पीपल के पेड़ पर एक बेताल रहता था। लालच देकर लोगों को अपने पास बुलाता और अनाचार के मार्ग पर लगाता और अन्ततः उन्हें मार डालता, यही उसकी नीति थी। अब कितने ही मर गये तो उसका नाम सात स्वर्ण मुद्रा वाला बेताल नाम पड़ गया। जिन्हें पता था, वे सावधान रहते और उस रास्ते न जाते।
एक अनजान नाई उस रास्ते निकला। बेताल ने पेड़ पर बैठे पूछा− सात घड़े सोना लोगे।’ नाई का पहले तो आने का मन नहीं हुआ, फिर सोचा मुफ्त में इतना धन मिल रहा है तो क्यों छोड़ा जाय? उसने कह दिया। आप कृपा पूर्वक दे ही रहे हैं तो ले लूँगा।
बेताल ने कहा− ‘घर चले जाइए। आँगन में स्वर्ण मुद्राओं से भरे सात घड़े मिल जायेंगे। नाई तेजी से चला और रास्ता जल्दी ही पार करके घर जा पहुँचा। आँगन में सात घड़े रखे मिले। छः भरे और सातवाँ आधा खाली।
नाई ने दरवाजा बन्द करके घर के लोगों को सारा वृतान्त सुनाया। सभी बहुत प्रसन्न थे। फूले नहीं समाये।
विचार हुआ कि इस सोने का क्या किया जाय? तर्क−वितर्क क बाद सभी इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि आधे घड़े को भरने के लिए अधिक प्रयत्न कर लिया जाय। सातों पूरे हो जाने पर आगे की बात सोचेंगे।
परिवार के सभी लोग दुर्बल, चिन्तित, व्यग्र और कुकर्मरत रहने लगे। चेहरे कुरूप हो गये और शरीर जर्जर। लगता था एक−एक करके मृत्यु के मुँह में चले जायेंगे। सातवाँ घड़ा भरने की फिक्र में सभी सूखकर काँटा हुए जा रहे थे।
जिस राजा के यहाँ नाई नौकरी करता था उसके कान तक सूचना पहुंची। उसने नाई परिवार−को बुलाकर कहा। मूर्खों! उन सात घड़ों को ले जाकर चुपचाप उस श्मशान में रख आओ। अन्यथा उन घड़ों के रहते तुममें से एक भी जीवित न बचेगा। इस कुचक्र में कितने ही अपनी जान गँवा बैठे हैं। नाई परिवार ने सीख मानी। घड़े पीपल के पेड़ के नीचे रखकर लौट आये। फिर पहले की तरह नीतिपूर्वक की गई कमाई पर निश्चिन्तता से गुजारा करने लगे और उस प्राणघातक कुचक्र से छूटकर शान्ति से दिन बिताने लगे।