परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी - - आज के प्रज्ञावतार की युग के देवता की अपील

November 1994

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(4-8-83 को शाँतिकुँज परिसर में दिया गया उद्बोधन)

गायत्री मंत्र हमारे साथ साथ - ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

देवियों, भाइयों! मनुष्य के जीवन में अनेक प्रकार के सौभाग्य आते हैं और उन सौभाग्यों के लिए आदमी सदा अपने आपको सराहता रहता है। पर ऐसे सौभाग्य कभी कभी ही आते हैं हमेशा नहीं। शादी ब्याह कभी-कभी ही होते हैं रोज नहीं। कन्वोकेशन में डिग्री रोज नहीं मिलती वह जीवन में एकाध बार ही मिलती है जब हाथ में डिग्री लिये और सिर पर टोप पहने हुए फोटो खिंचवाते हैं। सौभाग्य के ऐसे दिन कभी कभी आते हैं, उनमें लाटरी खुलना और कोई ऊँचा पद पाना भी शामिल है। लेकिन आदमी का सबसे बड़ा सौभाग्य एक ही है कि वह समय को पहचान पाये। आदमी समय को पहचान ले तो मैं समझता हूँ कि इससे बड़ा सौभाग्य दुनिया में कोई हो ही नहीं सकता। खेती बाड़ी सब करते हैं लेकिन जो किसान वर्षा के दिनों सही समय पर बीज बो देते हैं वे बिना मेहनत किये अपने कोठे भर लेते हैं। गेहूँ की फसल लेने के लिए जो समय को पहचान कर बीज बोते हैं वे अच्छी फसल कमा लेते हैं अगर बीज बोने का समय निकल जाये तब फसल की पैदावार की आप उम्मीद नहीं कर सकते। शादी ब्याह की एक उम्र होती है और जब समय निकल जाता हे तो आदमी को कई बार बहुत हैरानियाँ बरदाश्त करनी पड़ती है, लगभग असफलता के नजदीक पहुँच जाता है। वह। जो आदमी समय को पहचान लेते हैं वे बहुत नफे में रहते हैं। विज्ञापन निकलते रहते हैं और जो अखबारों को देख लेते हैं कि हमारे लिए जगह खाली है तुरंत अर्जी भेज देते हैं गाड़ियों में रिजर्वेशन होता है जो समय पर पहुँच जाते हैं लाइन में लग जाते हैं उन्हें गाड़ी में सीट मिल जाती है। जो टाइम को पास कर देते हैं निकल जाने देते हैं वे बहुत हैरान होते हैं।

अभी मैं समय की महत्ता बता रहा था आपको। किसलिए बता रहा था? इसलिए कि जिस समय में हम और आप रह रहे है वह ऐसा शानदार समय है कि आपकी जिंदगी में वह इतिहास में फिर नहीं आयेगा। आप लोगोँ की जिंदगी में तो दूर आने वाली नयी पीढ़ियां भी इसके लिए तरसती रहेगी और कहेंगी कि हमारे बाप दादे ऐसे समय में पैदा हुए थे। जो इसका फायदा उठा लेंगे उनके घर परिवार में सराहना होती रहेगी समाज में इतिहास में उनका नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा और जो सनक में बैठे रहेंगे भूल में बैठे रहेंगे वे स्वयं पछताते रहेंगे और बाद में उनकी पीढ़ियां पछताती रहेगी और बाद में उनकी पीढ़ियां पछताती रहेगी और कहेगी कि ऐसे शानदार समय में हमारे बाप दादों ने क्यों मुनासिब कदम नहीं उठायें? यह कैसा शानदार समय है चलिए मैं इसके कुछ आपको उदाहरण देना चाहता हूँ जिससे कि आप समझ सके कि यह कैसा समय है इस शानदार समय में आप थोड़े से मुनासिब कदम बढ़ा सकते हो तो मजा आ जायगा। आपको मैं अवतार के किस्से सुनाता हूँ।जब कभी भी अवतार हुए है, जब कभी भी महापुरुष हुए है तब उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाले लोगों को मैं बहुत भाग्यवान कहता हूँ और बहुत समझदार मानता हूँ। उनमें से एक का नाम था हनुमान, हनुमान कौन थे? सुग्रीव के वफादार नौकर का नाम था हनुमान। सुग्रीव को जब उसके भाई ने मारपीट कर भगा दिया, बीबी बच्चे छीन लिये, तब सुग्रीव अपने वफादार नौकर के साथ ऋष्यमूक पर्वत पर रहने लगे एक समय आया जब रामचंद्र जी आये तो सुग्रीव ने हनुमान को भेजा था। हनुमान जी वामन ब्राह्मण का रूप बनाकर उनके सामने गये थे कि कही ऐसा न हो कि हमारे साथ मारपीट होने लगे। तो क्या हनुमान जी कमजोर थे? न होते तब बालि के साथ लड़ाई की होती और अपने बाँस की बीबी को नहीं छिनने दिया होता और अपनी जायदाद नहीं छिनने दी होती लेकिन जब हनुमान जी ने समय को पहचान लिया और राम चन्द्र जी के कंधे से कंधा मिलाया कदम से कदम मिलाया तो क्या आप समझ सकते हैं कि किसी महत्वपूर्ण शक्ति के साथ कंधा मिलाने की क्या कीमत हो सकती है? क्या फायदा हो सकता है? आप तो अंदाज नहीं लगा पा रहे हैं लेकिन हनुमान जी ने लगा लिया था और वह हिम्मत दिखाई थी जो आदर्शों को जीवन में उतारने के लिए आवश्यक है। आदर्शों को पालन करने के लिए शक्ति की जरूरत नहीं है साधनों की भी जरूरत नहीं है। साधन तो आप सबके पास है, पर अध्यात्म एक ही चीज का नाम है ऊँचे आदर्शों के लिए हिम्मत। इसी अध्यात्म को हनुमान जी ने पकड़ लिया और पकड़ने के बाद में रामचन्द्र जी से कहा कि हम आपके काम आयेंगे और आपकी मदद करेंगे। बस यह शानदार हिम्मत हनुमान जी ने दिखायी और उस समय को पहचानने के बाद में आपको नहीं मालूम वे शक्ति के स्त्रोत बन गये और गजब के काम करने लगे। पहाड़ उखाड़ने लगे, समुद्र छलाँगने लगे और लंका में रावण और उसके सवा दो लाख राक्षसों को चैलेंज करने लगे। कुँभकरण जैसों के साथ हनुमान जी अकेले लड़ने लगे।

