यह प्रकृति विलक्षणताओं का भाण्डागार है। यहाँ एक-से-एक बढ़कर ऐसी विचित्रताएँ देखने को मिलती हैं, जिन्हें इसकी अद्भुतता कहा जाय या स्रष्टा की उद्देश्यपूर्ण सृजनात्मकता-कुछ समझ में नहीं आता। यदि उन्हें निरपेक्ष सत्ता की कृति मान ली जाय, तो इनके पीछे निहित प्रयोजन भी समझ में आना चाहिए, किन्तु जब ऐसा कुछ बुद्धि की समझ में नहीं आ पाता, तब इसे आश्चर्य, अचम्भा और रहस्य-रोमांच की श्रेणी में विवश होकर रखना पड़ता है। आये दिन ऐसी कितनी ही घटनाएँ देखने को मिलती रहती हैं, जिन्हें सामान्य बुद्धि की समझ से परे होने के कारण इसी शृंखला में सम्मिलित करना पड़ता है। इन्हीं में से एक है प्रकृति की रहस्यमय ध्वनियाँ। देखने-सुनने में तो यह भौतिक लगती हैं, पर जाँच से अब तक इनका न तो उद्गम, न कारण का पता चल पाया है। इसी से इन्हें परोक्ष और अलौकिक ध्वनियों की संज्ञा दे दी गई है।
मिश्र में नील नदी के पश्चिमी तट पर थीब्स के अवशेषों में अभी भी एक जोड़ी पत्थर की विशाल मूर्तियाँ खड़ी हैं। वैसे तो यह प्रतिमाएँ अब पूर्ववत नहीं रहीं। इनका काफी कुछ हिस्सा टूट चुका है, किन्तु फिर भी बहुत कुछ अभी भी विद्यमान है, जो इन्हें मूर्ति की शक्ल प्रदान किये हुए है। इनमें से प्रत्येक की ऊँचाई लगभग पचास फुट है और एक-दूसरे से दूरी भी करीब इतनी ही है। इन प्रतिमाओं का निर्माण काल का तो सही-सही अनुमान नहीं लगाया जा सका है, किन्तु ऐसे प्रमाण उपलब्ध हैं, जो सिद्ध करते हैं कि इनकी रचना ईसा से पन्द्रह सौ वर्ष पूर्व हुई है। इन्हें मेमनन-की प्रतिमा कहा जाता है। इनकी सबसे बड़ी विशिष्टता यह है कि ये सूर्योदय अथवा इसके आस-पास विचित्र प्रकार की ध्वनियाँ उत्पन्न करती हैं, इसी से यह पर्यटकों का आकर्षण केन्द्र बनी हुई हैं। सैलानी प्रायः फरवरी अथवा मार्च के महीने में नील नदी के किनारे इसीलिए इकट्ठे होते हैं, ताकि वे इन निर्जीव प्रतिमाओं की सजीव आवाजें सुन सकें, किन्तु विचित्रता यह है कि अब तक जितने लोगों ने इनकी बोलियाँ सुनी हैं, सभी ने उसे भिन्न-भिन्न प्रकार की ध्वनियाँ बतायी हैं। इन पर्यटकों में स्ट्रबो, प्लीनी, पाउसेनियस, जुवेनल, विलकिन्सन जैसे ख्याति प्राप्त तत्कालीन पुरातत्ववेत्ता भी सम्मिलित हैं। स्ट्रबो के अनुसार इनकी आवाज हवा के हल्के झोंके अथवा घूँसे के प्रहार से मिलती-जुलती हैं। पाउसेनियस इन्हें वीणा के तार टूटने जैसे बताते हैं। सर जी. विलकिन्सन (लन्दन) ने अपनी पुस्तक “मॉडर्न इजिप्ट एण्ड थिब्स” में इसे दो पीतल के टुकड़ों के आपस में टकराने से उत्पन्न हुई उच्च तारत्व जैसी ध्वनि बतायी है। “दि वायस ऑफ मेमनन” नामक रचना में लार्ड कर्जन ने इससे पैदा होने वाली धुन को न अधिक सुरीली न बहुत कर्कश कहकर वर्णित किया है।