स्वतंत्रता संग्राम के समय की बात है। लालबहादुर शास्त्री नहीं चाहते थे कि उनके बंदी बनाये जाने पर उनकी माता, पत्नी और परिवार के लोग रोयें। अतः उन्होंने पहले ही अपनी माताजी को समझाया तो बोली-”लेकिन बेटा मोह-ममता का भी अपना एक स्थान है। प्रियजन के कष्ट में दुःखी हो जाना या रो पड़ना कोई बुरा तो नहीं?”
आप ठीक कहती हैं, पर यदि ऐसे अवसरों पर प्रसन्नता व्यक्त की जाय, तो बच्चों को आदर्श की प्रेरणा मिलेगी। बेटे का यह युक्ति-युक्त कथन माँ का मानना व तद्नुरूप आचरण करना पड़ा।
परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी