मृत्यु के नाम से क्षोभ क्यों (Kahani)

April 1992

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दो तार्किक भोजन कर रहे थे आत्मा-परमात्मा पर भोजन के दौरान ही वार्तालाप चल पड़ा । पहले ने दूसरे से पूछा आत्मा के सम्बन्ध में आपका क्या विचार है? दूसरे ने कहा आत्मा अजर-अमर अमर अविनाशी है। उसका कभी अन्त नहीं होता पहले ने फिर पूछा तब एक बात बताइए आप मर कर कहाँ जायेंगे, कुछ बता सकेंगे । मरने का नाम सुनकर ही पहला बिगड़ उठा। बोला- आप जैसे भद्र पुरुष को ऐसा आशालीन प्रश्न नहीं पूछना चाहिए । सभ्य सुसंस्कृत व्यक्ति ऐसे प्रश्न नहीं करते ध्यान रखना चाहिए ।

भोजन परस रहे रसोइए ने छोटी सी बात कहकर चर्चा का समापन कर दिया । उसने कहा-यदि आत्मा अमर है तो मरने के बारे में चर्चा में अभद्रता कैसी? मरकर जब प्रभु के राज्य में ही जाना है तो मृत्यु के नाम से क्षोभ क्यों व चिन्ता क्यों?


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