धर्मात्मा उधर से निकले (kahani)

March 1985

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एक अन्धा था। गली किनारे बैठकर याचना करता रहता। जो सिक्का मिलता उसे टटोलता और उतने ही ऊँचे स्वर में दुआएं देता।

कोई धर्मात्मा उधर से निकले। ठण्डक में अन्धे को सिकुड़ते देखकर कपड़ों के लिए पचास रुपये का नोट उसके हाथ पर रखकर चले गये।

अन्धे ने कई बार टटोला। पर वह कागज मात्र था। किसी ने ठिठोली की है यह सोचकर उसने नोट को तिरस्कार पूर्वक फेंक दिया।

एक विचारवान् यह देख रहे थे। उनने नोट उठाकर अन्धे को दिया और समझाया− इसके बदले इतने ही सिक्के मिले सकते हैं जिनमें कम्बल खरीदा जा सके।


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