एक नवयुवक महात्मा टालस्टाय के पास आया और बोला− महोदय मेरे पास एक पैसे की भी सम्पत्ति नहीं है। मैं जीवन में बहुत दुःखी तथा निराश हूँ।
महात्मा टालस्टाय ने उससे सहानुभूति दिखाते हुए कहा− ‘‘मेरा एक व्यापारी मित्र है वह आदमी के शरीर के अवयव खरीदता है, तुम चाहो तो मैं तुम्हें उससे मिला सकता हूँ। वह तुम्हें तुम्हारी आँखों के लिए बीस हजार, हाथों के लिए पन्द्रह हजार और पैरों के लिए दस हजार की रकम दे सकता है। यदि चाहो तो यह अंग बेचकर आज ही तुम पैंतालीस पचास हजार के स्वामी बन सकते हो। और यदि तुम उसके हाथ अपने शक्ति एवं यौवन से भरे−पूरे शरीर को बेच सको तो वह तुम्हें खुशी से लाख रुपये दे सकता है। यदि धनवान बनना चाहो तो मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें आज ही उससे मिला देता हूँ।
युवक भौंचक्का-सा टालस्टाय की ओर देखता हुआ बोला− ‘आप यह क्या कहते हैं। एक लाख क्या मैं इसे एक करोड़ में भी बेचने को तैयार नहीं हो सकता।
महात्मा टालस्टाय हँसे और बोले− ‘‘जब तुम्हारे पास इतना मूल्यवान शरीर है तब तुम अपने को गरीब किस तरह कहते हो। युवक! मनुष्य का यह शक्तिशाली शरीर साक्षात कल्पवृक्ष है। इसको ठीक−ठीक उपयोग में लगाओ, श्रम करो और देखोगे कि तुम शीघ्र ही सुख-समृद्धि के स्थायी स्वामी बन जाते हो।