एक बहुमूल्य दान – सत्परामर्श

November 1994

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मनुष्य में एक दूसरे के साथ आदान प्रदान की परंपरा प्रवाहित करने के लिए सबसे प्रमुख माध्यम हे वाणी। धन का आदान प्रदान तो किसी विशेष अवसर पर विशेष कारण से ही होता है। शरीर सेवा का क्षेत्र भी सीमित है। श्रम सहयोग के अवसर तो कभी कभी किसी किसी के साथ ही आते हैं। पर वाणी को विशेषता ऐसी है कि उसके द्वारा रास्ता चलने सहज भाव से कुछ कहने सुनने का सिलसिला चल सकता है। पदार्थ परक आदान प्रदान की स्थिति आने से पूर्व हर किसी का उपक्रम वार्तालाप से ही आरंभ करना पड़ता है। यह मनोरंजन के लिए जिज्ञासा पूर्ति के लिए निस्तब्धता तोड़ने के लिए सहज भाव से भी होता रह सकता है। जिन में महत्वपूर्ण मंत्रणा भी करनी पड़ती है और वे गोपनीय भी होती है। तब उसमें अधिक तन्मयता और दूरदर्शिता का समावेश रहता है। घर सदा वैसा ही नहीं होता। आम तौर से सहज वार्तालाप स्वजनोँ मित्रों साथी सहयोगियों परिवार वालो के साथ चलता ही रहता है। चलना भी चाहिए। अन्यथा चुप रहने वालो को अहंकारी या मूर्ख समझा जाने लगता है। मौन व्रत धारी योगी महात्माओं की बात दूसरी है। वाणी यद्यपि मुँह से निकलती एवं कानों से सुनी जाती हे और मस्तिष्क को एक जानकारी देती हैं। किंतु यह साधारण बात हुई। इसके साथ एक परोक्ष रूप से रहने वाली क्षमता है जो बताती है कि बोलने वाले का स्वभाव चरित्र व्यक्तित्व एवं स्तर कैसा है? यह जानकारी इस एक ही परीक्षण से मिल जाती है कि उसकी वाणी के साथ जुड़े हुए तत्व और तथ्य क्या प्रकट करते हैं। यह हो सकता है कि कोई चुगल चाटुकार ठग अथवा जाल में फँसाने वाला मीठी मीठी बाते करे अपनी सज्जनता बखाने और स्वयं का हित चिंतक सिद्ध कर दे पर यह सभी बाते तनिक सी गंभीरता अपनाने पर सहज ही प्रकट हो जाती हैं और विवेकवान उस प्रपंच से सहज ही बच जाते हैं। मात्र उथले चिंतन वाले सहज विश्वासी ही प्रपंच में फँसते और उथली भावुकता के प्रवाह में धोखा खाते हैं। अस्वाभाविकता अतिवादी होती है। उसमें बिना जाँच पड़ताल किये किसी पर विश्वास कर बैठने की दुर्बलता रहती है। इसी कमजोरी को देखकर चाटुकार अपना जाल बिछाते और चिड़ियां फँसाते रहते हैं। किंतु जो कार्य कारण की संगति बिठा सकते हैं, अहैतुकी अतिशय मात्रा में बरसती मिठास का कारण समझ कर समय रहते जागरुक हो उठते हैं, उन्हें ठगे जाने की शिकायत आमतौर से नहीं करनी पड़ती।

जब धूर्तों की कपट प्रक्रिया वाणी की मिठास से सफल हो जाती है तो कोई कारण नहीं कि भावना आस्था और निष्ठा के साथ घुली हुई वाणी अपना स्थिर एवं उपयोगी प्रभाव न दिखा सके। यह ठीक है कि कठोर चट्टानों पर अनवरत वर्षा का तनिक भी प्रभाव नहीं पड़ता। पूरी बरसात गुजर जाने पर भी एक पता नहीं उगता पर साथ ही यह भी ठीक है कि जिन स्थानों में थोड़ी से भी मुलायमी गहराई है वहाँ के दिनों जल संपदा जमा होती और हरीतिमा लहलहाती सरलतापूर्वक देखी जा सकती है।

