“मैं उतना ही कमजोर इन्सान हूँ जितना कि हममें से कोई हो सकता है और मुझमें कोई विलक्षणता न पहले कभी थी और न अब है। मैं सीधा सादा आदमी हूँ। तो भी मैं स्वीकार करता हूँ कि इतनी नम्रता मुझमें है कि अपनी गलतियाँ स्वीकार करूं और अपने गलत कदम वापिस लूँ। ईश्वर और उसकी महानता में मेरी अटूट श्रद्धा है साथ ही सत्य और प्रेम में प्रगाढ़ आसक्ति। किन्तु यह आस्था किसी न किसी रूप में हर किसी में विद्यमान है।”
—महात्मा गान्धी
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