भारत में असहयोग आन्दोलन उन दिनों पूरे वेग पर था। सैनिक विद्रोह कर रहे थे। अँग्रेज घबरा रहे थे। सुलह सफाई के लिए बम्बई से अँग्रेज अधिकारी ने पटेल को बुलाया और परामर्श किया।
सरदार पटेल ने निर्भीक और स्पष्ट शब्दों में कहा सरकार से पूछ लें कि अँग्रेज इस देश में मित्रों के रूप में रहना चाहते हैं या लाशों के रूप में। हम दोनों ही स्थितियों को स्वीकार करेंगे। फैसला आपकी सरकार को करना है।
पटेल के इन निर्भीक स्पष्ट वचनों से अँग्रेज सरकार ने अपनी विदाई में ही खैर समझी और बिस्तर गोल करके भलमनसाहत के साथ चले गये।
वेदान्त दर्शन में जगत को माया, मिथ्या कह कर पुकारा गया है। यह इस अर्थ में सत्य है कि जो कुछ हम देखते हैं, वह निर्भ्रान्त नहीं है, जबकि उसकी प्रतीति सत्य जैसी होती है। विज्ञान संसार और उसके पदार्थ को परमाणुओं की संरचना और समुच्चय भर मानता है, जबकि अध्यात्म विज्ञानी जानते हैं कि तथ्य अनुभूति के सर्वथा विपरीत है।
सत्य को नारायण माना गया है। हम सत्यनारायण की पूजा भी करते हैं, पर उसके मूल भाव की सर्वथा उपेक्षा कर देते हैं, जिसमें अनवरत सत्य की ओर चलने और बढ़ने की शिक्षा निहित है। हम पूर्वाग्रही न बनें और सत्यान्वेषण की दिशा में गतिमान रहें तभी हम सापेक्ष से निरपेक्ष सत्य की प्राप्ति कर सकते हैं, यही हमारे साध्य और लक्ष्य भी हैं।