विगत आषाढ़ी गुरु पूर्णिमा से पुनर्गठन वर्ष के प्रयास आरम्भ हुए थे। तब से अब तक आठ महीने पूरे हो गये। पिछले वर्ष का न्यूनतम कार्यक्रम प्रत्येक पत्रिका को पाँच द्वारा पढ़ा जाना— अखण्ड−ज्योति परिजनों का दस−दस की टोलियों में गठित होना— सदस्यों के जन्म दिवसोत्सव मनाया जाना था। प्रसन्नता की बात है कि वह संकल्प बहुत हद तक पूर्ण हो चुका।
इस अवधि में अखण्ड−ज्योति परिजन दस−दस की टोलियों में गठित हो गये हैं और वे टोलियाँ अपनी स्थिति के अनुरूप आत्म निर्माण और लोकनिर्माण के रचनात्मक कार्यों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा खड़ी कर रही हैं और एक दूसरे से आगे निकलने की शर्त लगा रही हैं। टोली नायकों के जिम्मे दो कार्य प्रारम्भिक रूप में सौंपे गये थे। हर पत्रिका कम से कम पाँच अन्य लोगों द्वारा भी पढ़ी जाने लगे और प्रत्येक सदस्य का जन्म दिन एक सस्ते किन्तु भाव−भरे पारिवारिक आयोजन के रूप में सम्पन्न किया जाने लगे। प्रसन्नता की बात है कि वह दोनों अनुरोध पूरे उत्साह के साथ पूर्ण किये गये हैं और ये प्रयास लगभग पूर्ण सफलता के लक्ष्य तक पहुँच चुके हैं।
यह नगण्य से लगने वाले दो कार्य जब अपनी प्रतिक्रिया प्रस्तुत करने लगे हैं तो समझ में आता है कि गाँधी जी के चरखा चलाने और नमक बनाने जैसे दो छोटे कार्य किस प्रकार अन्ततः लम्बी पराधीनता से मुक्ति दिलाने का चमत्कार उत्पन्न कर सके। अखण्ड−ज्योति और उसकी सहयोगिनी पत्रिकाओं का परिवार इन दिनों पाँच लाख मस्तिष्कों का स्पर्श करता है। पाठकों का यह परिवार इस वर्ष के आग्रह के अनुरूप पाँच गुना बढ़ गया है। बिना अतिरिक्त प्रकाशन किये, बिना नये आधार खड़े किये अपना प्रभाव क्षेत्र की व्यापकता का यह क्रम अखण्ड−ज्योति के पिछले 40 वर्ष के जीवन−काल में कभी भी देखने को नहीं मिला।
जन्म दिवसोत्सव आन्दोलन देखने में एक छोटे से पारिवारिक हर्षोत्सव जैसा प्रतीत होता है। आये दिन तीज−त्यौहार, विवाह शादी, दावत, प्रीतिभोज का सिलसिला घरों में चलता रहता है। उन्हीं में से एक यह भी है कि किसी का जन्मदिन मना लिया जाय। हवन पूजन गीत वाद्य, स्वागत सत्कार का छोटा-सा आयोजन कोई ऐसी बड़ी बात नहीं है जिसे किसी बड़ी की संज्ञा दी जा सके। किन्तु जिस उद्देश्य के लिए, जिस तथ्यपूर्ण आधार को लेकर यह आन्दोलन खड़ा किया गया है उस पर गहराई से विचार करने के उपरान्त प्रतीत होता है कि यह तथ्यपूर्ण शुभारम्भ अभी से अपनी प्रगतिशीलता का परिचय देने लगा है। निकट भविष्य में तो इसकी महान प्रतिक्रिया इतनी बड़ी होने की सम्भावना है जिसकी कल्पना भर से ही आज हर्षातिरेक का रोमांच हो आता है।
मनुष्य की दृष्टि बहिर्मुखी है। वह वस्तुओं और प्राणियों के साथ सम्पर्क से उत्पन्न परिस्थितियों में उलझा रहता है। अन्तरंग की विभूतियों को जगाने और मनःस्थिति में प्रखरता भर देने का महत्व ही उसकी दृष्टि से ओझल रहता है। आत्म−निर्माण के सहारे इस संसार में जो कुछ श्रेष्ठ और सुन्दर है उसे सहज ही पाया जा सकता है, यह तथ्य अनजाना ही पड़ा रहता है। जीवन के सदुपयोग की समस्या अनबूझ पहेली ही बनी रहती है। इन उपेक्षित क्षेत्र का नये सिरे से पर्यवेक्षण करने और पुनर्निर्माण की योजना बनाने का जैसा अवसर जन्मदिन मनाने के आधार पर मिलता है। जिसका जन्मदिन है उसे अपनी आन्तरिक स्थिति का लेखा−जोखा लेने, भावी प्रगति का ढाँचा खड़ा करने के लिए गम्भीरतापूर्वक चिन्तन की प्रेरणा मिलती है। उत्सव के अवसर पर इसी दृष्टि से प्रवचन उद्बोधनों का क्रम चलता है। आत्म−चिन्तन, आत्म−सुधार, आत्म−निर्माण और आत्म विकास के चारों पक्ष मिलकर समग्र आत्मिक प्रगति का ढांचा खड़ा करते हैं। उस हर्षोत्सव के समय प्रस्तुत दुर्गुणों में से एक को घटाने और जिनकी कमी है उन सद्गुणों में से एक को बढ़ाने की प्रतिज्ञा ली जाती है।
