ऐश्वर्य बढ़े तो अंतरंग का

November 1994

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विस्तार और वैभव के आधार पर पदार्थ और मनुष्य के मूल्याँकन करने की प्रथा अब पुरानी पड़ चुकी है। इसके स्थान पर अब गुण को महत्व मिलने लगा है, जो उचित ही शक्तिशाली जो जितना धनवान वह उतना बलवान एवं सुखी पिछले दिनों की इन मान्यताओं की विज्ञान ने गलत सिद्ध कर दिखाया है और कहा है कि आकार प्रकार एवं बाहरी बड़प्पन की तुलना में निर्णय निर्धारण का मूल आधार आँतरिक होना चाहिए। शक्ति का वास्तविक उद्गम वहीं है। हर छोटे से छोटे पदार्थ व्यक्ति एवं साधन में यह शक्ति इतने आश्चर्यजनक परिणाम में मौजूद है कि यदि उसे बारीकी से ढूंढ़ने परखने और सही रीति से प्रयुक्त करने की विद्या हम जान जायँ तो छोटे कण से लेकर तुच्छ जैसे दीखने वाले व्यक्तित्व भी ऐसे अद्भुत परिणाम प्रस्तुत कर सकते हैं जिन्हें देख कर दाँतों तले उँगली दबानी पड़े।

कण के भीतर रहने वाली परमाणुओं की शक्ति इस तथ्य को प्रत्यक्ष रूप से प्रमाणित करती है। व्यर्थ का छोटे-से-छोटे घटक अणु कितना सशक्त है और वह कितने बड़े कार्य कर सकता है, इसे देखने समझने पर इस सच्चाई को हृदयंगम करने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए कि छोटा समझा जाने वाला व्यक्ति भी यदि अपने को समझा जाने वाला व्यक्ति भी यदि अपने को समझ सके, और जो कुछ वह है, उतने का ही नहीं उपयोग कर सके, तो वह कर सकता है, जिसके लिए सामान्य बुद्धि बहुत बड़े साधनों की आवश्यकता अनुभव करती है।

अब परमाणु पदार्थ की सबसे छोटी इकाई नहीं रहा। उसके भीतर सौ से भी अधिक प्राथमिक कण खोज निकाले गये है। इनको भी अंतिम इकाई नहीं कहा जा सकता।इनके भीतर जो सूक्ष्मता के अनुपात से अधिक रहस्यमय स्पंदन, स्फुरण भरे पड़े है, उनका रहस्योद्घाटन होना अभी शेष है। अब विज्ञान अधिक गहनतम स्तर में प्रवेश कर रहा है। पिछले समय के प्रतिपादन अब झुठलाये जा रहे हैं। ‘ईथर’ को पहले इस मान्य तथ्य के रूप में स्वीकार किया गया था, पर अभी उसकी मान्यता का कोई बहुत समय भी नहीं गुजरा था कि मार्स तथा माइकेलसन नामक वैज्ञानिकों ने उसके अनस्तित्व को प्रमाणित कर दिया। शब्द तरंगों को वह करने वाले इस ईथर की खोज पर फिट्ज गेराल्ड और लारेण्ट्ज को बहुत ख्याति मिली थी और उनकी शोध को बड़ी उपयोगी मानकर सर्वत्र मान्यता मिली थी, पर अब उसके नकारात्मक प्रबल प्रतिपादन ने विज्ञान की अन्य मान्यताओं के भी खोखली होने की आशंका उत्पन्न कर दी है। आइन्स्टीन का सापेक्षवाद अब उतना उत्साहवर्धन नहीं रहा। उसमें बहुत सी शंकाओं और त्रुटियों की संभावना समझी जा रही है।

महर्षि कणाद ने अपने वैशेषिक दर्शन में अपने ढंग से यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि यह संसार छोटे छोटे कणों से मिलकर बना है। ईसा से 400 वर्ष पूर्व यूनानी दार्शनिक देमोक्रितु भी अणुवाद का प्रतिपादन करते थे। इससे पूर्व यह जगत पंचतत्वों का बना माना जाता था। अब पंचतत्व का बहुत मोटा वर्गीकरण है। पानी अपनी आप में मूल सत्ता नहीं रहा। उसे कुछ गैसों का सम्मिश्रण मात्र अंगीकार किया गया है। वायु की स्थिति भी इससे भिन्न नहीं। पुरानी धारणाएँ अपने काल में बहुत सम्मानित थी, पर व अब त्रुटिपूर्ण ठहरा दी गई हैं।

