प्रज्ञापुत्रों का आश्वासन (Kavita)

November 1994

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आपने जो अपेक्षा करी मातु श्री ! अब उसे पूर्ण करके दिखाएँगे हम। आप सी माँ मिली श्रेय सौभाग्य से, योग्य संतान का व्रत निभाएँगे हम॥

पूज्यवर की बताई डगर हम चले, जिस दिशा में कहा बस उधर हम चले, पर थके पाँव या कंठ, सूखा,तभी, आपके स्नेह में भी, भीगकर हम चले,

आप जो स्नेह हम पर लुटाती रही, स्नेह का पूर्णतम ऋण चुकाएँगे हम। आप सी माँ मिली श्रेय सौभाग्य से, योग्य संतान का व्रत निभाएंगे हम॥

हर तरफ छा गया जब कभी घोर तम, थे भ्रमित जब, नहीं पा सके पंथ हम, थाम उँगली, चलाया हमें आपने , जब कभी डगमगाने लगे थे कदम

आपकी प्रेरणा की सुखद छाँह में, संयमित हो सदा पग बढ़ाएंगे हम। आप सी माँ मिली श्रेय सौभाग्य से, योग्य संतान का व्रत निभाएंगे हम॥

हो भले ही, प्रलय मेघ छाये रहे, ज्वार आकंठ हमको डुबाये रहे, स्नेह ममता मिली आपसे इस कदर, कष्ट हम जिंदगी के, भुलाये रहे

मातु! विश्वास दो हम सभी को पुनः युग-युगों तक वही स्नेह पायेंगे हम। आप सी माँ मिली श्रेय सौभाग्य से, योग्य संतान का व्रत निभाएंगे हम॥

शक्ति दो माँ ! कि हम, प्राणपण से चलें, सूर्य की जगमगाती, किरण से चले, हम लिये स्नेह संदेश गुरु शक्ति कर, काँधे काँवर लिये हम श्रवण से चलें

ज्ञान-गंगा लिये मातृ गुरुदेव की, विश्व के हर नगर गाँव जाएँगे हम। आप सी माँ मिली श्रेय सौभाग्य से, योग्य संतान का व्रत निभाएंगे हम॥

हम न देखे, सुबह दोपहर शाम को, विघ्न बाधा, थकान या कि विश्राम को,

हम सजग सैनिकों से सदा चल पड़े, लोकहित के, कठिन से कठिन काम को ,

आपने सिंह शावक कहा है हमें दूध माँ का न बिलकुल लजाएँगे हम। आप सी माँ मिली श्रेय सौभाग्य से, योग्य संतान का व्रत निभाएंगे हम॥

शचीन्द्र भटनागर


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