उत्तेजना-आवेग और आहार

November 1994

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आहार और आवेग का परस्पर गहरा संबंध है। संवेग के गड़बड़ाने घटने या बढ़ने से खुराक प्रभावित होती है यह सर्वविदित है। खुराक यदि प्रभावित हुई तो उसके दो प्रकार के परिणाम सामने आते है-दुर्बलता अथवा मोटापा। भोजन की मात्रा कम होने से कमजोरी आती है और ज्यादा होने पर स्थूलता बढ़ती है। स्थिर स्वास्थ्य तभी बना रह पाता है, जब आवेग नियंत्रित हो।

एम एस गजेनिगा अपनी रचना पैटर्न्य ऑफ इमोशन्स” में लिखते हैं। कि हमारा पूरा शरीर तंत्र और उसकी गतिविधियाँ संवेगों पर आधारित है। इसके अच्छा होने पर बुरी प्रकृति समस्त प्रणाली को असामान्य स्तर का बना देती है। ऐसी स्थिति में प्रत्यक्ष दिखाई पड़ने वाले सूक्ष्म आँतरिक क्रियाकलाप भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। भूख चूँकि सूक्ष्म आभ्यन्तरिक हलचल की परिणति है, अतः उस पर भी भावनात्मक उथल पुथल का स्पष्ट असर दिखाई पड़ता है। वे कहते हैं कि अध्ययनों के दौरान यह देखा गया है कि आहाद एवं तनाव की स्थिति में आहार की मात्रा बढ़ जाती है, जबकि उदासी और निराशा उसे अस्वाभाविक रूप से घटा देती है।

यह सच है कि बार बार अधिक मात्रा में अधिक कैलोरी युक्त भोजन के लेने से मोटापा बढ़ता है, आखिर तनाव के दौरान भोजन लेने की बार बार आवश्यकता क्यों महसूस होने लगती है? इस संबंध में शरीर शास्त्रियों का कहना है कि इसे आवश्यकता या इच्छा कहने के बजाय शरीर क्रिया का एक अंग मानना ज्यादा उपयुक्त होगा। उनके अनुसार शरीर जब तनावग्रस्त होता है तो भीतरी प्रणालियाँ उसे मिटाने के लिए अपने ढंग से प्रयास आरंभ कर देती है जो आँतरिक दबाव को घटा सके। इस क्रम में भूख उत्तेजित करने वाले रस स्राव भी पैदा होने लगते हैं। इस स्राव के द्वारा काया तनाव को न्यून करने का उपक्रम करने लगती है। यही कारण है कि भोजन के मध्य व्यक्ति तनाव से कुछ राहत अनुभव करते हैं। यह राहत यो तो अस्थायी और अस्थिर होती है, पर जब तक रहती है, व्यक्ति को आरामदायक स्थिति प्रदान किये रहती है।

इसी प्रकार जब कभी कोई बहुत गहरा भावनात्मक धक्का पहुँचता है,तो एक बार फिर समस्त आँतरिक संस्थानों का व्यक्तिक्रम हो जाता है और उससे आदमी दूसरे ढंग से प्रभावित होता है चूँकि तनाव और विषाद में बाह्य लक्षणों के साथ साथ आँतरिक संरचना में भी फर्क होता है इसलिए देह संस्थान उन दोनों के साथ पृथक ढंग से पेश आता है। तनाव में जहाँ भूख उत्तेजित होती है वहीं अवसाद में वह घटती है दबाव की स्थिति में यदि यदि क्षुधा बढ़ती है तो इसका एक ही मतलब है शिथिलता लाना और कस्बा को अस्वाभाविकता से मुक्त बनाये रखना। चूंकि उदासी की दशा में शरीर प्रायः तनाव रहित होता है, अतः भूख बढ़ा कर उसे बटाने मिटाने का कोई प्रश्न ही पैदा नहीं होता। इसी कारण से ऐसे समय में भीतरी तंत्र क्षुधावर्धक रस उत्पन्न नहीं करते।

