सृष्टि के अनसुलझे रहस्य

April 1992

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मनुष्य का प्रायः यह स्वभाव होता है कि वह सदा अपनी ही अवस्था एवं स्तर की वस्तुओं और घटनाओं को समझने में समर्थ हो पाता है। या कुछ हद तक अपनी परे की अवस्था को, पर पूरी तरह उस उच्च अवस्था को वह समझ सकता है ऐसा नहीं कहा जा सकता। अक्सर चोर चोर को आसानी से पहचान लेता है। इसमें वह तनिक भी गलती नहीं करता, किंतु एक फटेहाल संत को पहचानने में उसकी आंखें धोखा खा सकती हैं क्योंकि दोनों का स्तर असमान होता है। इस प्रकार पुष्प सुगन्धित क्यों होते है? इसका उत्तर रसायनशास्त्री यह कह कर दे सकते हैं कि इसमें अमुक अमुक रसायन हैं इसलिए इसकी ऐसी खुशबू है, पर यह रसायन कहाँ से किस प्रकार आये? इसका जवाब कोई स्थूल बुद्धि वाला नहीं, वरन् सूक्ष्म जगत में गति रखने वाला, अन्वेषण अनुसन्धान करने वाला सूक्ष्म स्तर का द्रष्ट ही दे सकता है। आये दिन कितनी ही ऐसी घटनाओं को, उच्चस्तर और आयाम की भूमिका में होने के कारण उसके वास्तविक हेतु को समझ पाना संभव नहीं होता । ऐसी ही घटना टाइटैनिक जलयान के सम्बन्ध में है।

कैप्टन राबर्ट एगनर अपने सहयोगी रोनाल्ड कैसरील्स एवं दर्जन के लगभग अन्य कर्मचारियों के साथ न्यूयार्क से इंग्लैण्ड की ओर यात्रा कर रहे थे । उनके जहाज कैलीफोर्निया में व्यापारिक माल लदा हुआ था। अनेक दिनों की यात्रा के बाद वे 14 अप्रैल 1963 को न्यूफाउण्डलैण्ड द्वीप के समीप पहुँचे । कैप्टन एगनर को द्वीप देख कर सैर करने का मन होने लगा। अस्तु जहाज को किनारे लगाया गया और लंगर डालकर खड़ा कर दिया गया । जब वे यहाँ पहुँचे तब शाम के सात बज चुके थे । योजना बनाई गई कि आज रात यहीं बिता कर दूसरे दिन आस-पास घूमने के उपरान्त तीसरे पहर यहाँ से प्रस्थान किया जाय। उक्त कार्यक्रम निर्धारित होने के बाद जहाज से सभी उतर पड़े और तट के निकट ही रात बिताने के लिए एक छोटा टेण्ट लगाया गया। इसके बाद वे सभी तटवर्ती क्षेत्र में घूमने के लिए निकल पड़े । करीब एक घण्टे बाद लौट कर तम्बू में आ गए । बातचीत करते आधी रात बीत गई । रोनाल्ड कैसरील्स जहाज से कुछ लाने के लिए उठे, तभी उनकी दृष्टि अचानक पूरब की ओर खिच गयी। वे ध्यान से देखने लगे। थोड़ी देर पश्चात् उन्हें ज्ञात हुआ कि कोई विशाल जहाज विपरीत दिशा से तीव्र गति से न्यूयार्क की ओर जा रहा है। वे उत्सुकतापूर्वक उसे देखने लगे। अभी मुश्किल से पाँच ही मिनट बीते होंगे कि एक जोरदार धमाका हुआ। इसी के साथ वह पर्वताकार हिचकोले खाने लगा। कैसरील को संदेह होने लगा कि वह कहीं डूब न जाय, क्योंकि वह अभी भी असामान्य रूप से डगमगा रहा था। इसी के साथ उसके अन्दर जोर जोर से शोर सुनाई पड़ने लगा। कैसरील्स ने कैप्टन एगनर एवं अन्य कर्मचारियों को जो अब भी वार्तालाप में व्यस्त थे, इसकी सूचना दी । सभी उठकर वह दृश्य देखने लगे । जहाज इस समय भी बुरी तरह काँप रहा था स्थिति देख जलयान के सुरक्षित बच जाने की आशा एगनर की भी जाती रही । उसने प्रस्ताव रखा कि अपने जहाज से छोटी डोगियाँ निकाली जायँ व यात्रियों के बचाव के लिए उन तक पहुँचा जाय। विचार सभी ने पसंद किया । 10-12 नौकाएं तुरन्त जलयान से निकाली गई और उनमें सभी सवार होकर उस ओर तेजी से बढ़ने लगे । अभी आधी दूरी भी तय नहीं हो पाई थी कि जलयान एक बार बुरी तरह काँपा और समुद्र के गर्भ में समा गया। सब इससे अत्यन्त दुखी हुए कि वे पास रह कर भी दुर्भाग्यग्रस्त जहाज के यात्रियों की सहायता न कर सके । सब कुछ समाप्त हो चुका था, फिर भी कैप्टन ने आधे रास्ते से लौट आना उचित न समझा यह सोच कर कि मृत्यु से संघर्ष कर रहे शायद किसी यात्री को हमारी आवश्यकता हो और हम उसकी मदद कर सकें, उसने घटनास्थल तक जाने का निर्णय लिया, पर बचाने के लिए वहाँ कोई भी न था । संभवतः सभी की जीवित जल समाधि हो गई थी । कैप्टन एगनर और उनके सहयोगी भारी मन से किनारे वापस आ गये। कैप्टन एगनर ने विश्व के सभी प्रमुख बन्दरगाहों से रेडियो संपर्क किया और दुर्घटना की जानकारी दी एवं यह जानना चाहा कि जलयान कहाँ से रवाना हुआ था। वैसे उसके ऊपर फहरने वाली ब्रिटिश पताका से तो इतना सुनिश्चित हो गया था कि जहाज ब्रिटेन का है, पर वहाँ से भी इसकी अनभिज्ञता प्रकट करने पर कैप्टन असमंजस में पड़ गए । उन्होंने दुबारा जलयान के आकार-प्रकार उसका रंग एवं झण्डे की सूचना देकर ब्रिटेन के सभी बन्दरगाहों में ऐसे किसी जहाज की जानकारी चाही, पर पुनः उन्हें निराशा हाथ लगी सबों ने ऐसे किसी जलयान के ब्रिटिश बन्दरगाहों से यात्रा के संबंध में स्पष्ट इनकार किया। इतना ही नहीं, यह भी सूचना मिली कि इतना विशाल आकार-प्रकार का जहाज ब्रिटेन में उपलब्ध नहीं है। निश्चय ही आपको धोखा हुआ है, किन्तु कैप्टन ने चाँदनी रात में उस पर लहराते ब्रिटिश झण्डे यूनियन जैक को स्पष्ट देखा था। फिर उस पर अविश्वास करने तथा आँखों के भ्रमित होने का सवाल ही पैदा नहीं होता था। एगनर बड़ी दुविधा में थे । वे ध्वज वाली गुत्थी किसी प्रकार सुलझा नहीं पा रहे थे। सचमुच आँखों को कहीं धोखा तो नहीं हुआ? इसकी पुष्टि के लिए उन्होंने अपने सहयोगी कैसरील्स से इस संबंध में पूछताछ की । कैसरील्स एवं दूसरे कर्मचारियों ने भी उसके ब्रिटिश ध्वज होने की पुष्टि कर दी । अब एगनर का असमंजस जाता रहा। उन्होंने पुनः एकबार ब्रिटिश गोदी कर्मचारियों से रेडियो संपर्क स्थापित किया और यह जानना चाहा कि उक्त विवरणों से मिलता जुलता कोई जलयान कभी ब्रिटेन के पास था क्या ? अधिकाँश ने इस संबंध में अपनी असमर्थता प्रकट की, पर एक ने इस संदर्भ में अत्यन्त महत्वपूर्ण जानकारी दी । उसने बताया कि वर्तमान सदी के प्रारंभिक दशक में ब्रिटेन की एक व्यापारिक कम्पनी के पास “टाइटैनिक” नामक ऐसा ही एक विशाल जलयान था, जो 14 अप्रैल 1912 के दिन मध्य रात्रि में “न्यूफ उण्डलैण्ड” टापू के समीप दुर्घटनाग्रस्त होकर अपने डेढ़ हजार से भी अधिक यात्रियों के साथ समुद्र में समा गया।