क्यों साहब क्या बात थी कि हनुमान जी में इतनी ताकत कहाँ से आ गयी? यह वहाँ से आ गयी जहाँ से उन्होंने अध्यात्म को अपने जीवन में उतार लिया था। अध्यात्म जीभ की नोक तक पूजा की चौकी तक सीमित नहीं रहता। अध्यात्म उस चीज का नाम है याद रखना ऊँचे सिद्धांतों को अपने जीवन में धारण करने की हिम्मत को अध्यात्म कहते हैं। इससे कम भी कोई अध्यात्म नहीं है। हनुमान जी ने वही अध्यात्म ग्रहण कर लिया। पूजा की थी, अनुष्ठान किया था जप तप किया था? नहीं तो फिर कैसे हो गया? ऊँचे उद्देश्यों के लिए भगवान के कंधे से कंधा मिलाकर वे चल पड़े थे और निहाल हो गये। इससे बड़ी कोई तपस्या नहीं होती है। नल नील ने पत्थरों का पुल बनाया था जो पानी पर तैरता था। इतने बड़े समुद्र पर पत्थरों से पुल बना दिया था कि जिसमें न पायें लगे हुए थे, न झूला लगा हुआ था, न गार्डर फँसे थे और न सीमेंट की जरूरत हुई। ऐसे ही खाली पत्थर फेंकते गये और उनका बन गया पुल। क्यों साहब यह हो सकता है? हाँ यह हो सकता है। कैसे हो सकता? ऊँचे उद्देश्यों के लिए खासतौर से उस समय जबकि भगवान अवतार लिया करते हैं तब जो आदमी उनके कंधे से अपना कंधा मिला लेते हैं वे शानदार हो जाते हैं और अपनी भूमिका निभाते हैं। रीछ वानरों ने भी भगवान की सहायता के लिए वही काम किये थे लकड़ी ईंट पत्थर ढोकर लाते और नल नील के पास जमा करते जाते थे। क्यों साहब यह कोई बड़ा काम था क्या बताइये? कोई बड़ा काम नहीं था, लेकिन भगवान के अवतार के साथ उनकी क्रिया पद्धति के साथ जुड़ जाने की वजह से वे रीछ बंदर भी न जाने क्या से क्या हो गये। हम उनकी कितनी प्रशंसा करते हैं संतों महात्माओं योगियों की भी उतनी नहीं करते और रीछ बंदरों का जब तक उनका इतिहास में जिक्र आता रहेगा वे अजर अमर होते रहेंगे। क्यों उनकी क्या विशेषता थी? एक तो यह कि सही समय है। सीता जी वापस आ जाती तब कोई हनुमान कहता कि हम तो रामचंद्र की सेना में भर्ती होगे और सीता जी को तलाश करके लायेंगे यह मौका हमको भी दीजिए। तब रामचंद्र जी यही कहते कि नहीं हनुमान भाई साहब अब समय निकल गया। आप समय भी नहीं देखते क्या? ऐसे समय कभी कभी ही आते हैं।

इसी तरह गिलहरी ने क्या किया था? अपने बालों में बालू भर कर लाती और समुद्र में पटक देती थी। बालों में बालू भर लेना कोई मुश्किल और बड़ा काम नहीं है। गिलहरियाँ ऐसे ही घूमती रहती है बालू में बैठी रहती है और बाल भर जाती है फिर क्या खास बात थी उसमें? यह थी कि उसने समय को पहचान लिया था कि अब भगवान की जरूरत में आवश्यकता में मदद करनी चाहिए। यह समझदारी उसने की और फिर गिलहरी कैसी हो गयी। मैं क्या कहूँ गिलहरी के लिए भाई साहब कि वह कितनी शानदार हो गयी भगवान का काम करने से। रामचन्द्र जी ने उसे उठा लिया और छाती से लगाया उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगे। उससे बहुत मुहब्बत की। किसके लिए। बालू के लिए, नहीं राई भर बालू से क्या होता है। उन्होंने सिद्धांतों है। उन्होंने सिद्धांतों के प्रति उसकी हिम्मत के लिए, निष्ठा के लिए उसकी जुर्रत के लिए उसको प्यार किया। मैंने सुना है कि जो गिलहरी रामचंद्र जी की सहायता करने आयी थी उसकी पीठ पर उनने प्यारे से अपनी अँगुलियाँ फिराई थी और वे धारीदार विज्ञान आज भी गिलहरियों की पीठ पर पाये जाते हैं। धन्य हो गयी थी वह गिलहरी जी रामचंद्र जी के लिए बालू लेकर आयी थी। उसने समय को पहचान लिया था। समय को आप नहीं जानते क्या?

