उत्तिष्ठ युद्धस्वभारत (Kahani)

April 1992

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आज दाँव पर लगा देश का, स्वाभिमानी सेनानी। और पड़ा सोया तू कैसे, जाग वीर बलिदानी॥

भारत माँ ने था तुझको, पौरुष का पाठ पढ़ाया। बलिपथ पर तूने, आगे ही आगे कदम बढ़ाया॥

लेकिन आज कौन सी तुझ पर, हाय पड़ गई छाया। सब कुछ लुटा जा रहा लेकिन तुझको होश न आया॥

रे दृग खोल और पढ़ पिछली गौरवपूर्ण कहानी।

विदेशियों के छद्म जाल में, फंसा देश यह सारा। असम और पंजाब कट रहा, है कश्मीर हमारा॥

भाई को भाई से अपने, लड़वाते कटवाते। हाय हन्त हम किन्तु न उनकी, चाल समझ हैं पाते॥

अपने ही सब रिश्ते-नाते, टूट रहे जिस्मानी।

अपराधों कास असुर चतुर्दिक्, झंडा गाड़ रहा है। बहन, बेटियों की इज्जत से, हो खिलवाड़ रहा है॥

हा-हाकार मचा धरती में भारी मारा मारी। ऋषियों की संतानों तुम पर, क्यों चढ़ रही खुमारी॥

जाग राष्ट्र के पौरुष जागे, सोई हुई जवानी।

सूरज रुके, चन्द्रमा रोये, रीते सागर का जल। आज हवाओं में करनी है, फिर से ऐसी हलचल॥

इज्जत लगी दाँव पर अपनी, जागो उसे बचाओ। नई विचार क्राँति का आओ, फिर से बिगुल बजाओ॥

उदासीन अर्जुन फिर से, पढ़ गीता वाली बानी।

-बलरामसिंह परिहार


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