वाणी में अपनी शक्ति है उसका उपयोग करके प्रवक्ता अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं और कोई कारण नहीं कि सद्भावना युक्त व्यक्ति सत्प्रयोजन के लिए उसका कारगर प्रयोग न कर सके। यदि किसी को उपहार अनुदान नहीं दिये जा सकते तो कम से कम इतना तो हो ही सकता है कि वाणी से संपर्क में आने वालो को साँत्वना दे सकें उत्साह बढ़ा सके प्रशंसा करके आत्मविश्वास जगा सके और ऐसे परामर्श दे सके जिससे उनका भटकाव दूर होता हे और सन्मार्ग पर चल पड़ने का आधार बनता है।

वाणी के व्यवसायी अपने अपने प्रयोजन अपने अपने ढंग से पूरे करते हैं। प्रवचनकर्ता कथावाचक भाषणकर्मी गायक प्रायः समुदाय को एकत्रित करके अपनी अपनी मान्यता एवं इच्छा के अनुरूप भाषण करते रहते हैं कई ऐसे भी है कई ऐसे भी है जो किसी हद तक कितनों को ही प्रभावित भी करते हैं और लाभ उठाते हैं। इसे वाणी का चमत्कार कह सकते हैं। चुनावों के समय ऐसी वाचालता की धूम रहती है। दलाल बीमा एजेन्ट सेल्समैन अपनी वाक् चतुरता के आधार पर ही अच्छी खासी कमाई करते हैं वकील और लैक्चरर इसी माध्यम से अपनी रोजी रोटी चलते हैं विदूषक अभिनेता भी इसी कला में प्रवीण होते हैं। गायकों के पास तो वाणी ही सबसे बड़ी संपदा है। वे उसी के आधार पर लोगों का मन मोहते और अपनी छाप छोड़ते हैं। दूसरों को प्रभावित करने और वापस उसकी उपयोगी प्रतिक्रिया करने और वापस उसकी उपयोगी प्रतिक्रिया लौटाने की जैसी सरल और बिना खर्च की क्षमता वाणी में है। वैसी किसी और में नहीं हैं।

कटुवचन दूसरोँ को चोट पहुँचाते हैं उन्हें आहत और रुष्ट करते हैं। अपमान किसी से सहन नहीं होता। प्रतिशोध लेना तत्काल संभव न हो तो भी उस आघात को घाव की तरह मन में दबाये रहते हैं और अवसर मिलने पर बदला चुकाते हैं। निंदा चुगली आदि का भी ऐसा ही बुरा प्रभाव होता है अपना अहंकार और दूसरे का अपमान मिलकर वाणी को विषैली बना देते हैं। ऐसी वाणी दूसरों पर बूरा प्रभाव छोड़कर है और उलट कर अपने लिए अहित कर परिणाम लेकर लौटती है इस प्रकार के प्रयोग आये दिन देखने को मिलते हैं कौए और कोयल की वाणी का अंतर लोकोक्ति का प्रत्यक्ष रूप है। संत और दुष्ट के वचन सुनकर उनका स्तर सहज ही जना जा सकता है।

वाणी की मधुरता जहाँ अपने को संतोष आनंद देती है वहाँ साथी सहयोगियों स्वजन परिजनों के आनंद तथा उल्लास में वृद्धि करती है। मधुरभाषी सभी को प्रिय लगते हैं उसकी निकटता सभी चाहते हैं। आदान प्रदान संपर्क व्यवहार में प्रसन्नता अनुभव करते हैं। वाणी की मधुरता का अमृत ऐसा है जो बिना खर्च किये अर्जित किया जाता है और वितरित करने पर अपने की तथा अनेकों को धन्य बनाता है।

