दुर्भाग्य का रोना (Kahani)

May 1994

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हिन्दी के ख्याति-लब्ध साहित्यकार बालकृष्ण शर्मा ‘ नवीन’ का जीवन अभावों में बीता। जब भी कभी इस विषय पर चर्चा चलती तो वे कहते ‘ ‘ भई हम तो उन लोगों में से हैं, जिन्होंने अपनी जिंदगी सड़कों पर काट दी और मरने के समय अस्पताल में पहुँच गए। वे कहा करते थे- साधन सुविधाओं के आधार पर प्रतिभा का आकलन नहीं किया जा सकता और न ही प्रतिभा संवर्धन हेतु इनकी आवश्यकता है।

यह तथ्य उनके जीवन में पूरी तरह घटित हुआ। गरीबी में जीने पर भी उन्होंने अपनी क्षमताओं को स्वयं के हित में नियोजित करने की जगह राष्ट्र के हित में नियोजित करना श्रेयष्कर माना। साहित्य भी उनके लिए सेवा का माध्यम बना।

चीन के प्रसिद्ध चित्रकार “होने एकनान” के बचपन में ही न तो हाथ रहे न पाँव। इस विकलाँग साहसी बालक ने वर्षों तक अभ्यास करके मुँह में पेंसिल दबाकर चित्र बनाने में सफलता अर्जित कर ली और लोगों को यह दिखला दिया कि मनुष्य उपलब्ध साधनों से बहुत कुछ कर सकता है। पेंसिल से चित्र बनाने के उपराँत जीभ से ब्रश का काम लेता, मुँह में रंग भरकर पेंटिंग करता। इस प्रकार अपंग होते हुए भी ‘होने एकनान’ ने चीन के चित्रकारों में अद्वितीय स्थान पाने का गौरव प्राप्त किया। उसने दुर्भाग्य का रोना कभी नहीं रोया।


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