मित्रो भगवान जब भी आते हैं तो उसके कई मकसद होते हैं। एक तो आपने पहले ही सुन रखा है कि वह धर्म की स्थापना करने के लिए और अधर्म का नाश करने के लिए आते हैं। यह दो मकसद तो आपको मालूम ही है रामायण में भी आपने पढ़ा है सब जगह पढ़ा है। यह दो ही बातें पढ़ी है न आपने अच्छा तो एक और बात हमारी ओर से आप जोड़ लीजिए जो रामचंद्र जी ने या कृष्ण भगवान ने अपनी ओर से तो नहीं कहीं है लेकिन हम अपनी ओर से कहते हैं एक तीसरी बात क्या कहते हैं? जो सौभाग्यशाली है उनके सौभाग्य को चमका देने के लिए भी भगवान आते हैं। उनको उछाल देने के लिए भी भगवान आते हैं। उनको इतिहास में अजर अमर बना देने के लिए भी भगवान आते हैं। जो इस मौके को पहचान लेते हैं वे वन्य हो जाते हैं। केवट को उन्होंने धन्य बना दिया। केवट ने क्या काम किया था? नाव में बिठाकर के रामचन्द्र जी को पार लगा दिया था बिना कुछ कीमत लिए। तो गुरुजी चलिए हम भी आपको कार में बिठाकर घुमा लाये और आज हमें केवट बना दीजिए। नहीं भाई साहब अब मुश्किल है। अब हम नहीं बना सकते तब वे खास मौके थे तब आपने पहचाने नहीं और अब शिकायत करते हैं अपने कर्म को दोष देते हैं कि ऐसा वक्त आया था और हम कुछ कर नहीं सके। मित्रों शबरी ने भगवान को बेर खिलाये थे जिसकी प्रशंसा करते करते हम थकते नहीं। भगवान ने शबरी से कहा शबरी हम भूखे है। भगवान की जरूरत पड़ी थी वे भूखे थे आपकी अपनी जरूरत है पर कभी कभी भगवान को भी जरूरत होती है और मनुष्य के लिए वही सौभाग्य के वक्त है। शबरी ने मौके को पहचान लिया था कि भगवान को खाली है वे माँग रहे है सो उसको भूख बुझाने के लिए बेर खिलाये थे। केवट वे भी भगवान की जरूरत को पहचान लिया था कि उनके पास नाव नहीं है। वे इंतजार में खड़े हुए है कि कोई आये और हमको नाव में बिठाकर पार लगा दे।

मित्रों आदमियों को अपनी जरूरत होती है यह तो नहीं कहता कि जरूरत नहीं कहता कि जरूरत नहीं होती पर कभी कभी भगवान को भी आदमियों की जरूरत होती है। हमेशा नहीं कभी कभी जरूरत पड़ती है और उस कभी कभी को मौके को जो पहचान लेते हैं वे गिलहरी के तरीके से केवट के तरीके से शबरी के तरीके से और रीछ कतरो के तरीके से उनकी सहायता के लिए चल पड़ते हैं जब वे बूढ़े हो जाते हैं तो आपस में लड़ाई झगड़ा करने लग जाते हैं। गिद्धों का मरना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन एक गिद्ध ने समय को पहचान लिया था कि हमारी जरूरत है किसको? सीता जी को जरूरत है कि कोई हमारी सहायता करे और वह चल पड़ा और धन्य हो गया। क्यों साहब हम भी बूढ़े हो जायँ और ऐसा कुछ करें? नहीं भाई साहब अब वह वक्त चला गया आप समय को तो पहचाने नहीं। भगवान कभी कभी हाथ पसारता है। आदमी तो भगवान के सामने हमेशा हाथ पसारता रहता है पर भगवान आदमी के सामने कभी कभी हाथ पसारता है और जब कभी वह हाथ पसारता है तो उसकी हथेली पर कोई भी कुछ रख देता है तो रवीन्द्रनाथ की कविता के मुताबिक उसकी झोलियाँ सोने से भर जाती है। टैगोर की एक कविता है मैं गया भीख माँगने द्वार द्वार इकट्ठी कर ली झोली गेहूं के दानों से एक आया भिखारी उसने पसारा हाथ। मैंने एक दाना उसकी हथेली पर रखा चला गया भिखारी उसने पसारा हाथ। मैंने एक दाना उसकी हथेली पर रखा चला गया भिखारी। घर आया तो मैंने अनाज की झोली को पलटा। उसमें एक सोने का दाना रखा हुआ था। टैगोर ने बंगला गीत में गाया-मैं सिर धुन धुन के पछताया कि मैंने क्यों नहीं अपनी झोली के सारे दाने उस भिखारी को दे दिये। उस भिखारी से मतलब भगवान से है समय से है। समय समय पर जब कभी भगवान हाथ पसारता है और जो कोई उस समय को मौके को पहचान लेते हैं और भगवान के पसारे हुए उस हाथ पर कुछ रख देते हैं वे न जाने क्या से क्या हो जाते हैं।

