हृदय का श्रम (kahani)

March 1985

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शरीर यात्रा चलाने में हृदय का श्रम और महत्व देखकर शरीर के अन्य अवयव कहने लगे- आप हैं तो बड़े, पर काम हमारे सहारे ही चलाते हैं।

फेफड़ों ने कहा− हम वायु न दे तो? नाड़ियों ने कहा रक्त न पहुंचायें तो? पेट ने कहा हम पचाकर रक्त न बनायें तो? हाथों ने कहा हम कमाकर न लायें तो?

बात सबकी सच तो थी। हृदय सभी के लिए कृतज्ञता व्यक्त कर रहा था और कह रहा था आकार में तो आप सभी लोग बड़े हैं। मैं तो नन्हें से बच्चे जैसा हूँ। एक पालने में बैठा आप लोगों द्वारा झुलाये जाने पर झूलता रहता हूं।

हृदय में नम्रता और अवयवों की अहंकारिता देखकर आत्मा से न रहा गया। वह बोली मूर्खों अगर शरीर छोड़कर मैं चल दूँ तो?

सभी का गर्व गल गया और नम्रता पूर्वक अपने सेवा सौभाग्य को सराहते हुए नियत क्रिया−कलाप में लग गये।


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