प्रदूषण का विष जिस तेजी से वायुमण्डल में घुलता जा रहा है उसका गम्भीर अध्ययन करने के बाद सिलवेट स्मिथ ने कहा—अब धरती में रहकर मनुष्य सुखी नहीं रह सकता यदि उसे शान्ति अभीष्ट हो तो उसे समुद्र में रहने की तैयारी करनी चाहिए।
बात सुनने में अतिरंजित-सी लगती है किन्तु पश्चिमी वैज्ञानिकों ने उक्त बात को गम्भीरता से लिया। उक्त विचार देने के पीछे आधार इतने सशक्त हैं कि कोई भी विचारशील व्यक्ति उनसे इनकार नहीं करेगा। हमारे वातावरण को शुद्ध करने में सबसे बड़ा हाथ सूर्य का है किन्तु यह प्रदूषण जिससे जेट प्लेन रैकेटों का धुआँ भी सम्मिलित है जो सूर्य की शक्ति की एक बड़ी मात्रा ऊपर ही सोख लेता है जिससे पृथ्वीवासियों को 70 प्रतिशत ऑक्सीजन देने वाली “फीटो प्लैन्टान” वनस्पतियाँ नष्ट हो जाती हैं, कैन्सर, हड्डियों की बीमारियाँ, कोल्ड कफ आदि के विस्तार का यह सब से बड़ा कारण है। फैक्ट्रियों, वाहनों, अणु रिएक्टरों का कचरा, आइलडैम्प सब मिलाकर पहले ही पार्थिव ऑक्सीजन को नष्ट करने में तुले हुए हैं। उस पर ऑक्सीजन निर्माण का आधार ही लड़खड़ाया तब फिर कहीं ठिकाना न मिलेगा। मनुष्य समाज घुट−घुट कर मरने को विवश होगा। मनुष्य औद्योगीकरण के इस पिशाच से जितनी जल्दी छुटकारा पा सके उतना ही अच्छा, पर भेड़ियाधसान की प्रवृत्ति वैसा करने देगी, इसमें शक है अतएव आत्मरक्षा के लिये अधिकतम प्राकृतिक जीवन की बात सोचनी चाहिए।
कृत्रिमता जहाँ भी जायेगी, वहीं सत्यानाश करेगी। सिलवेट स्मिथ के सुझाव पर वैज्ञानिकों ने समुद्रों में नगर बसाने की तैयारी भी कर ली है। उनके मॉडल तैयार भी हो चुके हैं। ऐसे नगर जिनमें खेल−कूद से लेकर उत्पादन, विक्रय और प्रशासन आदि की सभी व्यवस्थायें होंगी, बसाने की योजना विचाराधीन है अभी बरात चली भी नहीं कि बिल्ली की ‘छींक’ हो गई। समुद्र विज्ञान वेत्ता डॉ. जेक्विस पीकार्ड ने चेतावनी दी है कि यदि समुद्र से छेड़छाड़ की गई तो उसके गम्भीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
आहार प्रदाय−परम्परा की कुंजी समुद्र है। डॉ. पीकार्ड का कथन है कि वायु प्रदूषण का सीधा प्रभाव समुद्र पर पड़ता है। कैलीफोर्निया से हवाई द्वीप की दूरी 2500 मील दूर है, पर हवाई द्वीप भी पूरी तरह वायु−प्रदूषण से ग्रस्त है इस तरह समुद्री आकाश पर फैलने वाले प्रदूषण विशेषकर समुद्री जहाजों से समुद्र का बड़वानल मन्द पड़ेगा। मंदाग्नि रोग पेट के गुड़गुड़ाने की तरह समुद्र गुड़गुड़ायेगा तो पर उससे भाप पैदा होना बन्द हो जायेगी। बादल छितरे हुए बनेंगे, कहीं अनावृष्टि होगी, कहीं सूखा पड़ेगा। पिछले कुछ वर्षों से ही यह बात स्पष्ट है। जब बिहार में बाढ़ का प्रकोप था तब गुजरात में अकाल, गत वर्ष उत्तरप्रदेश हरियाणा और असम में बाढ़ आई और तमिलनाडु सूखे का शिकार हुआ। यह समस्या इतनी व्यापक होगी कि उसे सम्भालना कठिन पड़ जायेगा। वर्षा का अन्नोत्पादन से सीधा सम्बन्ध है स्पष्ट है कि समुद्र पर पड़ने वाला दबाव हमारी खाद्य−व्यवस्था को नष्ट करेगा। उससे कितनी भयंकर स्थिति पैदा होगी, यह सहज ही अनुमान किया जा सकता है।
कल्पनायें यथार्थ के धरातल पर की जायें तो ही उनकी सार्थकता है। लम्बी−चौड़ी बातें करने की अपेक्षा सृष्टि को बचाने की सीधी सादी बातें विचारी जानी चाहिए अन्यथा यह संकट अपने ही सामने प्रस्तुत हो सकता है।
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