा हो। आँखें खोली तो सामने सचमुच ही कोई खड़ा दिखाई पड़ा। बेड लाइट की रोशनी में उसने गौर से देखा तो वहाँ उसके दिवंगत पिता खड़े थे, जिनकी मृत्यु को करीब दो वर्ष बीत चुके थे। मृत बाप को सामने खड़ा देख डर के मारे वह चीख पड़ा। भय से उसकी घिग्घी बँध गयी किंतु इसी बीच आकृति जॉन के कुछ और करीब आ गयी तथा भय निवारण करते हुए कहा-”जॉन। मेरे बेटे डरो मत, मैं तुम्हारा पिता हूँ। मैं तुम्हें कोई हानि पहुँचने यहाँ नहीं आया हूँ वरन् एक महत्वपूर्ण संदेश देने आया हूँ। तुम जिस बस से कल यात्रा मत करना।” इतना कह कर प्रेतात्मा अदृश्य हो गयी। दूसरे दिन शाम को जॉन स्नो को पता चला कि जिस बस से यात्रा नहीं करने की चेतावनी उसके मृत पिता ने रात को दी थी, वह सचमुच ही दुर्घटनाग्रस्त हो गयी और उसमें सवार सभी यात्री मारे गये। पितर स्तर पर पिता की आत्मा के संदेश ने उसकी जान बचा दी।

मूर्धन्य वैज्ञानिकों तथा परामनोविज्ञानियों द्वारा भूत मरणोत्तर जीवन संबंधी अध्ययन अनुसंधानों से अब जो नये तथ्य सामने आये है, उनसे यह बात स्पष्ट हो गयी है कि जिन व्यक्तियों को मरते समय अत्यधिक आवेश रहा है अथवा जो अत्यधिक आवेश रहा है अथवा जो अत्यधिक मोहग्रस्त या कामना ग्रस्त रहे है उन्होंने उसी मनः स्थिति का परिचय अपने सूक्ष्म कलेवर में भी दिया जाता है। जैसे परिचय, धन व मकान , वस्तु आदि से अत्यधिक प्यार करने वाले मरते समय उन वस्तुओं मोह प्रकट करते हुए विलग हुए तो उनकी प्रेतात्मा उन्हीं स्थानों के ईद-गिर्द मंडराती रहती है। जमीन में गड़े हुए धन की उन्होंने चौकीदारी की है। और यदि किसी ने उसे निकाल भोगा है तो उसको तरह-तरह से परेशान किया और वास दिया है। वस्तुओं का मोह उन्हें मरणोत्तर जीवन में कष्टकारक पहरेदारी के लिए विवश कर कैदी जैसी बनाये रखता है और उन वस्तुओं से मोह करने वाले अन्य देहधारी लोगों को भी इन अशरीरी प्रेमियों का कोप भाजन बनाना पड़ता है।

प्राण चेतना अपनी संबंधित वस्तु के साथ चिरकाल तक जुड़ी रहती है और उनका मोह उन पर छाया रहता है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण मिश्र के पिरामिडों एवं कब्रों की उखाड़-पछाड़ करने वालो पर बीती घटनाओं से मिलती है।अध्यात्म विज्ञान के अनुसार प्राणी के अन्यत्र जन्म लेने या लोक को चले जाने पर भी उसकी प्राण विद्युत उन वस्तुओं का घेरा डाल कर चिरकाल तक अपना आधिपत्य जमाये रहती है जिनके साथ उसका मोह अहंकार जुड़ा हो। भूत-प्रेतों का अस्तित्व प्रायः इसी स्तर का होता है। जीव के जन्म ले-लेने के बाद भी लंबे समय तक उसकी छाया का प्रेत में बने रहना संभव है।

अठारहवीं शताब्दी में अफ्रीका के बहुत बड़े भाग पर योरोपीय लोगों का अधिकार था। उन देशों के पुरातत्त्ववेत्ता इस बात के बहुत उत्सुक थे कि मिश्र के पिरामिडों तथा दूसरे मृतक स्मारकों के पीछे छिपे रहस्यों पर से पर्दा उठाया जाय। इसलिए उन्होंने इस संदर्भ में उठाया जाया। इसलिए उन्होंने इस संदर्भ में काफी खोजबीन की-और कितनी ही पुरानी कब्रों को उखाड़ा।

