दुराग्रहों का दुर्भाग्यपूर्ण इतिहास

November 1991

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अहंकार और व्यामोह का समन्वित रूप बनता है-दुराग्रह। इसमें आवेश और हठ दोनों जुड़े रहते हैं। फलतः चिन्तन तन्त्र के लिए यह कठिन पड़ता है कि वह सत्य और तथ्य को ठीक तरह समझ सके और उचित अनुचित का भेद कर सके। अभ्यस्त मान्यताओं के प्रति एक तरह की कट्टरता जुड़ जाती है। उसे अच्छा सिद्ध करने के लिए परम्पराओं के निर्वाह की दुहाई दी जाती है। उसका समर्थन धर्मशास्त्र आप्तवचन, आदि अनेकों तरह से किया जाता है। कई बार तो उसे ईश्वर का आदेश तक घोषित कर दिया जाता है।

अपना धर्म श्रेष्ठ-दूसरे का निकृष्ट। अपनी जाति ऊंची दूसरे की नीची! अपनी मान्यता सच दूसरे की झूठ। ऐसे दुराग्रह यदि आरम्भ से ही हों तो फिर सत्य, असत्य का निर्णय कहाँ सम्भव है? न्याय और औचित्य की रक्षा के लिए जरूरी है कि तथ्यों को ढूँढ़ने के लिए मस्तिष्क खुला रखा जाय। अपने पराए का नए पुराने का, भेद भाव न रखकर विवेक और तर्क का सहारा लेने की नीति अपनाई जाय। सत्य को प्राप्त करने का लक्ष्य इसी नीति को अपनाने से पूरा हो सकता है। पक्षपात और दुराग्रह तो सत्य को समझने से इन्कार करना है। ऐसे हठी लोग प्रायः सत्य और सत्य-शोधकों को सताने तक में नहीं चूकते।

टेलिस्कोप के अन्वेषक गैलीलियो ने जब पृथ्वी को गतिशील बताने का सर्वप्रथम साहस किया तो पुरातन पंथी धर्मगुरुओं ने इसे धर्म विरुद्ध ठहराया। उसे तरह-तरह से सताया गया और जेल में बन्द करके भाँति-भाँति की यातनाएँ सहने के लिए विवश किया गया। सबसे पहले जब पेरिस में रेलगाड़ी चली तो उस प्रचलन का पुरातन पंथियों ने घोर विरोध किया और कहा जो काम हमारे महान पूर्वज नहीं कर सके उन्हें करना अपने पूर्व पुरुषों के गौरव पर बट्टा लगाना है। रेलगाड़ी चलाने वाले जोसेफ केग्नार को उस जुर्म में सश्रम कारावास का दण्ड मिला। कहा गया कि वह ईश्वर के नियमों के प्रति अपराध करता है। इटली में शरीर शास्त्र की शिक्षा किसी समय अपराध थी। आप्रेशन करना पाप समझा जाता था और कोई चिकित्सक छोटा-मोटा आप्रेशन भी करता पाया जाता तो उसके लिए मृत्यु दण्ड की व्यवस्था नियत थी।

कारीगर रैंगर बैकन ने सर्वप्रथम दो कोनों को जोड़कर सूक्ष्मदर्शी यन्त्र बनाया था। इस काम की भरपूर निन्दा हुई। इतने पर बस नहीं हुआ उस कारीगर को इस खतरनाक काम करने के अभियोग में दस वर्ष की कैद सुनाई गई। बेचारे को जेल में ही तड़प-तड़प कर मरना पड़ा।

रसायन शास्त्र के कुछ नवीन सिद्धाँतों का प्रतिपादन करने के अपराध में अरहीनियस को प्राध्यापक पद से हटा कर एक छोटा अध्यापक बनाया गया। उसे सनकी ठहराकर अपमानित किया गया। कालान्तर में वही सिद्धाँत आगे चलकर रसायन वेत्ताओं में सर्वमान्य हुए और अरहीनियस को उन्हीं पर नोबेल पुरस्कार का सम्मान मिला।


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