तन्त्र विद्या के क्षेत्र में लन्दन के रोमानी प्रिंस “पैटूलिंगको ली” का नाम आज विश्व जन समुदाय की जुबान पर है। ऐसा कहा जाता है कि उनके मुख से निकली वाणी कभी खाली नहीं जाती। एक बार नौटिंघम में एक विशाल कार्यक्रम होने को था। प्रबन्धकों को वर्षा की आशंका थी। अतः उससे बचाव हेतु उनने पैटूलिंगको ने उन्हें वर्षा न होने देने का विश्वास दिलाया। सचमुच ऐसा ही हुआ। उस दिन वर्षा नाम मात्र को भी न हुई, जबकि लन्दन में किसी दिन छुटपुट वर्षा हो जाना स्वाभाविक बात है।
पैटूलिंगको भी ने एक बार ब्रिटेन के ‘यूरोपियन काम मार्केट” में शामिल होने की भविष्यवाणी की थी। साथ में उनने यह भी कहा था कि एक वर्ष बाद ब्रिटेन को अपने उठाये कदम के लिए पश्चात्ताप भी होगा एवं कई वर्षों तक वह आर्थिक संकट से उबर नहीं पायेगा। यह दोनों ही बातें सत्य सिद्ध हुईं।
एक बार पैटूलिंगको ली के ऊपर झूठा कानूनी आरोप लगाया गया था। सजा के रूप में उन्हें 6 वर्ष की कैद सुनाई गयी थी। घोषणा सुनकर ली ने बस इतना कहा था- ‘‘जज साहब! मेरे पास सफाई का कोई स्रोत नहीं है। परन्तु याद रखें मेरी सजा की अवधि समाप्त होते ही आपका प्राणान्त होगा। उस समय आपके पास बचाने वाला कोई न होगा।” कुछ दिनों बाद एक दुर्घटना में जज महोदय का सचमुच देहान्त हो गया। इस प्रकार ली का शाप फलीभूत हुआ।
कुछ दिनों पूर्व की एक और घटना है। ली को एक मकान आबंटित कराना था। परन्तु काउंसिल के सदस्यगण उसे परेशान कर रहे थे। अन्ततः ली ने यह घोषणा की थी कि “यदि 15 दिन के अन्दर मुझे मकान नहीं मिलता तो मैं काउंसिल के सदस्यों को शाप देने के लिए बाध्य हो जाऊँगा।” इस चेतावनी से भरी घोषणा को सुनकर काउंसिल के सभी सदस्य घबरा गये। उनने ली को पुनः बुलवाया तथा समस्या का यथोचित समाधान ढूँढ़ निकाला। तब ली ने उन्हें शाप न देने का आश्वासन दिया ऐसी अपवाद रूप घटना को छोड़ ली ने कभी अपनी दिव्य क्षमता का दुरुपयोग नहीं किया।
इस प्रकार की कई घटनाएं ली के जीवन में घटित हुई हैं। उनने अपनी तान्त्रिक क्षमता एवं अलौकिक सामर्थ्य के लिए अपनी मृत दादी की आत्मा को माध्यम बतलाया है। उनका यह भी कहना है कि हम जिप्सियों के लिए तन्त्र एक अचूक हथियार है। इसको अपनाकर हम अपनी तो सुरक्षा करते ही हैं, जहाँ कहीं किसी का अहित होता दिखता है, इसका प्रयोग करते हैं।
विलियम सामरसेट मॉम की भारतीय तन्त्र विधाओं में गहन अभिरुचि थी। वे अपने पास माँ भैरवी का तन्त्र प्रतीक हमेशा रखा करते थे। उनके निवास स्थान की हरेक चीज पर माँ भैरवी की तन्त्र मुद्रा अंकित होती थी। उनके अनुसार यह प्रतीक दुष्ट ग्रहों और पैशाचिक शक्तियों को पास फटकने न देता था।