इस कार्य में शोधकर्ताओं का एक उत्साही दल सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक डा. व्रेस्टेड के नेतृत्व में काम कर रहा था। उनके सहायक हार्वर्ड कार्टर, आर्थर बीगल, लार्ड कार्नवर्ग आदि कितने ही मूर्धन्य पुरातत्व वेत्ता अपने-अपने ढंग से काम कर रहे थे। इन लोगों ने बहुत धन खर्च करके प्राचीनकाल के अवशेषों को प्राप्त किया था और उस आधार पर प्राचीनकाल की परिस्थितियों तथा मान्यताओं का पता लगाया।

इसी संदर्भ में सन् 1922 में ‘तूतन खामक ‘ नामक स्थान से एक ऐसे वृद्ध फकीर की कब्र खोदी गयी जिसके संबंध में कितनी ही चमत्कारी दंतकथायें प्रचलित थी। खुदाई का एक उद्देश्य उस क्षेत्र में फैले हुए अंधविश्वासों का निरस्त कब्र खोदली गयी और उसके अवशेष भी प्राप्त कर लिये गये। अब उनका रासायनिक विश्लेषण होना आरंभ हुआ। इस बीच एक से एक बढ़कर आश्चर्यजनक और भयानक घटनाएं घटित होना आरंभ हो गयी। डा. व्रेस्टेड अपनी प्रयोगशाला में अवशेषों, लकड़ी के टुकड़े का विश्लेषण करने के लिए एक बर्तन में कुछ रासायनिक पदार्थों के साथ उबाल कहे थे कि इतना भयंकर विस्फोट हुआ कि प्रयोगशाला की छत काला नाग वैज्ञानिक कार्टर के घर जा पहुंचा। वे स्वयं तो किसी प्रकार बच गये , पर उनकी पत्नी को उसने डस लिया ‘ और वह देखते-देखते मर गयी। एक महीना बीता होगा कि वैज्ञानिक कार्नवर्ग को एक नन्हे मच्छर ने काटा और दो दिन के भीतर ही वे मर गये। मच्छर काटने का स्थान बिलकुल सांप के काटने जैसी स्थिति का बन गया था। इतना ही नहीं कार्नवर्ग का हट्टा-कट्टा बेटा भी उन्हीं दिनों दो दिन की मामूली बीमारी से चल बसा।

अनुसंधान के प्रमुख वैज्ञानिक व्रेस्टेड कब्र खुदवाने के दो सप्ताह के भीतर ही मर गये। अपनी पत्नी को गंवाकर भी कार्टर साहसपूर्वक अंधविश्वासों का खंडन करते रहते थे और शोध कार्य को शिथिल नहीं पड़ने दिया था, पर न जाने क्या कुयोग उत्पन्न हुआ कि वे एक छोटी सी तलैया में जा फँसे और उस कीचड़ में ही फंसे हुए असहाय स्थिति में मरे पाये गये। इस प्रकार अनुसंधानकर्ताओं का वह पूरा दल ही समाप्त हो गया।

इसी तरह अमेरिका और ब्रिटेन के कुछ वरिष्ठ वैज्ञानिक मिलकर मिश्र की पुरातात्त्विक महत्व की समाधियों की खोज कर रहे थे।उस खोज के पीछे मात्र विषयक रहस्यों का जानना ही नहीं था, पर उनमें दबी हुई विपुल स्वर्ण संपदा एवं रत्न राशि से लाभान्वित होना भी था। इसके अतिरिक्त एक और भी बात थी-उन किंवदंतियों की वास्तविकता जानना जिनमें कहा जाता था कि खाली की रक्षा प्रेतात्माएँ करती है जो उन्हीं छेड़ेगा, वह खतरा उठायेगा। एक समाधि पर तो स्पष्ट शब्दों में चेतावनी भरा हुआ शिला लेख लगा था जिस पर अंकित था- जो फराऊनी कब्रों को छेड़छाड़ कर मृतात्माओं की शाँति भंग करेगा उसे अकाल मृत्यु खा जायेगी।