हाल की शोधों से भी इस तथ्य को बल मिला है।कि भोजन और आवेश के बीच गहरा लगाव है। शिकागो मेडिकल स्कूल के अनुसंधानकर्त्ताओं का कहना है कि डाइटिंग करने वाले लोग सामान्यजनों की तुलना मेँ तनाव आवेग और उत्तेजना के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। उनके अनुसार यदि ऐसे लोग डरावने दृश्य देख ले तो उन्हें संवेग में असामान्य ढंग से वृद्धि हो जाती है। इस बढ़ोत्तरी के कारण इस मध्य उनकी आहार की मात्रा में भी आश्चर्य जनक वृद्धि होती देखी गई। इस स्थिति में मोटापा भी बढ़ने लगता है।

एक प्रयोग के दौरान वहाँ के अन्वेषणकर्ताओं ने इसके 14 स्त्रियाँ ऐसी थी जो डाइटिंग करती थी। इन सभी को निश्चित संख्या में कुछ सुखं खाद्य पैकेट दिये गये। इसके उपरांत उन्हें एक भयोत्पादक फिल्म हलोबीन के कुछ डरावने दृश्य दिखाये गये। आधा घंटा पश्चात फिल्म की समाप्ति पर जब उसकी खाद्य सामग्री का लेखा जोखा लिया गया तो अध्ययनकर्ता यह देख कर विस्मय में पड़ गये कि जो महिलाएँ नियमित डाइटिंग करती थी, उन सबने डाइटिंग नहीं करने वाले ग्रुप में दुगुने परिमाण में भोजन उदरस्थ किया था।

उक्त परीक्षण से वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला कि डरावने दृश्यों से तनाव जन्य आवेग में वृद्धि होती है। काया उसे अपने ढंग से सुधारने के क्रम में आंतरिक क्रिया विधि में परिवर्तन लाती है। अंतर के इस बदलाव के कारण भूख बढ़ाने वाले रसों का निर्माण होता है। इससे जठराग्नि की ज्वाला भड़कती है। क्षुधा बढ़ती है, तो बार बार खाने की आवश्यकता अनुभव होती है, जिसके कारण मोटापे में उत्तरोत्तर विकास होने लगता है। उस वृद्धि के साथ शारीरिक कठिनाइयाँ भी बढ़ने लगती है, जिससे व्यक्ति तब छुटकारा नहीं पा सकता जब तक इसके पीछे के निमित्त को नियंत्रित न किया जाय। देखा गया है कि भावनात्मक संवेग को साथ लेने पर फिर इस प्रकार की शिकायत देर तक टिकी नहीं रह पाती। इसलिए विशेषज्ञ इस संबंध में प्रायः यह सलाह देते देखे जाते हैं कि आवेग और उत्तेजना पर यदि अंकुश लगाया जा सका तो एक सीमा तक मोटापे को नियंत्रित किया जा सकना संभव है।

यो तो चर्बी बढ़ने के कई अन्य कारण भी है, पर सबसे प्रमुख भावनात्मक अव्यवस्था ही है पर सबमें प्रमुख भावनात्मक अव्यवस्था ही है। इससे भीतरी तंत्रों पर दबाव पड़ता है, जो चर्बी को बढ़ाने लगता है। इन दिनों अमरीका में पिछले समय की तुलना में 51 प्रतिशत लोगों में यह शिकायत बढ़ी है। इसका प्रमुख कारण वहाँ डरावने और हिंसक फिल्मोँ के प्रति बढ़ती लोकप्रियता है। स्वास्थ्य संतुलन वस्तुतः अधिकाधिक इस बात पर निर्भर है कि हमारे आहार विहार और दिनचर्या क्या है? किस वातावरण और परिवेश में हम रहते है? हमारी संवेगात्मक स्थिति कैसी है? इन बातों पर समुचित ध्यान दिया जा सके और इन्हें यदि असामान्य बनने से रोका जा सके तो उन कारकों को भी नियंत्रित किया जा सकना शक्य है जो शारीरिक स्थूलता वृद्धि के लिए जिम्मेदार है।


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