मॉम का जीवन बड़ी परेशानी भरा रहा। नींद में उन्हें प्रायः दुःस्वप्न आया करते थे। सपने में उन्हें ऐसा महसूस होता था कि कोई उनका गला दबोच रहा है। उस समय उनकी साँसें फूलने लगती तथा दमा जैसा प्रभाव उत्पन्न हो जाता था। ऐसी घटनाएँ प्रायः मंगलवार के दिन ही हुआ करती थीं। घटना के बाद कई दिनों तक उन्हें गले में खंराश तथा उस स्थान पर सूजन का अनुभव होता था। इस स्वप्न रूपी काल चक्र से अपनी सुरक्षा हेतु मॉम ने पूर्वार्त्त दर्शन के अध्ययन के आधार पर तन्त्र प्रतीक को अपना जीवन साथी बना लिया था। स्पष्ट है कि वह प्रतीक ही उनकी मृत्यु पाश से रक्षा का कारण बनता रहा।
ऐसी ही एक और घटना है। तब भारत आजाद नहीं हुआ था। सीतापुर क्षेत्र में हृदय नारायण नामक एक सेठ रहते थे। विशाल बंगला था तथा उसमें पत्नी व नौकर-चाकर समेत वे रहते थे।
एक दिन सेठ जी के बंगले पर एक तान्त्रिक का पदार्पण हुआ। उसने सेठ जी से वाँछित मादक पेय की तन्त्र प्रयोग हेतु माँग की। सेठ जी ने जब इसको प्रस्तुत करने से इन्कार कर दिया तब उस तान्त्रिक ने उन्हें सबक सिखलाने की घोषणा की।
कुछ दिनों बाद ही घर में बिल्लियों का उपद्रव आरम्भ हुआ। घर आँगन में हर तरफ बिल्लियों का शोर तथा चहल-कदमी सुनने देखने को मिलने लगी बिल्लियों को पकड़कर कोसों दूर फेंक आया जाता, तब भी न जाने कहाँ से नई बिल्लियाँ आ जातीं तथा उपद्रव पूर्ववत् जारी रहता। उपचार रूप में झाड़−फूँक, पूजा−पाठ का कृत्य भी सम्पन्न किया गया, पर वह भी नाकामयाब रहा।
इसी बीच उस क्षेत्र में एक तलवार धारी साधु की ख्याति काफी फैली। उसने एक बार रेलगाड़ी को चलाने से रोक दिया था। तभी से लोग उसे अपने यहाँ कष्ट निवारणार्थ लिए वहां जाते। सेठ जी ने भी यही किया। साधु ने उन्हें निर्दोष मानते हुए उनके घर आना स्वीकार कर लिया। वहाँ उन्होंने अपनी तलवार माँजना शुरू किया तथा वह कहते रहे कि “देखता हूँ कौन अब बिल्लियों को भेजता है, कौन यहाँ तबाही मचाता है।” इसके बाद से वहाँ फिर कोई हलचल नहीं हुई। आज भी सेठ जी के परिवार के अन्य लोग इस घटना के साक्षी हैं।
ये घटनाएँ इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं कि तन्त्र विज्ञान एक अलौकिक सामर्थ्यों का समुच्चय है। तान्त्रिक के पास शाप−वरदान एवं अशुभ को टालने, अहित को मिटाने, साथ ही किसी का अहित करने की भी क्षमता होती है। बहुधा ऐसा कम ही होता है कि अहित करने वाले तन्त्रवेत्ता को बदले में पुरस्कार मिला हो अथवा उसे कुछ लाभ हुआ हो। नियामक सत्ता की विधि−व्यवस्था के अंतर्गत उन्हें भी चलना होता है एवं कर्म का फल भोगना ही होता है। जो इस विद्या का सदुपयोग करते हैं, वे अध्यात्म ऊर्जा सम्पन्न होते हैं एवं दूसरों के अनिष्ट का निवारण ही करते हैं। तन्त्र विज्ञान के इस पक्ष को जो उज्ज्वल है, प्रकाश में लाया जाना चाहिए ताकि इस विषय में संव्याप्त भ्रान्तियों का निवारण हो सके।