यह प्रतिपादन नहीं वरन् सुनिश्चित तथ्य है जो पिछले आठ महीनों से सुव्यवस्थित रीति से अपनाये जाने के कारण व्यक्ति निर्माण का कार्य द्रुतगति से सम्पन्न करने लगा है। सूक्ष्म पर्यवेक्षण से पता चला है कि जिनके जन्मदिन मने हैं उनके जीवनक्रम में उत्कृष्टता के अंश निश्चित रूप से बढ़े हैं। इतना सरल, इतना सस्ता, इतना प्रभावोत्पादक और इतना दूरगामी परिणाम उत्पन्न करने वाला रचनात्मक कार्य अभी तक सोचा नहीं जा सका। अखण्ड−ज्योति परिवार के सदस्यों से इस वर्ष प्रारम्भ हुई यह पुण्य परम्परा समूचे प्रबुद्ध वर्ग में आँधी तूफान की तरह फैलती और लोकप्रिय बनती देखी जा सकती है। इसके सहारे विसंगठित भाव−भरे संगठन के रूप में परिणत हो रहा है। मित्र मण्डलियाँ बढ़ रही हैं और उनमें सृजनात्मक चर्चाओं, प्रेरणा और योजनाओं का उपक्रम चल रहा है। इस अभियान को इसी उत्साह के साथ आगे बढ़ाया जाता रहा तो व्यक्ति निर्माण के कार्य में आशातीत सफलता मिलने की सुनिश्चित सम्भावना है।
पुनर्गठन वर्ष के शेष महीनों में परिवार के सभी प्राणवान परिजनों को यह कहना चाहिए कि यह दोनों ही प्रवृत्तियाँ पूरी प्रौढ़ता प्राप्त कर लें। एक भी पत्रिका ऐसी न बचे जो कम से कम पाँच पाठकों द्वारा न पढ़ी जाती हो। एक भी परिजन ऐसा न बचे जिसका जन्म दिवसोत्सव न मनाया गया हो। यह दोनों कार्य संगठित रूप से, एक दूसरे के सहयोग और प्रोत्साहन देने पर ही ठीक तरह चल सकते हैं। इसके लिए आवश्यक है कि दस−दस की टोलियाँ गठित कर ली जाय। यह छोटी संस्था अपने स्वभाव सम्पर्क के लोगों में से ही बनती हैं। इनमें पद लिप्सा—आर्थिक गड़बड़ी जैसी उन विकृतियों के लिए कोई स्थान नहीं है जिनके कारण संगठनों में कलह उत्पन्न होते हैं और अवांछनीयताएँ पनपती हैं। भविष्य में अपने संगठन का रूप ही टोली पद्धति पर चलेगा। युग निर्माण का विशालकाय ढाँचा इन छोटी−छोटी इकाइयों के सहारे ही खड़ा किया जाता है। ईंटें मिलकर भवन बनाती हैं और जीवकोषों की संगठता से काया खड़ी है। अखण्ड−ज्योति के परिवार के परिजन अपना संगठन दस−दस की टोलियों में बना लें यह हमारी हार्दिक इच्छा है। वह संगठन दो कार्य करने लगे, एक तो पाँच पाठकों को पत्रिका पढ़ाने का—झोला पुस्तकालय, विचार विस्तार करने लगे। दूसरा जन्म दिवसोत्सवों की आयोजन व्यवस्था। यह कार्य नितान्त सरल है। थोड़ा−सा ध्यान, मुड़ने, महत्व समझने और राई रत्ती प्रयत्न कर लेने भर से सम्पन्न हो सकता है। जहाँ भी अखण्ड−ज्योति पहुँचती हो—जो भी उसे रुचि पूर्वक पढ़ते हों उन्हें हमारे इस अनुरोध पर ध्यान देना चाहिए कि पुनर्गठन वर्ष की अपेक्षा (1) दस की टोलियाँ गठित करने (2) पत्रिका पाँच व्यक्तियों द्वारा पढ़ी जाने (3) जन्म दिवसोत्सव की सुनियोजित योजना बन जाने, की है। यह तीनों कार्य जहाँ न हो पाये हों वहाँ आरम्भ किये जायँ और जहाँ चल रहे हो वहाँ उनका कार्य क्षेत्र विस्तृत किया जाय। अपने समीपवर्ती क्षेत्र में जहाँ भी अखण्ड−ज्योति पहुँचती हो—प्रबुद्ध परिजनों को मिशन के प्रतिनिधि के रूप में वहाँ पहुँचना चाहिए और इन तीनों ही प्रचलनों के आरम्भ एवं अभ्यस्त कराने के लिए भाव−भरा प्रयत्न करना चाहिए। गायत्री जयन्ती जेष्ठ सुदी 10 गंगा दशहरा के दिन पड़ती है। उस दिन अँग्रेजी महीने के हिसाब से 16 जून पड़ती है तब तक पुनर्गठन वर्ष के अन्तर्गत आरम्भ किये इस छोटे से बीजारोपण को अंकुरित होने और हरे−भरे पौधे के रूप में विकसित होने का अवसर मिल ही जाना चाहिए।
----***----