यथा सुवर्णं पुटपाक शोधितं त्यक्त्वा मलं स्वात्मगुणं समृच्छति। तथा मनः सत्वरजस्तमोमलं ध्यानेन सन्त्यज्य समेति तत्वम्॥ −विवेक॰ -362
जिस प्रकार अग्नि में पुटपाक विधि से शुद्ध किया हुआ सुवर्ण सम्पूर्ण मलीनता को त्याग कर अपने स्वाभाविक स्वरूप को प्राप्त कर लेता है, उसी प्रकार मन ध्यान के द्वारा मलीनता (सत-रज-तम रूपी) को त्यागकर ‘आत्म−तत्व’ को प्राप्त कर लेता है।