पराक्रम वस्तुओं का उलट-पलट करता है और घटनाएँ विनिर्मित करता है, किन्तु मनुष्य के भाव संस्थान में हलचल उत्पन्न करना, दिशा देना और कुछ से कुछ बना देना वाणी के लिए ही सम्भव है। संसार में जितनी उथल-पुथल होती रही है, उनमें वाणी की भूमिका प्रधान रूप में रही है। इसी लिए इसे शक्ति कहकर वर्णित किया गया है। हम चाहे तो इसका सदुपयोग कर स्वर्ग का निर्माण कर सकते हैं और दुरुपयोग कर नरक का-यह पूर्णतः प्रयोक्ता पर निर्भर करता है।