भीड़ की अकुलाहट थम गयी (Kahani)

April 1992

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नाव मध्य नदी में थी । अचानक तूफान आया। नाव हिलोरों में बहती-डूबती नजर आने लगी । मल्लाह ने कहा भगवान को याद करो । तूफान न निकलने तक मृत्यु ही सामने है। एक चिल्लाया भगवान ! अब तेरे शिवा कोई बचा नहीं सकता । यदि बच गया तो अमुक आश्रम को इतना बड़ा दान दूँगा । दूसरा बोला यदि बच गया तो भागवत सप्ताह बिठाऊँगा! एक ने गौदान ब्राह्मण को करने की बात कही। संयोग से संकट टल गया । किनारा दिखाई देने लगा व व भीड़ की अकुलाहट थम गयी । नाव किनारे पर लगते ही नाव में ही यात्रा कर रहे एक संत ने गौदान, भागवत सप्ताह व धनदान वालों को अपने-अपने वचनों का स्मरण कराया । सभी ये कहकर अपने रास्ते चले गये कि यह तो तब की बात थी। सही है, मुसीबत में भगवान याद तो आता है पर हटते ही गाड़ी पुनः लीक पर चलने लगती है।


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