भगवानों के और किस्से सुनाऊँ आपको? वक्त बहुत चला गया, इसलिए और भगवानों की तो मैं नहीं कहता, पर एक भगवान को जो कल परसों ही के चुका है उसकी बात मैं कहता हूँ उसने भी हाथ पसारा था। उसका नाम था गाँधी। गाँधी जी ने भी हाथ पसारा था और उनकी हथेली पर जिन लोगों ने रखा था उनका क्या क्या हो गया आपको मालूम नहीं है। वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हो गये ताम्र पत्र धारी हो गये और तीन तीन सौ रुपये पेंशन पाने लगे। यह खानदान त्यागियों का खानदान है। मित्रों मिनिस्टर उसी में से हुए है। अब तो बात दूसरी है, लेकिन शुरू के दिनों में जब आजादी आयी थी तो सिर्फ वे ही मिनिस्टर बने थे। जो स्वाधीनता सेनानी थे। आप वक्त को नहीं पहचानते आप भगवान को नहीं जानते कि वह कभी कभी हाथ पसारता है। जिस समय हमने आपको बुलाया है आप यकीन रखें यह वह समय है जिसमें दुनिया बेतरीके से बदल रही है। अभी तो आपको दिखाई नहीं पड़ता कि क्या हो रहा है। आप तो यह भी नहीं देख पाते कि पृथ्वी घूम रही है। आपकी अक्ल कहती है कि पृथ्वी घूम रही है। आपकी अकल कहती है कि पृथ्वी घूम रही है। आपकी अक्ल कहती है कि पृथ्वी अपनी धुरी पर सनसनाती हुई चलती जा रही है पर आँखें कहती है कि घूम रही होती तो हमारा मकान पूर्व से पश्चिम की ओर हो जाता। हकसी को अपनी मौत कहाँ दिखाई देती है? इसी तरह आपको जमाना बदलता हुआ दिखता है क्या? नहीं दिखाई पड़ता। आपको भगवान का चौबीसवां अवतार होता हुआ दिखाई पड़ता है क्या? दुनिया का कायाकल्प होता हुआ दिखाई पड़ता है क्या कि किस बुरी तरीके से गलाई ढलाई हो रही है। आपको दिखाई न पड़ता हो तो देखिये कि हिंदुस्तान का ही पिछले बीस तीस साल में क्या हो गया। कभी यहाँ राजा छाये हुए थे। तीन चौथाई हुकूमत राजाओं की थी। अब है कोई राजा? पच्चीस साल में सब तबाह हो गये। जागीरदार और जमींदार देखे है आपने न देखें हो तो राजस्थान चले जाइये। वहाँ जगह जगह किले गाँव गाँव किले जो अब खंडहर के रूप में पड़े है उन्हीं के अवशेष है। सब कुछ समय बहा ले गया। राजा भी चले गये जमींदार भी चले गये और कौन चले गये? साहूकार भी चले गये जो कभी गिरवी रखने और अच्छा खासा ब्याज कमाने का धंधा किया करते थे। बीस सालों में बहुत कुछ बदल गया।

मित्रो इन दिनों दुनिया दो तरीके से बदल रही है। इसे कौन बदल रहा है? बीसवीं सदी का अवतार जिसे हम प्रज्ञावतार कहते हैं। आदमी की अक्ल बहुत ही वाहियात है। इस अकल ने सारी दुनिया को गुत्थियों में धकेल दिया है। जितनी ज्यादा अक्ल बढ़ी है। आप कालेजों में विश्वविद्यालयोँ में चले जाइये पहले वहाँ अराजक तत्व अवांछनीय तत्व कहाँ रहते थे, पर देखिये सारी खुराफातें कहाँ जन्म ले रही है? आपको बदलता हुआ जमाना दिखाई नहीं पड़ता आजकल बहुत हेरफेर हो रहा है। इस अक्ल ने दुनिया को हैरान कर दिया है। इस अक्ल को अक्ल से धुलाई करने के लिए एक नयी अक्ल पैदा हो रही है, जिसका नाम है महाप्रज्ञा। चौबीसवाँ अवतार प्रज्ञा के रूप में जन्म ले रहा है। आपको तो नहीं दिखाई पड़ता होगा शायद पर आप हमारी आँखों में आँखें डालकर देखें। हमारी आँखें बहुत पैनी हैं और बहुत दर की देखने वाली है। हमारी आँखों में टेलिस्कोप लगे हुए है। आप आइये जरा हमारी आँखों में आँखों डालिये क्या हो रहा है। जमाना बेहद तरीके से बदल रहा है। यह कौन बदल रहा है? भगवान बदल रहा है। भगवान के अवतार जब कभी भी दुनिया में हुए हैं तब भक्तजनों को अपना सौभाग्य चमकाने का मौका मिल गया हे। ऊपर हमने भगवान राम का उदाहरण दिया है, अभी और दूँ उदाहरण। अच्छा तो बुद्ध का और श्रीकृष्ण भगवान का उदाहरण देता हूँ आपको। कुब्जा जो चंदन लगा देती थी उसके उदाहरण दूँ। कितने उदाहरण दूँ। आपको। भगवान के अवतारों के साथ में जिन्होंने थोड़े से भी अहसान कर दिये वे धन्य हो गये। भगवान तो क्या महापुरुषों के साथ भी जिन्होंने थोड़ा सा भी कंधा लगा दिया वे राजेगोपालाचारी हो गये बिनोवा हो गये। उनका नाम पटेल हो गया, नेहरू हो गया जाकिर हुसैन हो गया राधाकृष्णन हो गया राजेन्द्र बाबू हो गया। जिनका मैं नाम गिना रहा हूँ वे सभी हिन्दुस्तान के बादशाह हो गये। वे इसलिए बादशाह हुए कि उन्होंने समय को पहचान लिया था कि कोई खास अवतार युग को बदलने आया है और उसी की बिरादरी में शामिल हो गये उसके कंधे से कंधा मिलाकर साथ साथ चलने की अपनी जुर्रत हिम्मत दिखा दी।

