चित्रादि सर्वभावेषु ब्रह्मत्वेनैव भावनात्। निरोधः सर्ववृत्तीनां प्राणायामः स उच्यते॥ -अपरोक्षानुभूमि−118
‘चित्त−मन−आदि के समस्त भावों में ब्रह्म रूप से ही भावना करने से सम्पूर्ण चित्तवृत्तियों का निरोध हो जाता है। वही प्राणायाम कहा जाता है।