जीवन को आनन्दमय बनाती है कला

November 1994

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

गीत संगीत नृत्य वादन साहित्य और कविता यह स्वस्थ मनोरंजन तथा मानसिक विकास के सर्वोत्तम तथा मानसिक विकास के सर्वोत्तम साधन है। शारीरिक एवं बौद्धिक कार्यों से एक प्रकार की ऊब पैदा होती है जो मानसिक सरसता के अभाव में दूर नहीं होती। उसके बने रहने से जीवन एक प्रकार से निरानन्द बन जाता है। नीरसता खीज पैदा करती है, जो मानसिक असंतुलन का प्रमुख कारण है? जो मानसिक असंतुलन का प्रमुख कारण है? असंतुलन को प्रतिक्रिया पारिवारिक जीवन में विचार विग्रह के रूप में सामने आती है? जबकि सामाजिक जीवन में उसका स्वरूप संघर्ष और शोषण के रूप में प्रकट होता है।

इससे बचा कैसे जाय? मनःशास्त्रियोँ ने इस संबंध में विस्तृत खोजबीन की है, उनमें से मूर्धन्यों का निष्कर्ष यह है कि ऊब तथा उसकी प्रतिक्रियाओं से बचना हो तो हर क्रियाशील व्यक्ति को अपने ढर्रे के कार्यों के अतिरिक्त जीवन में किसी कलात्मक हॉबी का विकास करना चाहिए, ऐसी हॉबी जो सही अर्थों में मन को सरसता प्रदान करे और उसे परितृप्त करे। वह कुत्सा को भड़काने वाली नहीं जीवन के प्रति विधेयात्मक दृष्टि पैदा करने वाली हो साथ ही उसका स्वरूप कुछ ऐसा हो जिससे मन को कल्पना करने तथा शरीर को बिना किसी दबाव के व्यस्त रहने का सुअवसर मिलता हो।

इस दृष्टि कलात्मक अभिरुचियों का महत्व बढ़ जाता है। हर व्यक्ति में कला के बीज विद्यमान है। न्यूनाधिक रूप से किसी न किसी रूप में कोई न कोई अतिरिक्त विशेषता हर व्यक्ति को प्राप्त है। उसे उभारा और विकसित किया जा सकता है। अपनी रुचियों का विश्लेषण करके यह मालूम किया जा सकता है कि गति किस दिशा में उपयुक्त रहेगी। गायन वादन पेंटिंग ड्राईंग कविता साहित्य सुसज्जा बागवानी जैसे किसी भी क्षेत्र को अपनाया जा सकता है। इनसे अपना भी मनोरंजन होता है और लोकप्रेरणा की समाज सेवा भी मधती है। खेलकूद को भी इस निमित्त अपनाया जा सकता है। स्वस्य मनोरंजन के यह सपर्ध साधन है। खाली का अतिरिक्त लाभ अनायास मिल जायगी।

यूनिवर्सिटी ऑफ र्होफ्स्ट्रा के शोधकर्मी वैज्ञानिकों डोनाल्ड हेस, ब्रुस केमेल्स्की एवं मेल्विन पावर ने प्रयोगों की एक नई शृंखला शुरू की। उनका शोध विषय था कलात्मक अभिरुचियों के मानव मस्तिष्क एवं मनःसंस्थान पर पड़ने वाले प्रभावों की जाँच पड़ताल करना। बच्चों पर किये गये अध्ययन के दौरान उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि कलात्मक हाथियों से मस्तिष्क की प्रखरता बढ़ती है। ऐसे बच्चे जो स्मृति दोष से पीड़ित थे, उन पर उन्होंने प्रयोग किये। उनका ध्यान कलात्मक जीवन की ओर आकर्षित किया गया और उनमें गायन वादन कविता चित्रकला ड्राईंग के प्रति आकर्षण पैदा किया गया। बताया गया कि इनसे व्यक्तित्व में निखार आता है और आँतरिक लयात्मकता पनपती है। छः महीने तक जारी इस प्रयोग के पश्चात बालकों का पुनर्निरीक्षण किया गया। प्राप्त परिणाम काफी उत्साहवर्धक रहा। देखा गया कि जिन बालकों को पाठ याद नहीं होने कमी आयी और एकाग्रता बढ़ी है।

इसी प्रयोग को ऐसे दूसरे बालकों पर दुहराया गया, जिनमें दोष नहीं था। उनकी दो टोलियाँ बनायी गयी। दोनों में एक जैसे बौद्धिक स्तर वाले बालक रखे गये। दोनों के शिक्षण तथा साधनों की व्यवस्था एक सी की गई। अंतर मात्र इतना रखा गया कि एक ग्रुप को कला विषयक शिक्षण और उसका अभ्यास भी अतिरिक्त विषय के रूप में थोड़े समय के लिए कराया जाता जबकि दूसरे ग्रुप को इस लाभ से वंचित रखा गया। परिणाम में पुनः अंतर पाया गया। जिन बच्चों को कलात्मक शिक्षण और अभ्यास की विशेष सुविधा दी गई थी, उनकी मानसिक एकाग्रता उन बच्चों से बड़ी चिड़ी पायी गई जिन्हें इस प्रकार के लाभ में वंचित रखा गया था।

इससे स्पष्ट है कि नीरस और कुँठाग्रस्त जीवन से यदि बचा जा सके तो मानसिक प्रखरता को बढ़ाया जा सकता है और बुद्धि को इतना और इस स्तर का बनाया जा सकता है और प्रखरता को बढ़ाया जा सकता है, जिसे असाधारण नहीं तो कम-से कम सामान्य तो कहा ही जा सके। जड़ मशीनों से लेकर चेतन प्राणियों तक का यह स्वभाव है कि वे क्षमता से अधिक कार्य लिया गया , तो अक्षमता और असामान्यता के लक्षण भी जल्दी ही उभरने लगते हैं। उपकरण अपनी शक्ति से अधिक और समय से ज्यादा काम करने पर गर्म हो जाते हैं, उसने अस्वाभाविक आवाजें आने लगती है और अधिक उपयोग होने पर खराब हो जाती है। विशेषज्ञों की इस निमित्त सलाह यही होती है कि यंत्रों को लंबे समय तक दुरुस्त रखने के लिए सामर्थ्य से अधिक काम न लिया जाय और कार्य के बीच-बीच में उन्हें थोड़े-थोड़े क्षणों के लिए विश्राम दिया जाय। दूसरे प्राणियों और शरीर के अंगों के साथ भी यही बात है। यदि उनसे क्षमता से अधिक कार्य लिया गया ओर विश्राम का ध्यान न रखा गया तो सामर्थ्य में ह्रास और थकान के लक्षण स्पष्ट उभरने लगते हैं। मानसिक श्राँति को दूर करने के लिए कार्य की प्रकृति को बदल देना पर्याप्त है श्रेष्ठ स्तर वाले मनोरंजन से यह सहज संपन्न हो जाता है। इससे एकरसता और थकान दोनों घटती मिटती है। इनके हटते ही मन मस्तिष्क पुनः सक्रिय और सतेज बन जाते हैं और अपनी क्षमता का परिचय पूर्ववत् देने लगते हैं। एकाग्रता ओर स्मृति बढ़ जाती है। असंतुलन घटने लगता है, जिससे विग्रह विद्वेष में भी कमी आती है। ऊब से पैदा होने वाले लक्षणों पर यदि उचित ध्यान दिया गया तो बहुत हद तक मानसिक निरानन्द से मुक्ति पायी जा सकती है और उन दुर्गुणों से बचा जा सकता है, जो मन की सरसता के अभाव में पैदा होते हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles