विलासिता प्रतिभा को दीमक की तरह (Kahani)

April 1992

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सत्रहवीं सदी के फ्रांस के शासक लुई के सरदारों का पूरे यूरोप में वर्चस्व था। उनकी बहादुरी के आगे कोई नहीं टिक पाता। लुई को भय हुआ कि इससे तो कभी वे उसकी ओर भी आंखें उठा सकते हैं और शासन-सत्ता छीन सकते हैं। उसने अपने मंत्री से सलाह की कि उसे ऐसी स्थिति में उन पर कैसे काबू पाना चाहिए ।

मंत्री ने कहा- आप कुछ मत कीजिए। सिर्फ उनके ऐशोआराम की सुविधा इकट्ठी कर दीजिए। बस उनकी सारी बहादुरी धूल चाट जायेगी।

लुई ने ऐसा ही किया उनके लिए एक विशाल महल-”पैलेस ऑफ वर्सेल्स” का निर्माण करवाया और प्रत्येक सरदार की उसमें निवास की व्यवस्था कर दी, सुविधाओं का अम्बार लगा दिया। फिर तो वे ऐसे राग-रंग में डूबे कि उनकी स्थिति घुन लगे शहतीर की तरह हो गई। उनका पराक्रम ही समाप्त हो गया । कई शताब्दियों तक फ्राँस में फिर वैसे वीर पराक्रमी ही पैदा न हो सके। सचमुच विलासिता प्रतिभा को दीमक की तरह चटकर जाती है।


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