अनावश्यक आवेश (Kahani)

May 1994

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अनावश्यक आवेश एवं विशेष व्यक्ति को संत्रस्त करना अंततः दुःख पहुँचाता है।

एक साँप को बहुत गुस्सा आया। उसने फन फैलाकर गरजना और फुफकारना शुरू किया और कहा - ‘मेरे जितने भी शत्रु हैं, आज उन्हें खाकर ही छोड़ूँगा। उनमें से एक को भी जिन्दा न रहने दूँगा। मेढ़क, चूहे, केंचुए और छोटे - छोटे जानवर उसके उस गुस्से को देखकर डर गए और छिपकर देखने लगे, देखें आखिर होता क्या है ? साँप दिन भर फुसकारता रहा और दुश्मनों पर हमला करने के लिए दिन भी इधर-उधर बेतहाशा भागता रहा।

फुसकारते-फुसकारते उसके गले में दर्द होने लगा। शत्रु तो कोई हाथ आया नहीं, पर कंकड़ - पत्थरों की खरोंचों से उसकी सारी देह जख्मी हो गयी, शाम को चकनाचूर होकर वह एक तरफ जा बैठा।

गुस्सा करने वाला शत्रुओं से पहले अपने को ही नुकसान पहुँचाता है।


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