आज का वक्त भी ऐसा ही है आप देखिये न। उस अवतार के साथ अगर आप कंधे मिला सकते हों चरण मिला खाली आप उसके पीछे चल सकते हो खाली बँटा सकते हो तो मैं आप में से खाली कहूंगा कि अगले दिनों आप खाली भाग्यवान व्यक्ति कहलायेंगे कि आपका सौभाग्य आपके लिए सहायता ही देगा। हमने क्या किया है? आप क्या समझते हैं कि हमने किताबें लिखी है, लेख लिखें हे लेक्चर देते हैं पूजा करते हैं। अरे भाई साहब पूजा तो हम चार हो घंटे करते हैं पहले छः घटे करते थे। या अब चार ही घंटा करते हैं। आपको हम आदमी बता सकते हैं जो हमसे चौगुनी पूजा करते हैं। दुनिया में और दिल्ली में चले जाइये वहाँ ढेरों के ढेरों आदमी रहते हैं ओर लिखने का धंधा करते हैं पैसा कमाते हैं और अपने बाल बच्चों का पेट पालते रहते हैं। स्कूलों में कालेजों में लेक्चर होते हैं, लेक्चर देना उनका धंधा ही है रोटी ही इस बात की मिलती है उनको। फिर आपको इस तरह के मौके क्यों मिलते चले जा रहे है? क्या वजह है इसकी? इसकी एक ही वजह है कि हमने यह पहचान लिया है कि भगवान का अवतार होता हुआ चला आ रहा है। अवतार के साथ कंधे से कंधा मिला कर उसके कदम के साथ कदम बढ़ाकर चलने का हमने निश्चय कर लिया कि साथ साथ रहेंगे। उसके साथ अपने जानकी बाजी लगायेंगे। तब परिणाम क्या होता है? वही जो आग और लकड़ी का होता है। दो कौडी की नाचीज लकड़ी जब आग के साथ मिल जाती है तो उसकी कीमत आग के बराबर हो जाती है। जिस लकड़ी को कल बच्चे उछाले फिर रहे थे, आग के साथ रिश्ता हो जाने की वजह से आज वही कहती है कि हमें छूना मत आप हमारा गलत इस्तेमाल मत करना। आज आपने यदि हमको फेंक दिया तो हम आपके छप्पर को जला देंगे गाँव को जला देंगे। एक घंटे पहले मैं लकड़ी थी पर अब मैं आग हूँ। तो आग कैसे हो गयी आप? हमने एक ही हिम्मत की है कि अपने आपको आग के साथ में बुला दिया है मिला दिया है। अगर आप भी ऐसा कर सकते हो तो मैं आपको सौभाग्यवान कहूंगा

