युग−गायकों की अभिनव शिक्षण व्यवस्था!

April 1978

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हर शाखा अपने यहाँ से एक शिक्षार्थी ही भेजने का प्रयत्न करे :−

अशिक्षित एवं पिछड़े हुए भारत की बहुसंख्यक जनता छोटे देहातों में रहती है। असली भारत यही है। इस वर्ग के ऊँचा उठाने पर ही देश की वास्तविक प्रगति निर्भर है। लोकशिक्षण तो सभी वर्गों का करना है, पर हमारा विशेष ध्यान पिछड़ेपन को दूर करने पर केन्द्रित होना चाहिए। नैतिक, बौद्धिक और सामाजिक क्रान्ति की लाल मशाल का प्रकाश इन क्षेत्रों को आलोकित कर सके तो आज का पिछड़ापन कल प्रगतिशीलता में परिणित हो सकता है और समुन्नत देशों की तरह हमारा ग्रामीण क्षेत्र भी अपनी शोभा सुषमा से समृद्धि और सुख−शान्ति से भरा पूरा दिखाई दे सकता है।

जिनका बौद्धिक स्तर ऊँचा है उन शिक्षित लोगों को राजनीति, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र आदि के सिद्धान्तों के सहारे सारगर्भित प्रवचन दिये जा सकते हैं और सामयिक समस्याओं के समाधान का पथ प्रदर्शन किया जा सकता है; किन्तु शिक्षा से शून्य मस्तिष्कों में तो धर्म परम्परा के सहारे ही उपयोगी परिवर्तन किये जा सकते हैं और आवश्यक सुधारों की शिक्षा दी जा सकती है। अस्तु युग निर्माण के मिशन का ढाँचा धर्म−तन्त्र से लोकशिक्षण प्रक्रिया के सहारे खड़ा किया गया है। यहाँ एक बात और समझने योग्य है कि विवेचनात्मक प्रवचनों की अपेक्षा सरस और मधुर संगीत के सहारे छोटे−छोटे प्रसंग प्रस्तुत करते हुए सर्वसाधारण को जितनी अच्छी तरह अभीष्ट परिवर्तन के लिए प्रशिक्षित और सहमत किया जा सकता है, उतना और किसी उपाय से नहीं। बाल, वृद्ध, एवं नारी वर्ग की बौद्धिक स्थिति और भी कमजोर होती है, उनके लिए वह उपाय है जिससे अल्पशिक्षित एवं अविकसित वर्ग को सरलतापूर्वक उपयोगी प्रेरणा देकर प्रभावित एवं अनुप्राणित किया जा सकता है।

शिक्षित वर्ग को भी भावभरे संगीत में कम अभिरुचि नहीं होती। भावनाओं का उभार और स्वर लहरी का रसास्वादन रूखे और नीरस लोगों में भी सरसता उत्पन्न करता है। सर्प और हिंसक जैसे प्राणी तक स्वर लहरी पर मन्त्र मुग्ध रह जाते हैं। दुधारू पशु अधिक दूध देते और पेड़ पौधे अपेक्षाकृत अधिक बढ़ते तथा फलते फूलते हैं। मानसिक एवं स्नायविक रोगों में तो संगीत एक अमोघ उपचार की तरह उपयोगी सिद्ध हुआ है। भक्ति प्रयोजनों में गीत कीर्तन की महिमा अधिक अच्छी तरह समझी गई है और धर्म प्रचार में उसका अत्यधिक प्रयोग होता है। रामायण के लोकप्रिय होने का एक बड़ा कारण उसका छन्द बद्ध—लय बद्ध होना भी है। वेदशास्त्र ही नहीं कथा और चिकित्सा ग्रन्थ तक संस्कृत भाषा में कविता रूप में, गायन के उपयुक्त बनाकर लिखे गये हैं।