कब्रों की खुदाई का काम सबसे पहले लार्ड कानर्विन नामक इंग्लैंड के एक धनपति ने अपने हाथ में लिया था। उनका परिवार भी उस कार्य में दिलचस्पी ले रहा था और सहयोग दे रहा था। इसका भयंकर परिणाम सामने आया। एक-एक करके उस अभियान से संबंधित 22 व्यक्ति कुछ ही समय के अंतराल से काल के गाल में बड़े विचित्र घटना क्रम के साथ चले गये। लार्डवेस्टवरी अनायास ही छत पर से कूद पड़े और मर गये। उनका बेटा जा खुदाई का इंचार्ज था, रात को अच्छा खासा सोया था, पर सुबह मरा हुआ पड़ा मिला। डॉ आर्चवाल्ड डगलस रीड नामक एक वैज्ञानिक ममी का एक्सरे कर रहे थे कि एकाएक उनका हार्टफेल हो गया। आर्थर बाइगाल को मामूली बुखार ही खा गया। आर्वे हर्बर्टन सहसा पगला गये और आत्महत्या कर बैठे। देखते देखते सारा शोधकर्मी दल अकाल मृत्यु का ग्रास बन गया।

यह प्रख्यात था कि नील नदी की घाटी में अवस्थित तूतन खामन की समाधि सबसे अधिक रहस्यमय साथ ही सर्वाधिक संपत्ति से भरी पूरी है। इसका लोभ खोजी लोग छोड़ नहीं पा रहे थे। सो इतनी मौतें देखते देखते हो जाने के कारण सारे इंग्लैंड में आतंक छाया हुआ था, और प्रेतात्माओं की बात का मखौल उड़ाने वाले लोग भी आश्चर्यचकित होकर इस प्रकार मृत्यु में होने की बात को संयोग मात्र नहीं कह पा रहे थे वे भी इच्छा न रहते हुए भी उन खाली के आगे सिर झुका रहे थे जिनमें कब्रों के साथ छेड़खानी करने वालो को जोखिम उठाने की चेतावनी दी जाती रही थी।

देखा गया है कि जीवंत स्थिति में मनुष्य अत्यधिक मोह पाल लेने के कारण मरणोपराँत भी वह अपनी प्रिय वस्तु के साथ चिपके रहना चाहता है और वह वस्तु जहाँ-कहीं भी पहुँचती है वहीं उसकी आत्मा भी प्रवेश करने एवं उपयोग करने वालो को वास पहुँचाने का प्रयत्न करती है। इंग्लैंड के विख्यात वैज्ञानिक एवं सरल संस्मरणों में इसी तरह की सन् 1962 में घटित एक प्रामाणिक घटना का उल्लेख किया है। उसमें इंग्लैण्ड के विल्ट शायर स्थान में नियुक्त मि. मौक्सन नामक एक न्यायाधीश की अदालत में आये एक विचित्र मामले का वर्णन है। एक अधपगला सा व्यक्ति किसी कबाड़ खाने से पुराना नगाड़ा खरीद लाया। वह उसे सड़क पर खड़ा होकर विचित्र ढंग से बजाता, भीड़ इकट्ठी करता और पैसे बटोरता। पुलिस ने उसे रास्ता रोकने और पैसे बटोरता। पुलिस ने उसे रास्ता रोकने और अनावश्यक भीड़ जमा करने के अपराध में पकड़ कर नगाड़े समेत अदालत में पेश किया। अदालत ने उसे चेतावनी देकर छोड़ दिया और नगाड़े को जब्त करने का हुक्म दिया कुछ दिन बाद बेकार पड़े नगाड़े को पुलिस ने उस मजिस्ट्रेट के घर ही पहुँचा दिया। वहाँ उसे घर के एक कोने में पटक दिया गया।

