योग संदर्भ में तीसरे नेत्र की चर्चा प्रायः होती रहती है। शिव ने इसी को खोलकर कामदेव जलाया था और कृष्ण ने अर्जुन को इसी दिव्य नेत्र का उन्मीलन करके विराट ब्रह्म के दर्शन कराये थे। अतीन्द्रिय क्षमताओं का इसे उद्गम माना जाता है। त्राटक साधना द्वारा इसे जागृत करने का प्रयत्न साधना विज्ञान के विद्यार्थी प्रायः करते रहते हैं। यह तृतीय नेत्र अन्य जीवन जन्तुओं में भी काम करते देखा जाता है।
मेरुदण्डधारी प्राणियों को जिनमें सोचने−विचारने की शक्ति होती है, तीन−तीन आँखों का प्राकृतिक अनुदान मिला है जो कि जीवित रहने के लिए अपरिहार्य है। आमतौर से हम तीसरी आँख से अनजान होते हैं किन्तु यह प्राणियों के दिमाग में सक्रिय रूप में पाई जाती हैं एवं इसका प्रयोग भी वे बड़ी कुशलतापूर्वक करते देखे जाते हैं।
वैज्ञानिकों ने इस तृतीय नेत्र को पीनियल ग्लेंड (ग्रन्थि) कहा है जबकि यह तीसरी आँख का ही रूपांतरित स्वरूप है। पीनियल ग्लेंड जीवधारियों में पूर्व में आँख के ही आकार का था। इसमें रोएंदार एक लैंस का प्रति रूप होता है और एक पार दर्शक द्रव भी अन्दर रहता है इसके अतिरिक्त प्रकाश संवेदी कोशिकायें एवं अल्प विकसित रेटिना भी पाई जाती है। मानव प्राणी में इसका वजन दो मिलीग्राम होता है।
यह मेंढक की खोपड़ी में तथा छिपकलियों में चमड़ी के नीचे पाया जाता है। इन जीव−जन्तुओं में यह तीसरा नेत्र रंग की पहचान कर सकता है। वैज्ञानिकों की राय है कि यदि मेंढक प्रकृति की व्यवस्था के अनुसार पानी के अलावा धरती पर अधिक रह सका होता तब यह बहुत उपयोगी रहा होता। जब मेंढक पानी में रहता है तब उसका तीसरा नेत्र पानी के बाहर के आस−पास के वातावरण का पता लगाकर संकेत देता है तब वह धरती पर आता है। इस नेत्र के माध्यम से यह रंगों को भी पहचानता है तथा यौन संपर्क स्थापित करता है।
छिपकलियों में तीसरे नेत्र से कोई फायदा नहीं क्योंकि वह चमड़ी के नीचे ढका रहता है। ह्वेल मछली के पैर उपयोगिता न होने के कारण लुप्त हो गये। तीसरे नेत्र के विषय में भी वैज्ञानिक यही उत्तर ढूँढ़ रहे हैं, कि इसके वेस्टीजियल अंग माना जाने का कारण यही हो सकता है। वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि जिन प्राणियों का खून ठण्डा होता है उनमें यह तीसरा नेत्र थर्मोस्टेट का कार्य करता है। क्योंकि उनका तापक्रम एक−सा नहीं रहता है। जैसे वातावरण होता है बदल जाता है। इस प्रकार से प्राणी यह पता लगा लेता है कि ठण्डे या गर्म स्थान किसमें जाना है।
मेंढक के पूँछ वाले बच्चे जिन्हें टेड पोल कहते हैं यदि अन्धेरे में रख दिये जाँय तो उनका रंग हलका हो जाता है यह तीसरे नेत्र से निकलने वाले हारमोन्स मेलाटोनिन का ही परिणाम है।
आदमियों में यह ग्रन्थि के रूप में परिवर्तित हो गई है इसमें तन्त्रिका कोशिकायें पाई जाती हैं। ग्रन्थि की गतिविधि गड़बड़ होने से मनुष्य जल्दी यौन विकास की दृष्टि से जल्दी परिपक्वता को प्राप्त हो जाता है। उसके जननाँग तेजी से बढ़ने लगते हैं। यदि इस ग्रन्थि में हारमोन की मात्रा बढ़ जाती है तो मनुष्य में बचपना ही बना रहता है और जननाँग अविकसित रहते हैं।
जर्मन वैज्ञानिकों का ऐसा मत है कि इस तीसरे नेत्र के द्वारा दिशा ज्ञान भी होता है। इसमें पाया जाने वाला हारमोन मेलाटोनिन मनुष्य की मानसिक उदासी से सम्बन्धित है। अनेकानेक मनोविकारों एवं मानसिक गुणों का सम्बन्ध यहाँ स्रवित हारमोन स्रावों से है।
दो प्रत्यक्ष नेत्रों का महत्व हम सभी जानते हैं। यदि तीसरे नेत्र का उपयोग भी समझ सके तो हमारी दिव्य क्षमता का आश्चर्यजनक विकास हो सकता है।