कौन कहता है, गये हो दूर हमसे? हर घड़ी हर पल हमारे पास हो तुम।
तुम रहे, हो कामनायें , जग जननी की , कामनाओं का कभी, क्या अंत होता?
तुम रहे हो भावनायें, लोक हित की भावनाओं का कभी, क्या अंत होता?
तेज का होता नहीं है, अंत, गुरुवर ! तेज का होता नहीं है, अंत, गुरुवर!
मुग्ध प्राणों का, अटल विश्वास हो तुम। विश्व के संताप, हरने की दिशा में,
जन्मते ही तुम समर्पित हो गये हो , सृष्टि क्रम की शाश्वत उस शृंखला में,
एक जीवन जागकर फिर सो गये हो अस्त होकर सूर्य भी, होता उदित ही,
इस हठीले सत्य का, आभास हो तुम। मानवों को, वेदना से मुक्त करना,
है रहा संकल्प जीवन का तुम्हारे, मोह बंधन में पड़ी चैतन्यता के,
मोक्षकारी स्वप्न, पलकों में उतारे स्वप्न यह साकार जो करने चले, उन,
कोटि कोटिक केंठ की उच्छ्वास हो तुम। भोर होते ही प्रभाकर की , प्रभा में,
देखते हैं हम, मनोहर छवि तुम्हारी, वायु का सु-स्पर्श, कोमल अँगुलियों सा,
जो सदा हरता रहा, पीड़ा हमारी, भूल पायेंगे कहाँ गुरुदेव तुमको,
एक अद्भुत सौख्य का, इतिहास हो तुम। यज्ञ तप जन जागरण अभियान जैसी
माँगलिक आराधनायें चल रही है दैन्य दुःख घटने लगे है, मेदिनी के,
साधकों की साधनायें, फल रही है, अज्ञता, असमानता, अविनय, अविद्य, अनय-नाशक सत्व के, मृदुहास हो तुम।
देवेंद्र कुमार देव