साथियों भगवान तो अपने काम आयेंगे ही आप करें तो न करें तो भी। तो क्या रामचंद्र जी रावण को मार सकते हैं बिलकुल मार सकते थे। रामचंद्र जी खाली शक्ति थी कि रावण सहित एकोंएक खाली मार डालते और अकेले अपने बलबूते पर सीता जी को छला जाते। लेकिन उनको श्रेय देना था। भक्तों को श्रेय ऐसे ही मौके पर दिया जाता है। भक्त की परीक्षा ऐसे ही मौके पर होती है और वे समय शानदार होते हैं। इम्तहान रोज रोज कहाँ होते हैं? भक्तों के भी इम्तहान हमेशा नहीं होते बहुत दिनों बाद होते हैं। जिसमें आपको बुलाया गया है, उसमें नवरात्रि का अनुष्ठान करने के लिए ही आपको नहीं बुलाया है। आप अनुष्ठान करते हैं बहुत अच्छी बात है। यहाँ गंगा का किनारा हिमालय की गोद गायत्री तीर्थ के पवित्र वातावरण में आप गायत्री का जप कर रहे हैं यह बहुत ही प्रसन्नता और सफलता की बात है, पर आप याद रखिये हमने केवल अनुष्ठान करने के लिए ही आपको नहीं बुलाया। हमारे मकसद बड़े हैं और वे यह है कि आप ऐसे सौभाग्य वाले समय में क्या कुछ लाभ उठा सकते हैं? क्या आप समय को पहचान सकते हैं? क्या आप भगवान की सहायता कर सकते हैं? क्या आप अपने जीवन में कुछ हिम्मत इकट्ठी कर सकते हैं? हम इसलिये बुलाते हैं और हर एक आदमी से बार बार यही सवाल पूछते रहते हैं कि क्या आप इस शानदार समय को पहचान सकते हैं? क्या आपकी अक्ल इतनी मदद करेगी कि आप इस शानदार समय को पहचान लें? अगर आपकी अक्ल इतनी सहायता कर दे और यह बता दे कि यह बहुत ही शानदार समय है तो फिर हम आपको एक और सलाह देते हैं कि ऐसे वक्त आप एक और हिम्मत कर डालना। कौन सी हिम्मत? आप भगवान की माँग को तलाश करे और उसको पूरा करने की कोशिश करे। भगवान की भी कुछ माँगा है। उन माँगों को पूरा करने के लिए जरा आप कोशिश करे तो मजा आ जाये।

क्या माँगें हैं भगवान की? आप अखंड ज्योति के सब पाठक है और जानते हैं। कि प्रज्ञावतार ने क्या माँगा है? प्रज्ञावतार ने यह माँगा है कि हम लोगों के दिमागों की सफाई करे विचारोँ की सफाई करे। प्रज्ञा इसी का नाम है। आदमियों के दिमाग पैने तो हो गये है, अक्ल तो बहुत पैनी हो गयी हैं। अक्लमंद तो इतने हो गये है कि आप देखेंगे तो हैरान रह जायेंगे। अक्लमंद आदमियोँ ने जहाँ एक ओर बड़ी बड़ी इमारतें बनाई है। वही दूसरी ओर इन्हीं अक्लमंदों ने लोहा सीमेंट सब के सब हजम कर लिये है। जहाँ भी जिस भी डिपार्टमेन्ट में चले जाइये सब जगह अक्लमंद लोग मिलेंगे। वे अक्ल लोग तो बेचारे चप्पल चुरा सकते हैं। अक्लमंद लोगों ने सारी दुनिया को धोखा दिया है। दुनिया का सफाया करने की पूरी जिम्मेदारी अक्लमंदों की है। हिन्दुस्तान और पाकिस्तान का बँटवारा कराकर लाखों आदमियों का खून करा देने की जिम्मेदारी अक्लमंदों की ही है आम बेचने वालो की नहीं। यह सब बड़े दिमाग वालो की है। यह सब बड़े दिमाग वालो की है। इसलिए बड़े दिमाग वालो के मस्तिष्क की सफाई करने के लिए ही तो ऐसी लहर आ रही है जो दुनिया में सोचने के तरीके को बदल देगी। प्रज्ञावतार इसी का नाम है। प्रज्ञावतार की क्या माँगे है इसको हम बराबर छापते रहे है। इसको फिर से कहने की जरूरत नहीं है। पर प्रज्ञा अभियान के रूप में आप इस लहर को समझ सकते हैं यह प्रज्ञा अभियान लहर को समझ सकते हैं। यह प्रज्ञा अभियान इंसान का नहीं है अगर इंसान का होता तो हमारे जैसे आदमी इसके लिए कमजोर पड़ते। लेकिन उस महाशक्ति का काम करने के लिए जब हम अमादा है तो फिर आप हमारी सफलताओं को नहीं देखते। आपको हमारी सफलतायें दिखाई नहीं पड़ती। आप देखिये। हमारी सामर्थ्यों प्रतिभा क्षमता और अक्ल को भी देखिये सिद्धियों को भी देखिये सब कुछ देखिये पर मैं एक और बात कहता हूँ आप से कि आप तो इसको देखने की परिस्थिति में भी नहीं हैं क्योंकि जिस आँख से आप देखना चाहते हैं वह आंखें ऐसी नहीं है जो हमारी आध्यात्मिक सफलताओं को और हमारे प्रयासों द्वारा संसार में जो हेरफेर हो रहे है और होने जा रहे है, उनको आप देखने में समर्थ हो सकें।

