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November 1991

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धैर्य और दृढ़ता के मसाले से जीवन की इमारत बनती है। इसे शालीनता की पुताई से सुन्दर बनाया जाता है।

मनोविज्ञान चिकित्सा के निष्णात प्रो. ऐडम ने कितने ही असाध्य और कष्ट साध्य वृद्धों का उपचार किया है और उन्हें चिरकाल से चली आ रही आधि-व्याधियों से मुक्त कराया है। उनका कहना है कि जो व्यक्ति जी खोलकर हँस सकता है, उसे किसी भी रोग से छुटकारा दिलाया जा सकता है। असाध्य तो वे हैं जो हर समय उदास, निराश और खोजे हुए आवेशग्रस्त दिखाई देते हैं और मन का सदा भारी रहते है। हास्य-विनोद को अपने जीवनचर्या में सम्मिलित करके व्यक्ति अपना जी हलका-फुलका रख सकता है और व्याधियों तथा बुढ़ापे के चंगुल से बचकर ढलती हुई उम्र में भी नव यौवन का आनन्द लेता रह सकता है। झुर्रियाँ मिटाने और चेहरे पर चमक लाने का इससे अच्छा उपचार दूसरा नहीं है।

सुप्रसिद्ध मनीषी डेवी ने लिखा है कि-शरीर को सही रखने के लिए व्यायाम का, मस्तिष्क को सही रखने के लिए अध्ययन का और हृदय को सही रखने के लिए प्रेम का सहारा नहीं ही छोड़ा जाना चाहिए। यदि यह साधन संतुलित रूप से उपलब्ध होते रहें तो वृद्धावस्था और मौत दोनों ही बहुत आगे धकेले जा सकते हैं।


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