“न्यूफ उण्डलैण्ड” द्वीप और 14 अप्रैल सुनकर कैप्टन एगनर चौंक । पुष्टि के लिए एक सहयोगी से तारीख पूछी । पता चला आज भी 14 अप्रैल है। समय भी मध्यरात्रि था और स्थान भी वही। एकबार फिर कैप्टन ने इंग्लैण्ड के उस बन्दरगाह से संपर्क स्थापित किया और “टाइटैनिक” दुर्घटना के दृश्य के पुनरावृत्ति के संबंध में जानकारी चाही । बदले में उत्तर मिला कि आज से लगभग 10 वर्ष पूर्व टाइटैनिक दुर्घटना को यथावत देखे जाने की एक सूचना मिली थी। इसके अतिरिक्त और किसी सूचना का पता नहीं।

कैप्टन को अब पूरा विश्वास हो गया कि उन लोगों ने जो कुछ भी देखा वह उस दिन की कोई वास्तविक घटना नहीं थी, वरन् वर्षों पूर्व घटी घटना (टाइटैनिक दुर्घटना) का पुनरावलोकन मात्र था। बाद में खोजबीन से यह भी ज्ञात हुआ । कि उपरोक्त दृश्य हर साल उस तिथि को आधी रात में उस द्वीप के समीप घटता दृश्यमान होता है, मानो सचमुच कोई दुर्घटना हो गयी हो। इस विलक्षण घटना का उल्लेख कैपटन राबर्ट एगनर ने अपनी पुस्तक दि मैडेन वोयेज में विस्तारपूर्वक किया है।

आज तक किसी प्रकृतिविद् की समझ में यह नहीं आया कि निसर्ग क्यों इस दृश्य को बड़े सुनियोजित ढंग से पुनरावृत्ति कर घटना को अविस्मरणीय बनाना चाहती है। निश्चय ही इसके पीछे कोई न कोई बड़ा रहस्य है, क्योंकि प्रकृति घटनाएँ न तो अनावश्यक अनुपयोगी हो सकती है कि वे केवल कौतुक-कौतूहल मात्र हैं । यदि ऐसा मान भी लिया जाय तो भी यह कहना समीचीन न होगा कि वे निष्प्रयोजन हैं। यह बात और है कि हमारी स्थूल बुद्धि इसे समझ नहीं पा रही है, पर यह निरुद्देश्य हैं ऐसा नहीं हो सकता। इसे जानने के लिए यह आवश्यक है कि हम स्थूल से सूक्ष्म, जड़ पदार्थ से चेतन, प्रत्यक्ष से परोक्ष की ओर यात्रा करें। इससे कम में ऐसी पहेलियों का रहस्योद्घाटन न सरल है, न संभव।


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