Quotation

April 1978

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आनन्द जीने में है—शक्तियों का उपयोग करने में है, ज्ञान के उपार्जन में है, अनौचित्य से लड़ने में हैं और उस शौर्य साहस का परिचय देने में है जो आदर्शवादी बनने के लिए प्रस्तुत करना पड़ता है।

—विवेकानन्द

तथागत मुस्कुराये, और बोले—तुम्हारा कथन सत्य है वक्कलि! तुम्हें शरीर को सुडौल बनाने वाले योग आसन बताये जा सकते हैं, लावण्य जिस प्राण का प्रस्फुटन है, उसके विकास के प्राणायाम भी बताये जा सकते हैं किन्तु वक्कलि यह सब भी क्षणभंगुर और नाशवान् हैं। आत्मोत्कर्ष का स्थायी आधार तो धर्म-धारणा है। यदि तुम्हें जीवन का यह मर्म समझ में आ जाये कि धर्म ही हमारी प्रगति और प्रसन्नता का मूल आधार है तो फिर तेजस्विता का वरदान तुम्हें स्वतः मिल जायेगा। धार्मिक आचरण की उपेक्षा करके तुम यदि उसे पा भी जाओ तो देर तक स्थिर न रख सकोगे।

वक्कलि को अपनी भूख का पता चल गया उस दिन से उसने आत्म-निरीक्षण और आत्म-सुधार का यथार्थ क्रम अपनाया तो एक दिन वह महान् भिक्षु बना।

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