तूफानों ने अलसाये-नाविक का शौर्य जगाया। झंझावातों ने दीपक की जीवट को उकसाया॥ चलीं आंधियां तो पेड़ों ने कुछ हिम्मत दिखलाई। तभी उन्हें अस्तित्व प्रमाणित करने की सुध आई॥ सहन-शक्ति जागी सुमनों की, बर्फीले-झोंकों से। चरणों में आ गई सजगता, शूलों की नोकों से॥ हर बाधा, विपदा ने तो पौरुष का पाठ पढ़ाया। झंझावातों ने दीपक की जीवट को उकसाया॥
आने वाले विघ्न और बाधा अभिशाप नहीं हैं। संकट हरगिज भी पहले ही वाले पाप नहीं हैं॥ संघर्षों को शत्रु मानना, मात्र हमारा भ्रम है।
यह तो जीवन को जीवन को जीवट से जी लेने का क्रम है॥ संकट की सीढ़ियां चढ़ा जो, शिखरों पर चढ़ पाया। झंझावातों ने दीपक की जीवट को उकसाया॥ सुप्त-शक्तियां जागा करती हैं तो, आघातों से। बात नहीं बनने पाती, चिकनी-चुपड़ी बातों से॥ बाधाएँ आकर क्षमताओं को चुनौतियाँ देतीं। जीवन को निष्क्रियता को, नीरसता को हर लेतीं॥ जीवन का महत्व वह समझा, जिसने मूल्य चुकाया। झंझावातों ने दीपक की जीवट को उकसाया॥ सुख का क्या है मूल्य, बता सकता है दुःख का मारा। समझा सकता है प्रकाश की महिमा को, अँधियारा॥ असफलता कहती है, मूल्य सफलता का पहचानो। चेताने वालों का भी उपकार तनिक तो मानो॥ विपदाओं ने ही जीवट से जीना तुम्हें सिखाया। झंझावातों ने दीपक की जीवट को उकसाया॥
-मंगल विजय
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*समाप्त*