न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण सिद्धाँत एक सीमा तक ही सत्य है। यदि कोई राकेट “इस्केप वेलोसिटी” से गति करने लगे, तो गुरुत्वाकर्षण नियम गलत हो जायेंगे। भू उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करना और अंतर्ग्रही सभ्यता की खोज में निकलने वाले यानों को इसी गति से पृथ्वी के आकर्षण से बाहर निकाला जाता है।

रेडियम धातु द्वारा उत्पन्न होने वाले विकिरण की खोज होने से पूर्व तक यही समझा जाता था कि पदार्थ को ऊर्जा में नहीं बदला जा सकता है। दोनों का अस्तित्व स्वतंत्र है, पर अब अणु विस्फोट के पश्चात् यह स्वीकार लिया गया है कि पदार्थ और ऊर्जा वस्तुतः एक ही सत्ता के दो रूप हैं और उन्हें आपस में बदला जा सकता है। चुम्बक संबंधी पुरातन मान्यताओं में रदरफोर्ड ने नये तथ्य जोड़े। उनने सिद्ध किया कि रेडियोधर्मी विकिरण का एक भाग जब एक दिशा में मुड़ता है, तो उसे अल्फा विपरीत दिशा में मोड़ता है तो वीटा और बिलकुल न मुड़ने वाला प्रवाह गामा किरणों के रूप में निस्सृत होता है। यह तीनों प्रवाह अपने अपने ढंग के अनोखे हैं। अल्फा विकरण को कागज की पतली झिल्ली में रोका जा सकता है किंतु वीटा विकिरण अल्युमिनियम की कुछ मिली मीटर मोटी चादर को भी पार कर सकता है। गामा विकिरण को सकती है।

पुरानी मान्यता का परमाणु ठोस था। पीछे उसमें भी ढोल की पोल पायी गई है। आकाश में घूमने वाले पिंडों की तरह परमाणु के गर्भ में कुछ प्राथमिक कण भ्रमण तो करते हैं,फिर भी उसमें खाली जगह बहुत बच जाती है। यदि इलेक्ट्न सहित परमाणुओं के नाभिकों को पूरी तरह सटा कर दबाया जा सके, तो एक घन से.मी. नाभिकीय द्रव्य का भार 10 करोड़ टन के लगभग हो जायेगा।

अणु शक्ति की झाँकी तो कर ली गई, पर साथ ही यह खतरा भी था कि विस्फोट से जो हानिकारक विकिरण उत्पन्न होगा, उस पर नियंत्रण कैसे किया जा सकेगा। अणु विज्ञान के उदय काल यह कल्पना की गई थी कि अत्यंत छोटे आकार के प्लूटोनियस इंजन लगाकर मोटरें चलायी जा सकेगी पर वह अब पूरी होती नहीं दीखती क्योंकि अणु विस्फोट में जो नाभिकीय विकिरण फैलता है वह न केवल पदार्थों को वरन् जीवकोषों को भी नष्ट करके रख देता है। उससे बचाव करने के लिए छोटे आकार के अणु इंजन के निमित्त किले जैसी मोटी दीवारें खड़ी करनी पड़ेगी। ऐसी दशा में वह कल्पना मस्तिष्कीय उड़ान बन कर ही रह जायेगी।

फिर भी अणु बिजली घर बनाये जा रहे हैं और प्रयत्न किया जा रहा है कि इस शक्ति को वशवर्ती बनाकर मनुष्य की शक्ति आवश्यकता को पूरा किया जाय। इस दिशा में सफलता भी मिली है और आशा भी बँधी है। वह दिन दूर नहीं जब हानि रहित अणु बिजली घर सामान्य बिजली घरों की तरह ही कार्यान्वित होने लगेंगे। अब तक जितना यूरेनियम प्राप्त कर लिया गया है, वह 100 खरब टन कोयले से मिलने वाली शक्ति के बराबर है।

अणु ऊर्जा हमारे लिए कितने ही प्रयोजन सिद्ध कर सकती है। चिकित्सा जगत, कृषि, उद्योग, यातायात युद्ध कौशल आदि कितने ही उद्देश्य उससे चमत्कारी स्तर पर पूरे किये जा सकते हैं।

कैंसर चिकित्सा के लिए अणु शक्ति द्वारा विनिर्मित विशिष्ट कोबाल्ट बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। रेडियो सक्रिय अणुओं के द्वारा एनीमिया का इलाज सफलतापूर्वक होने लगा है। पैलीसा इथोमिया वीरा नामक कष्टसाध्य रक्त रोग के उपचार में रेडियो सक्रिय फास्फोरस के इंजेक्शन सफल रहे है। एजाइना पेक्टोरिस नामक हृदय रोग में तथा थाइराइड कैंसर में रेडियो सक्रिय आयोडीन अच्छा काम करता है। शरीर के पोले भागों में जहरीला पानी भर जाने की स्थिति में रेडियो सक्रिय स्वर्ण तथा ट्यूमर और आँख के कैंसर में रेडियो सक्रिय स्ट्रान्सियम ने चमत्कार दिखाया है। रेडियो सक्रिय आइसोटोपों से मनुष्यों तथा पशुओं के कितने ही रोगों की सफल चिकित्सा होने लगी है। अमेरिका में इस प्रकार के उपचारों के लिए विशेष रूप से अतिरिक्त आणविक अस्पताल खुले हुए है।