मित्रो, आप देखें या न देखें पर सारी सफलतायें शानदार है। आप जरा फिर देखना, अभी तो हम है, कब तक जियेंगे कह नहीं सकते लेकिन आप लोगों में से अधिकाँश आदमी जियेंगे। जियेंगे तो फिर देखना और नोट करना कि हमारी सफलतायें कितनी शानदार होती है?क्यों होती है। क्योंकि हमने अवतार के साथ में कंधे से कंधा मिलाकर हनुमान के तरीके से काम करने का निश्चय कर लिया है। राधा एक साधारण से ग्वाले की लड़की का नाम था, किंतु नाचने के लिए वह थोड़े दिन तक कृष्ण का साथ देती रही और राधा हो गयी। किसको किसको कहें शानदार शक्तियों का साथ देने वाले न जाने कहाँ से कहाँ पहुँच गये और क्या से क्या हो गये। इसलिए इस शिविर से हमने आपको खासतौर से यह दाबन देने के लिए बुलाया है कि अगर आपका मन बड़े फायदे का है और बड़े फायदे लायक अगर आपका व्यक्तित्व है तो आप आइये इस मौके को गंवाइये नहीं इस मौके से पूरा पूरा फायदा उठाइये लोगों अब लोगों में से हर एक को हम झकझोरते हैं खासतौर से उनको जो सेवा निवृत्त हो चुके है घर से निवृत्त हो चुके है, जिनके पास कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ नहीं हैं उन सबसे हम प्रार्थना करते हैं अनुरोध आग्रह करते हैं कि अगर आप किसी तरीके से अपना गुजारा कर सकते हो तो आप आइये और हमारी मिलिट्री में भर्ती हो जाइये आप में से हर आदमी को प्रज्ञावतार के कंधे से कंधा मिलाने के लिए हम दावत देते हैं विशेषकर उन लोगों को जिन्होंने अपनी आदतें ठीक कर रखी है, परिश्रमी हैं चरित्रवान है और जिनका वजन भारी नहीं है अर्थात् जिम्मेदारियों का बोझ हल्का है। ऐसे लोगों के लिए सबसे बेहतरीन काम यह है कि अपना गुजारा करने के बात में वे समाज के काम आयें। देश के काम आयें।

मित्रों आप में से हर उन आदमियों को भी हम दावत देते हैं, जो भावनाशील है जिनके ऊपर बहुत भारी वजन नहीं है, तब तो हम ठहरने के लिए कहेंगे। लेकिन थोड़ा वजन है तो उनकी भी सहायता करेंगे। हमें 24 हजार शक्तिपीठों के लिए उतने ही कार्यकर्ता चाहिए। इन इमारतों में प्राण भरने के लिए हमें कार्यकर्ताओं की जरूरत है। चौबीस हजार की कार्यकर्ताओं की जरूरत है। चौबीस हजार की भर्ती करनी है हमें। आप स्वयं अपना इंतजाम कर सकने की स्थिति में हो तो ठीक है, अन्यथा हम आपके खाने का कपड़े का जेब खर्च का इंतजाम बिठा देंगे। आपके बीबी बच्चे के लिए भी जो मुनासिब खर्च होगा वह भी हम देंगे। कौन है हमारी पीठ के पीछे आपको तो दिखाई नहीं पड़ता। आप आँख खोलिए और देखिये कि हमारे पीछे बहुत शानदार शक्ति है। हम खाली हाय है तो क्या हुआ हमारा गुरु तो खाली हाथ नहीं है। हम अपने बाँस के बारे में विश्वास करते हैं हमें यह भी विश्वास हे कि अगर हमें दो हजार कार्यकर्ता रखने पड़े तो भी पैसों का इंतजाम हम कर देंगे। उनमें से अधिकाँश नौकर रखने पड़े तो भी पैसों का इंतजाम हम कर देंगे। इसलिए एक विज्ञापन निकाल देंगे कि जिसे नौकरी करनी हो सीधे शांतिकुंज चले आवें। एक लाख आदमी अगले ही महीने में एप्वाइंट करके दिखा दूँ आपको युग बदलने के लिए बहुत बड़े काम करने पड़ेंगे परंतु यह काम नौकरों से नहीं हो सकेगा। यह काम भावनाशीलों का है, त्यागियों का है। इसलिए हम आपकी खुशामदें करते हैं कि हमको भावनाशील आदमियों की जरूरत है उनको हम प्रामाणिक कह सकें जिनको हम परिश्रमी कह सके। जो परिश्रमी है वे प्रामाणिक नहीं है और वे जो प्रामाणिक है वे परिश्रमी नहीं है और जो प्रामाणिक एवं परिश्रमी है उनको विश्व की जानकारी नहीं है। हम इनको कब तक दिखायेंगे। कितना सिखाएंगे इनको सिखाने में कितना समय लगेगा? हमारे पास समय बहुत कम है हमको आदमियों की जरूरत हे अगर आप स्वयं उन आदमियोँ में शामिल होने चाहते हो तो आइये हम स्वागत करते हैं और आपको यह विश्वास दिलाते हैं कि आप जो भी काम करते हैं उन सब कामोँ की बजाय यह बेहतरीन धंधा हैं इससे बढ़िया कोई धंधा नहीं हो सकता। हमने किया है, इसलिए अनेकों को यकीन दिला सकते हैं कि यह बहुत फायदे का धंधा है।