दान प्रक्रिया में क्या वाणी का उपयोग हो सकता है? इसका उत्तर उत्साहवर्धक सहमति में ही दिया जा सकता है। संस्कृत में एक शब्द है - कन्या दान। जिसका अर्थ होता है अपनी ओर से वचन देना। प्रायः विवाद संबंधों में उभय पक्ष की स्वीकृति के लिए इसे प्रयुक्त किया जाता है। अन्य प्रकार के पारिवारिक अनुबंध में भी वाग्दान शब्द प्रयुक्त किया जाता है। एक कदम और भी आगे बढ़ा कर देखा जाय और इस संदर्भ में अधिक विचार किया जाय तो प्रतीत होगा कि वाणी के माध्यम से सर्वतोमुखी उत्कर्ष हेतु जितना ठोस अनुदान दिया जा सकता है उतना अन्य किसी प्रकार नहीं यो अपने को सर्वांगपूर्ण और सर्वोपरि मानने वाले किसी को भी कुछ भी आदेश परामर्श देते रहते हैं। उसमें अहंकार की अनाधिकार की गंध देखकर प्रायः इस कान से उस कान में निकाल देते हैं कई बार तो उपहास भी उड़ाते हैं। किंतु ऐसा सज्जतो के सौम्य अनुरोध या विचार विनिमय के संदर्भ में नहीं होता। कहा जा चुका है कि व्यक्तित्व के स्तर की अभिव्यक्ति वाणीं के साथ जुड़ी होती है। शब्द विन्यास प्रायः काम नहीं आता। लच्छेदार बातों के पीछे उद्देश्यों को लोग सहज ताड जाते हैं। शब्द संरचना से अधिक प्रभाव उस स्तर का होता है जो व्यक्तित्व के अंतराल में से उभरकर आता है। सीधे साधे शब्द भी कई बार भारी प्रभाव छोड़ते हैं। इसके विपरीत लच्छेदार भाषा में रचे हुए शब्द जंजाल भी अपने पीछे रहने वाले कपट भाव को बिना प्रकट किये नहीं रहते। इसलिए जिन्हें वरदान देकर दूसरों का हित साधन करना है उन्हें सर्व प्रथम अपने व्यक्तित्व ओर वाणी को प्रामाणिक बनाना चाहिए। स्वार्थपरता और अहंता की दुष्प्रवृत्ति को चिंतन और व्यवहार में से पूरी तरह छोड़ना चाहिए। इतना बन पड़े तो समझना चाहिए कि वार्तालाप में सद्भाव और सदाशयता का सहज समावेश रहने लगेगा। जो कहा जाय उससे सुनने वाले का वास्तविक हित साधन दृष्टिगोचर होगा। इसका प्रभाव सुनने वाले पर पड़े बिना न रहेगा। वाणी निरर्थक तभी होती है जब कहने वाले की दुरभिसंधि कुटिलता के रूप में उसके पीछे काम करती है। यह विष घुला होने पर अविश्वास संदेह और छंद जुड़ा रहने से सुनने वाले का अंतराल चौकन्ना हो जाता है और परामर्श को मानने के बजाए उपेक्षा भाव भी आरंभ कर देता है ऐसी वाणी निरर्थक होती है और प्रतिकूल प्रभाव छोड़ती देखी गई है।

अपनी नम्रता दूसरों का सम्मान आत्मीयता का पुट इन तीनों का संमिश्रण का पुट वाणी में मिठास आती और प्रभाव बढ़ता है। ऐसी परिष्कृत वाणी से बोले गये शब्द यदि सिद्धांतों और आदर्शों पर अवलंबित है तो उनका प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता। इसके लिए आवश्यक होता हो संभावना बन सके तो विचार गोष्ठियां सभा आयोजनों का भी प्रबंध किया जा सकता है और उपस्थित जन समुदाय की आवश्यकता एवं परिस्थिति के अनुसार परामर्श उद्बोधन दिया जा सकता है उपयोगी सारगर्भित और सामयिक मार्गदर्शन करने वाली शिक्षा सब प्रभावशाली सिद्ध होती है। उसने भटकाव दूर होते हैं और ऐसा राज मार्ग हस्तगत होता है जिस पर चलते हुए सुलझी स्थिति तब पहुँचा जा सके कठिनाइयों को उबारा व सके।


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