स्वर्ग अधिकारी (Kahani)

November 1994

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महावीर प्रव्रज्या पर थे। उनके आगमन की सूचना पाकर एक व्यक्ति उनके पास आया और बोला बनाने की कृपा करेंगे कि अब तक आपने कितनों की स्वर्ग कितनों को मुक्ति और निर्वाण दिलाया। महावीर ने कहा- अभी तो हम दूर से चलकर आये है। तुम्हारी बात का उत्तर कल देंगे प्रातः आना। यह कागज लो। गाँव में सब लोगों के पास जाकर कहना। महावीर आये है। अपनी अपनी कामनाएँ इच्छाएँ दुख तकलीफ अभाव वे जो भी हम से चाहते हो नोट करा दे।

व्यक्ति चल पड़ा। उस गाँव में 500 के लगभग व्यक्ति रहते। सब के पास गया वह व्यक्ति सबने अपनी आर्थिक तंगी बीमारी भौतिक लालसाएं स्वार्थ की ही बाते लिखाई। निर्वाण स्वर्ग मुक्ति ज्ञान वैराग्य एवं परमार्थ की इच्छा किसी ने व्यक्त नहीं की। व्यक्ति वापस लौट आया। सूची महावीर को प्रस्तुत कर दी। वे बोले देखा वत्स। किसी ने भी मोक्ष मुक्ति निर्वाण लोक कल्याण अथवा परमार्थ की इच्छा व्यक्त की? अनवाहे किसी की झोली में स्वर्ग मुक्ति निर्वाण लोक कल्याण अथवा परमार्थ की इच्छा व्यक्त की? अनवाहे किसी की झोली में स्वर्ग मुक्ति निर्वाण कैसे डाले जा सकते हैं? व्यक्ति समझ चुका था कि जब जनमानस की मनोवृत्ति ही भौतिक लाभ पाने तक सीमित हो तो आध्यात्मिक लाभ की बात कैसे सोची जा सकती है?


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