युग परिवर्तन की पृष्ठभूमि है—जनमानस का परिष्कार। ज्ञानयज्ञ का, विचार−क्रान्ति अभियान इसी प्रयोजन के लिए अपनी ऊर्जा का वितरण कर रहा है। इसे घर−घर में जन−जन तक पहुँचाना है। इसके लिए लेखनी एवं वाणी के अतिरिक्त तीसरा अत्यन्त प्रभावोत्पादक माध्यम है—संगीत। इसके लिए पिछले दिनों प्रयोग होते रहे हैं वे अपने उद्देश्य की पूर्ति में सफल भी हुए हैं और लोकप्रिय भी बने हैं। ग्रामोफोन के रिकार्ड और टेपरिकार्डों द्वारा युग संगीत ने अपना प्रभाव मिशन के क्षेत्रों में दूर−दूर तक पहुँचाया है। देव कन्याओं के संगीत ने जनमानस में असाधारण हलचल उत्पन्न की है। इन दिनों शाखाओं के वार्षिकोत्सवों में इसका समुचित उपयोग न होने के कारण कुछ फीकापन रहा। अस्तु गर्मियों में इन्हीं दिनों हो रहे क्षेत्रीय सम्मेलनों को अधिक प्रभावोत्पादक बनाने के लिए देव कन्याओं के पाँच जत्थे पाँच मोटरों द्वारा देश भर में भेजे गये हैं। 1 अप्रैल से 15 जून तक के अधिकांश कार्यक्रमों में देव कन्याओं के संगीत पहुँचाने का प्रबन्ध किया गया है। शान्ति कुँज के एक वर्षीय कन्या प्रशिक्षण में संगीत शिक्षा अनिवार्य रखी गई है। इसका कारण कला कौशल, या गायन वादन का मनोरंजन नहीं वरन् लोकरंजन द्वारा लोकमंगल ही प्रधान उद्देश्य है। इस माध्यम से हुए युग संगीत का प्रभाव देखकर उसकी उपयोगिता सर्वत्र एक स्वर से स्वीकार की गई है।

मिशन का विस्तार जिस तूफानी गति से हो रहा है उसे देखते हुए यह निश्चय किया गया है कि विचारक्रांति के लिए युग संगीत को भी उतना ही महत्वपूर्ण स्थान दिया जाय जितना कि अब तक वाणी और लेखनी को दिया जाता रहा है। इस प्रयोजन के लिए शान्ति कुंज में युग संगीत का प्रशिक्षण देने और युग गायक तैयार करने की योजना बनाई गई है। कन्याओं की संगीत शिक्षा एक वर्ष की है, किन्तु युग गायकों का प्रशिक्षण छह−छह महीने का रखा गया है। इसके वर्ष में दो सत्र हुआ करेंगे। प्रचार वर्ष 1 अक्टूबर से आरम्भ होता है। वर्षा समाप्त होते ही शाखाओं के वार्षिकोत्सवों, गायत्री यज्ञों एवं युग निर्माण सम्मेलनों का कार्य आरम्भ हो जाता है। इस बार भी वही क्रम चलेगा। अक्टूबर में युग गायक तैयार मिल सकें इसके लिए प्रथम सत्र नवीन विक्रमी सम्वत्सर चैत्र नवरात्रि 8 अप्रैल 78 से प्रारम्भ किया जा रहा है। चूँकि निश्चय देर से किया गया और सूचना स्वल्पकालीन दी जा रही है इसलिए शिक्षार्थियों की भर्ती पूरी अप्रैल तक चलती रहेगी।

सूचना न मिल पाने या समय उपलब्ध न होने से जो लोग अप्रैल के प्रथम सत्र में प्रवेश न ले पायें उन्हें दूसरे सत्र के लिए आवेदन पत्र भेजकर स्थान सुरक्षित करा लेना चाहिए। दूसरा सत्र अक्टूबर 78 से प्रारम्भ होगा और मार्च 79 तक चलेगा। प्रथम सत्र में प्रशिक्षितों को अक्टूबर में क्षेत्रीय कार्यक्रमों में भेजने की रूपरेखा बनाई जायेगी।