जिस दिन से नगाड़ा उनके घर में पहुँचा उसी दिन से वहाँ प्रेतों के उपद्रव शुरू हो गये। किवाड़ों को खटखटाने की छप्पर पर धमाचौकड़ी और आँगन में उछल कूद होने की घटनायें निरंतर होने लगी। बहुत तलाश करने पर भी कोई दिखाई नहीं पड़ता था, पर घटनायें बराबर होती थी। स्वयं प्रयत्न करने और नौकरों पड़ोसियों की सहायता लेने के बाद भी जब उपद्रव का समाधान न हो सका तो पुलिस की सहायता ली गयी, पर वे लोग भी देखते सुनते समझते हुए भी कुछ कर न सके। जो दिखाई ही नहीं दे उसकी रोका या पकड़ा कैसे जाय?

एक दिन मजिस्ट्रेट ने देखा कि किसी मजबूत आदमी ने जोर का धक्का देकर किवाड़ें खोल दी चटखनी टूट गयी और वह व्यक्ति ओवरकोट पहने हुए घर के भीतर घुसता चला आया और आँगन में होता हुआ जीने के रास्ते छत पर चढ़ गया। आश्चर्य यह था कि ओवरकोट तो आँखों से दीख रहा था परंतु पहनने वाले के हाथ पैर चेहरा आदि सभी नदारद थे। लगता था अकेला कोट ही यह सब हरकतें कर रहा है। इसके बाद तो उसे एक प्रकार से इन उपद्रवों की किसी प्रेतात्मा की करतूत ही मान लिया गया।

अभी यह खोज बाकी थी कि आखिर थोड़े ही दिनों से यह उपद्रव क्यों खड़े हुए इससे पहले यह नहीं थे। ऐसी कौन सी वस्तु आ गयी जिससे यह सब घटित हो रहा है। ढूंढ़ खोज की गयी तो कौने में पड़ा वह नगाड़ा ही नजर आया जिसे पुलिस द्वारा एक पगले व्यक्ति से छीना गया था। नगाड़ा हटाया गया और साथ ही उन उपद्रवों का भी अंत हो गया। इतना ही नहीं उस पगले का भी पता लगाया गया तो पता चला कि वह सदा से ही विक्षिप्त नहीं था। सस्ता माल देखकर जिस रुदन से उसने कबाड़खाने में उस नगाड़े को खरीदा था, उसी दिन से वह खाली और शोर मचाने भीड़ इकट्ठी करने की करतूत करने लगा था। जिस दिन से पुलिस द्वारा उस चोडे को जब्त कर नष्ट कर दिया गया उसी दिन से परिस्थितियाँ सामान्य स्वाभाविक स्थिति में पहुँच गयी। इसी तरह जिस दिन मजिस्ट्रेट मौक्सन के घर से वह नगाड़ा हटाया गया इसी दिन से उनके यहाँ भी शांति आ गयी। खाली रस नगाड़े के असली मालिक की खाली प्रिय वस्तु के साथ छाया बनकर चिपकी रही है और वह वस्तु जहाँ कहीं भी पहुँची है उससे वहाँ भी प्रवेश पा लिया है। उपरोक्त घटनायें सरमोतुर जीवन के ठोस प्रमाण प्रस्तुत करती है और उनके लिए चुनौती देती हैं जो शरीर के साथ ही जीवन का अंत होने की बात करते रहते हैं साथ ही वस्तुओं परिजनों से अत्यधिक माह होने पर मृत्यु कि बाद भी जीवात्मा के इन्हीं वस्तुओं के इर्द गिर्द मोहग्रस्त होकर मँडराते रहने की दयनीय स्थिति को भी स्पष्ट करती है यह मोह आसक्ति मृतात्मा की प्रगति अन्यत्र जन्म लेने और कुटुँबियों की सुविधा की दृष्टि से अवांछनीय है। इसलिए भारतीय संस्कृति में अन्त्येष्टि एवं मरणोत्तर संस्कार के साथ इस प्रकार के धर्मोपबार जोड़े गये हैं जिससे मृतात्मा का मोह एवं शोक शाँत हो सके और उसे विकास क्रम के अनुरूप अन्यत्र जन्म लेने अथवा मुक्ति का अवसर मिल सके।


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