सौ वर्ष पहले की बात है अफ्रीका में जूतों की खपत की सम्भावना को खोजने के लिए एक जापानी और एक अमेरिकन कम्पनी ने अपने एजेंट भेजे। ताकि उस क्षेत्र में व्यवसाय चलाने की बात पर विचार किया जा सके।
अमेरिकन एजेंट ने एक सप्ताह दौरे के बाद रिपोर्ट भेजी− ‘‘यहाँ कोई जूता पहनना तक जानता नहीं। व्यापार की कोई सम्भावना नहीं।” वह वापस लौट गया।
जापानी एजेंट रुका रहा। उसने मालिकों को रिपोर्ट भेजी− ‘‘यहाँ जूते किसी के पास नहीं। उनको उपयोगिता समझाने में कुछ समय साधन लगाने भर की देर है कि खपत का ठिकाना न रहेगा। हम लोग बिना प्रतिस्पर्धा के इस देश में व्यवसाय चलाकर आसानी से मालामाल बन सकते हैं।”
जापानी दृष्टिकोण सही निकला और वे सचमुच मालामाल बन गये। नया रास्ता भी तो उन्हीं ने खोजा, नया उपाय भी तो उन्होंने सोचा।