न्यूनतम 18 वर्ष और अधिकतम 40 वर्ष की आयु के स्वस्थ सच्चरित्र एवं अनुशासन प्रिय शिक्षार्थी इसमें भर्ती किये जा सकेंगे। भोजन व्यय शिक्षार्थियों को स्वयं ही वहन करना होगा जो 70) मासिक है। निवास, रोशनी, सफाई फर्नीचर आदि की, वाद्य यन्त्रों की, शिक्षकों की निःशुल्क व्यवस्था है। कन्या विद्यालय की जो छात्राएं अपने हारमोनियम तबले स्वयं खरीद लेती हैं वे पूरे समय अपना अभ्यास कर लेती है और अपेक्षाकृत अधिक जल्दी अधिक प्रवीणता प्राप्त कर लेती हैं। जो नहीं खरीद पातीं उन्हें नम्बर से बाजे मिल पाते हैं। फलतः उनके अभ्यास में उतनी ही कमी रह जाती है। हर छात्र को वाद्य यन्त्रों का एक−एक पूरा−पूरा सैट दे सकना विद्यालय की वर्तमान व्यवस्था में सम्भव नहीं है। अतः जो छात्र अपने हारमोनियम तबले की स्वतन्त्र व्यवस्था कर सकेंगे वे अधिक प्रगति कर सकेंगे। अन्य वाद्य यन्त्र सस्ते होने के कारण यहाँ पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हैं।

एक बात स्मरण रखने योग्य है—संगीत हर किसी को नहीं आ सकता। जिनके गले मधुर हैं—जिनके मस्तिष्क में स्वर ताल को पकड़ सकने के बीजांकुर है उन्हें ही सफलता मिलती है। अन्यथा परिश्रम बेकार चला जाता है। अस्तु भर्ती के लिए आवेदन उन्हीं को करना चाहिए जिनकी संगीत में पूर्ण रुचि रही है, जिनका कण्ठ मीठा है, जिन्हें पहले से भी थोड़ी बहुत जानकारी है। जो प्रयोगात्मक रूप से आना चाहें वे अपनी स्थिति का परीक्षण करके देखने के लिए एक महीना उसके लिए ठहरें। यदि गाड़ी आगे चले तो रुकें तो अन्यथा वापिस चले जायें।

इस संगीत शिक्षा को प्राप्त करने वाले छात्रों से युग निर्माण शाखाओं को स्थानीय आयोजनों में अच्छी सहायता मिलेगी। उन्हें गायक बाहर से नहीं ढूँढ़ने पड़ेंगे। कन्या−विद्यालय की छात्राएँ तो हर जगह नहीं जा पातीं और उनके विवाह भी जल्दी ही हो जाते हैं। अस्तु शाखाओं को उनका उतना लाभ नहीं मिल पाता जितना कि प्रस्तुत योजना के अन्तर्गत प्रशिक्षित शिक्षार्थियों द्वारा मिल सकेगा। इस आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए हर शाखा को अपने यहाँ से इस उद्देश्य को पूरा कर सकने वाले शिक्षार्थी भिजवाने का प्रयत्न करना चाहिए।

कुशल युग गायकों का केन्द्र को भी बड़ी संख्या में आवश्यकता पड़ेगी अस्तु जो अपना समय इसी प्रयोजन के लिए देना चाहें उनके निर्वाह आदि का प्रबन्ध भी मिशन की ओर से किया जा सकेगा। इस प्रश्न पर तब विचार होगा, जब छः महीने की शिक्षा अपने खर्च से पूरी कर ली जायगी और उनकी सत्पात्रता का सन्तोष हो जायगा।

नया सत्र जल्दी आरम्भ होने जा रहा है। अस्तु इस सत्र में जिन्हें आना हो, जिन्हें भेजा जाना हो उनकी शारीरिक मानसिक, पारिवारिक, शिक्षा, स्वभाव, आयु, पिछला जीवनक्रम शान्तिकुंज भेजकर स्वीकृति जल्दी ही प्राप्त कर ली जाय। बिना स्वीकृति के कोई न आवे।

संगीत शिक्षा के अतिरिक्त युग गायक शिक्षा के छात्रों के व्यक्तित्व एवं दृष्टिकोण को परिष्कृत करने का, मिशन की गतिविधियों से परिचित करने का, सेवा क्षेत्र में अधिक प्रखरता परिचय दे सकने का शिक्षण क्रम भी साथ साथ ही चलना रहेगा। गायन के साथ−साथ भाषण कला की कक्षाएं भी चलेंगी।

आशा की जानी चाहिए कि इस प्रशिक्षण को प्राप्त छात्र एक अत्यन्त प्रभावोत्पादक कला का अभ्यास करके आत्मोल्लास एवं जन−कल्याण का दोहरा लाभ प्राप्त कर सकने में सफल बन सकेंगे।

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