कृषि क्षेत्र में अणु ऊर्जा की सहायता से अधिक मात्रा में एवं अधिक पौष्टिकता युक्त अन्न, शाक फल आदि उगाने के संबंध में सुविस्तृत खोज हो रही है और पता लगाया जा रहा है कि बलिष्ठ पौधे सशक्त खाद, कीड़ों से फसलों की रक्षा एवं अधिक उत्पादन में अणु ऊर्जा किस प्रकार और किस हद तक सहायक हो सकती हैं। शोध संस्थानों को उम्मीद है। शोध संस्थानों को उम्मीद है कि आने वाले समय में ऐसी पादन नस्लें तैयार की जा सकेंगी जो हर प्रकार की प्रतिकूलता का सामना करते हुए अच्छी पैदावार दे सके।

अमेरिकी परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष ने वैज्ञानिकों की एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कुछ समय पूर्व कहा था अणु शक्ति की खोज बड़े मौके पर हो गई। यदि उसमें विलंब हुआ होता, तो ईंधन के अभाव में समस्त संसार की प्रगति का क्रम बेतरह ठप्प पड़ जाता।

अभी अणु शक्ति उत्पादन में यूरेनियम धातु का उपयोग प्रधान रूप से होता है पर आगे चल कर उसका स्थान थोरियम के ले लेने की आशा है। यूरेनियम का भंडार बहुत छोटा है, पर थोरियम विश्वभर में बड़े पैमाने पर संव्याप्त है।

अब कोयले की कमी पड़ने की भावी चिंता से मुक्ति पायी जा सकेगी 9 पौण्ड जितने यूरेनियम से उसकी ऊर्जा प्राप्त की जा सकेगी जितनी 1500 टन कोयला जलाने पर प्राप्त होती हैं।

अतीत काल में जब आग मनुष्य के हाथ लगी थी, तब भी उसके सामने यही समस्या थी कि उसकी हानियों से कैसे बचा जाय और लाभ

कैसे उठाया जाय? देर सबेर में उसने इसका रास्ता भी निकाल लिया। अब हम आग से बेखट के लाभ उठाते हैं और उसकी भयंकर संभावना से अपना बचाव कर लेते हैं। अगले दिनों अणु ऊर्जा के संबंध में प्रस्तुत कठिनाई को भी हल कर लिया जायेगा और इस महादैत्य को मनुष्य की सेवा करने के लिए बाध्य किया जा सकेगा।

मनुष्य के भीतर जड़ अणु शक्ति से भी उच्चकोटि की जीवाणु शक्ति से भी उच्चकोटि की जीवाणु शक्ति मौजूद है। अणु से जीवाणु की क्षमता अधिक प्रचंड होना स्वाभाविक है अणु समूह का थोड़ा सा यूरेनियम जब इतनी शक्ति उत्पन्न कर सकता है, तो असंख्य जीवाणुओं के समूह मानवी व्यक्तित्व की क्षमता कितनी महान हो सकती है, इसका अनुमान लगाया जाना कुछ कठिन नहीं होना चाहिए। इतने पर भी हम दीन हीन स्थिति में पड़े रहकर कष्ट कठिनाई इसलिए भोगते रहते हैं क्योंकि हमने एक गलत धारणा यह बना ली है कि जो लौकिक रूप से वैभववान् है, वही सौभाग्यवान हो सकता है, जबकि अन्दर के ऐश्वर्य का लेखा जोखा लिया जाय तो वह वाह्य वैभव से अनेकों गुना बढ़ा चढ़ा ज्ञात होगा। मनुष्य इससे अनभिज्ञ है इसी कारण आज वह पतनोन्मुख बना हुआ है जिस दिन उसे सही सही आत्मबोध हो जायेगा, उसी क्षण उसको दीनता समाप्त होकर एक ऐसा उपलब्ध हो जायेगा, जिसे उच्च और गरिमामय कहा जा सके। फिर बहृ से दरिद्र होते हुए भी मनुष्य अन्दर से महान और बलवान बन का सदा इस तथ्य को सिद्ध करता रहेगा कि अंतस् की विशालता और अपना के आगे बाहरी बड़प्पन तुच्छ और होगा है।


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