उदयसिंह तब छोटे थे इसलिए उनके बड़े होने तक के लिये बनवीर को राज्य का उत्तराधिकार सौंप दिया पर उसके मन में लोभ आ गया। उसने उदयसिंह और विक्रमसिंह को मार डालने का निश्चय किया।
उदयसिंह की माँ का देहान्त हो चुका था। उनका पालन-पोषण पन्ना थाय ने किया था। पन्ना का अपना पुत्र भी था जो उदयसिंह के साथ ही रहता था। एक दिन बनवीर ने विक्रमसिंह की हत्या कर दी। पन्ना को इसका पता चला तो उसने उदयसिंह को वहाँ से सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दिया। क्रोध से भरा बनवीर उसके पास पहुँचा तो उसने अपने बच्चे को ही उदयसिंह बताकर उसका शीश कटा दिया पर कर्तव्य पर आँच नहीं आने दी।
नैतिक कर्तव्य पारिवारिक मोह-ममता से भी अधिक महत्वपूर्ण है।
एक बार पुनः गुरु के नेत्र सजल हो उठे। उनसे अविरल जल-धारा बह निकली। धौम्य शिष्यों की कृतज्ञता और श्रद्धा से भाव-विभोर हो उठे थे। उन्होंने दोनों शिष्यों के कन्धों पर हाथ रखा तथा उसी भाव-प्रवणता की स्थिति में शिष्यगण एवं गुरु चल पड़े। हमेशा की गुरु-शिष्य की चली आ रही शाश्वत परम्परा को सार्थक करते हुए, जो देव संस्कृति की थाती है।