इन दिनों हमारे पास केवल दस लाख आदमी है जो बहुत कम है। सारी दुनिया में चार सौ पचासा करोड़ आदमी रहते हैं। अकेले हिंदुस्तान में इन दिनों सत्तर करोड़ से ज्यादा आदमी हो गये है। इन सब तक पहुँचने के लिए दस लाख आदमी बहुत थोड़े है। अब हमें अपने कार्य क्षेत्र का विस्तार करने के लिए आपकी सहायता की जरूरत है। इसके लिए अब हमको वह वर्ग ढूंढ़ना पड़ेगा जिसको विचारशील वर्ग कहते हैं भावनाशील वर्ग कहते हैं त्याग और बलिदान के लिए आगे बढ़ने वाला वर्ग कहते हैं। अब हमें इंजीनियरों की जरूरत है, ओवरसियरों की जरूरत है। हमको उनकी जरूरत है जो राष्ट्र के निर्माण के काम आ सके। नये वर्ग में नये क्षेत्र में जाने के लिए आप सब हमारी मदद कर दीजिए। क्या काम करेंगे? हमने एक बहुत ही शानदार भवनी तलवाल निकाली है। ऐसी शानदार योजना दुनिया में आज तक नहीं बनी। क्या बनी है? हमने हर दिन हर पढ़े लिखें को नियमित रूप से बिना मूल्य युग साहित्य पढ़ाने की योजना बनायी है। आप पढ़े लिखे लोगों तक हमारी आवाज पहुँचा दीजिए। लोगों में आप यह मत कहना कि गुरुजी बड़े सिद्ध पुरुष है बड़े महात्मा है और सबको वरदान देते हैं वरन् यह कहना कि गुरुजी एक ऐसे व्यक्ति का नाम है जिसके पेट में से आग निकलती है, जिनकी आँखों में से शोले निकलते हैं आप ऐसे गुरुजी का परिचय कराना सिद्ध पुरुष का नहीं। विचारक्रांति अभियान को हमने युग साहित्य के रूप में लिखना शुरू कर दिया है और हर आदमी को स्वाध्याय करने के लिए मजबूर किया है हमारे विचारो को आप पढ़िये और हमारी आग की चिनगारी को जो प्रज्ञा अभियान के अंतर्गत युग साहित्य के रूप में लिखना शुरू किया है उसे लोगों में फैला दीजिए जीवन की वास्तविकता के सिद्धाँत को समझिये ख्वाबी दुनिया में से निकलिए और आदान प्रदान की दुनिया में आइये। आपके नजदीक जितने भी आदमी है उनमें आप हमारे विचार फैला दीजिए। यह काम आप अपने काम करते हुए भी कर सकते हैं आप युग साहित्य लेकर अपने सर्किल में पढ़ाना अपने पड़ोसियों को पढ़ाना शुरू कर दीजिए। उनको हमारे विचार दीजिए हमको आगे बढ़ने दीजिए संपर्क बनाने दीजिए और हमारी सहायता कर दीजिए ताकि हम उन विचारशीलों के पास शिक्षितों के पास जाने में समर्थ हो सके। इससे कम में हमारा काम चलने वाला नहीं है और न ही हमें संतोष होगा। मित्रो हमारे विचारो को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने है तीखे हे हमारी सारी शक्ति हमारे विचारो में सीमाबद्ध है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं वह सिद्धियों से नहीं अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारो को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। अब हमको नयी पीढ़ी चाहिए इसके लिए आप पढ़े लिखे विचारशीलों में जाइये उनके घर में जाइये खुशामद करिये उनका जन्मदिन मनाइये दरवाजा खटखटाइये। यह हमारा नया कार्यक्रम है।

मित्रों युग साहित्य पढ़ाना प्रज्ञा अभियान पढ़ाना जन्म दिन मनाना यह तीन कार्यक्रम प्रज्ञा अभियान के अंतर्गत आते हैं। आप में से जो आदमी प्रज्ञापुत्रों के रूप में हमारे साथ शामिल हो सकते हैं, वे अंगद के तरीके से आये नल नील के तरीके से आये हनुमान के तरीके से आये केवट के तरीके से आये। आये तो सही कुछ करे तो सही हमारे लिए। हम आपके लिए करेंगे आप हमारे लिए करिये। हमने गायत्री माता के लिए किया है और गायत्री माता ने हमारे लिए किया है। हमने अपने गुरु के लिए किया है और गुरु ने हमारे लिए किया है। क्या आप हमारे काम नहीं आयेंगे? आप हमारे काम आइये और हम आपके काम आयेंगे। अब हमारा हर एक कार्यक्रम में जाना नहीं हो सकेगा, लेकिन आप में से हर एक सक्रिय कार्यकर्ता को साल भर में एक बार अपने गुरुद्वारे में अवश्य आना चाहिए। अभी तक आप हमारे पास वरदान माँगने के लिए आते रहे हैं पर अब हम आपसे वरदान माँगते हैं आपके पसीने का वरदान आपकी मेहनत का। जब आप देने के लिए आना कुछ पसीना बहाने के लिए आना कुछ समय देने के लिए आना कुछ अकल देने के लिए आना। मित्रो अब हमें उन लोगों को बुलाना हे जो आशीर्वाद देने में समर्थ हो सके हमारे कंधे से कंधा मिला सके। जो हमारा गोवर्धन उठाने में लाठी का टेका लगा सके। जो हमारे कंधे से कंधा मिला सके। जो हमारा गोवर्धन उठाने में लाठी का टेका लगा सके। जो हमारे समुद्र पर पुल बाँधने में ईंट और पत्थर ढो सके और गाँधी जी के कंधे से कंधा मिलाकर जेल जा सके। हमने सारे विश्व को अपना कार्य क्षेत्र बना लिया ह


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