डॉक्टर राममनोहर लोहिया अपने समय के मूर्धन्य लोक नायक थे। स्वतंत्रता में संलग्न रहते उनका सारा जीवन बीता।
उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर अनेक लोगों ने अपनी सुयोग कन्याएँ उन्हें देने के प्रस्ताव किये। पर वे सभी को एक ही उत्तर देते रहे कि जिस लक्ष्य के लिए समर्पित रूप से व्यस्त हूँ। उसमें इतना अवकाश कहाँ कि अपनी घर गृहस्थी पर भी ध्यान दे सकूँ और उसके
लिए अलग से समय निकालने की व्यवस्था कर सकूँ।
समाजवादी, साम्यवादी चिन्तन व्यवहार में भले ही न उतर पाया हो, अर्थदर्शन के रूप में पूरी तरह लोक समर्थन प्राप्त कर रहा है। उस मान्यता के अनुरूप अधिक संग्रही, अधिक विलासी-अपव्ययी लोग नीतिवान नहीं समझे जाते।
ऐसे लोग बहुत ही कम मिलेंगे जिन्हें सम्पदा के साथ सदुपयोग की सद्भावना भी मिली है। जिन्हें मिली होगी उन्हें बड़े आदमी नहीं महामानव एवं सच्चे अर्थों में प्रगतिशीलता सम्पन्न व्यक्ति कहा जायगा। उनमें सम्पन्नता का महत्व नहीं मिलेगा, वरन् शालीनता की गरिमा को सराहा जायगा और कहा जायगा कि अमुक श्रेष्ठ पुरुष ने अपने वैभव का सदुपयोग कर दिखाया। ऐसा सम्पन्नता के कारण नहीं, वरन् सज्जनता के कारण ही बन पड़ता है। व्यक्तित्व का मूल्याँकन सम्पन्नता से नहीं वरन् सज्जनता से होना चाहिए।