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March 1985

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दार्शनिक च्वांगत्से को रात्रि के समय कब्रिस्तान में होकर गुजरते समय पैर में ठोकर लगी। टटोल कर देखा तो किसी मुर्दे की खोपड़ी थी। उठाकर उनने उसे झोले में रख दिया और सदा साथ रखने लगे। शिष्यों ने इस पर उनसे पूछा− यह कितना गन्दा और कुरूप है। इसे आप साथ क्यों रखते हैं?

च्वांगत्से ने उत्तर दिया− यह मेरे दिमाग का तनाव दूर करने की अच्छी दवा है। जब अहंकार का आवेश चढ़ता है, लालच सताता है तो इस खोपड़ी को गौर से देखता हूँ। कल-परसों अपनी भी ऐसी ही दुर्गति होनी है तो अहंकार और लालच किसका किया जाय।

वे मृत्यु को स्मरण रखना, अनुचित आवेशों के समय का उपयुक्त उपचार बताया करते थे और इसके लिए मुर्दे की खोपड़ी का ध्यान करने की सलाह दिया करते थे। खुद तो उसे साथ रखते ही थे।


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