अरब में एक पहुँचे हुए फकीर रहते थे− नाम था अल्लामा इंशा। प्रख्यात था कि उनके इलाज से कठिन रोगों के रोगी अच्छे हो जाते हैं।
बगदाद के एक सरदार सिर दर्द की बीमारी से बहुत दुःखी थे। उन्हें चारपाई पर छटपटाते हुए ही दिन गुजारना पड़ता था। बहुत इलाज कराने पर भी जब कोई लाभ न हुआ तो लोगों न उसे अल्लामा इंशा की ही दवा लेने के लिए कहा।
सामन्त ने अपने गुमाश्ते बढ़िया सवारी लेकर फकीर के पास भेजे और प्रारम्भिक भेंट धन देने के अतिरिक्त इलाज का भारी इनाम मिलने का भी सन्देश भिजवाया।
गुमाश्ते नियत स्थान पर पहुँचे तो वहाँ एक हृष्ट−पुष्ट ऊँट चराने वाले के अतिरिक्त और कोई दिखाई न पड़ा। उनने उसी से सन्त अल्लामा का पता पूछा। ऊँट चराने वाले ने कहा− मैं ही वह फकीर हूँ। इस पर उन्हें बहुत अचम्भा हुआ। इतना बड़ा सन्त और चिकित्सक ऊँट चराने जैसा काम करे, इस जिज्ञासा को उन्होंने प्रस्तुत किया तो अल्लामा ने इतना ही कहा− “ मैं पैदल चलने को शरीर और मन की श्रेष्ठ साधना के रूप में ही अपनाये हुए हूँ।”
सरदार के इलाज के लिए चलने का अनुरोध जब गुमाश्तों ने किया तो उनने इतना ही उत्तर दिया। मैं किसी मरीज के घर नहीं जाता। उन्हें ही मेरे यहाँ पैदल चल कर आना पड़ता है। दूत निराश होकर वापिस लौट गये।
सरदार के पास जब कोई और चारा न रहा तो उसने पैदल चल कर फकीर तक पहुँचने का निश्चय किया और कई हफ्तों में उतनी दूर की मंजिल पार करके चिकित्सक तक पहुँचा।
अल्लामा ने मरीज को भली प्रकार देखा परखा और उसे एक कीमती दवा की पुड़िया देते हुए कहा इसकी एक सौ खुराकों का प्रयोग करने पर आपका मर्ज जरूर अच्छा हो जायगा। उस दवा के प्रयोग की विधि यह बताई कि जब माथे पर पसीना आवे तब एक पुड़िया खोल कर उसे सिर पर मल लिया जाय।
निर्देश के अनुसार सरदार को वापिस भी पैदल ही लौटना पड़ा। पसीना सिर पर निकले इसका एक ही उपाय था तेज चाल से यात्रा करना। उसने वही किया घर लौटने में उसे बीस दिन लगे। जब तक सिर पर पसीना न निकलना तब तक उसे चलते ही रहना पड़ता। आखिर दवा का प्रयोग तो तभी होना था जब सिर पर पसीना निकले।
घर लौटने तक सरदार का सिर दर्द पूरी तरह अच्छा हो गया। बची हुई दवा का क्या किया जाय? इस प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने के लिए उसने अपने गुमाश्ते फिर सन्त के पास भेजे। अल्लामा ने हँसते हुए कहा। — “ वह दवा मामूली मिट्टी भर थी, उसे फेंक दिया जा सकता है। असली इलाज तो लम्बा पैदल सफर करना और उसी तरह वापिस लौटना था।
फकीर ने गुमाश्तों को पैदल चलने के लाभ समझाये और कहा अपने सरदार तथा उनके साथियों से कहना पैदल चलने की आदत छोड़ देने से ही लोग मरीज बनते हैं यदि उन्हें अपना शरीर और मन निरोग रखना है तो मेरी तरह पैदल चलने की आदत डालें और सदा के निरोग रहने का लाभ उठायें।
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