संध्या के समय एक उद्यान में घूम रहे थे (kahani)

April 1978

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों के साथ संध्या के समय एक उद्यान में घूम रहे थे। उद्यान में ही स्थित एक सुन्दर सरोवर में खिल रहे कमल पुष्पों को देख बुद्ध आनन्द मग्न हो गये, इसी बीच एक शिष्य ने सरोवर के पास जा एक पुष्प तोड़ लिया व भगवान् को भेंट किया बुद्ध ने कहा—”वत्स यह तुमने ठीक नहीं किया किन्हीं अन्य व्यक्तियों द्वारा किये परिश्रम से लगाये गये इन पुष्पों को तोड़ने का तुम्हें क्या अधिकार? यह पाप है।” शिष्य ने अपनी त्रुटि स्वीकार कर क्षमा याचना की।

दूसरों ही क्षण एक व्यक्ति आया, वह निर्दयतापूर्वक पुष्पों को तोड़कर फेंकने लगा, भगवान् ने उस व्यक्ति से कुछ नहीं कहा, वे शान्त बने रहे। शिष्य ने पूछा, “भगवान् आपको अर्पित करने के उद्देश्य से एक फूल तोड़ने पर तो आपने रोका और यह निर्दय व्यक्ति अनेक पुष्पों को तोड़ सरोवर की शोभा बिगाड़ रहा है उससे आप कुछ नहीं कहते?” बुद्ध ने कहा—”वासना तृष्णा में डूबे व्यक्ति कोई अनुचित करते हैं तो यह उनका अज्ञान है, परन्तु धर्म प्राण, विवेकशील व लोकशिक्षण के व्रती यदि ऐसा कार्य करें तो यह पाप ही है। लोकसेवी का आचरण अपने स्वयं के लिए व समाज के लिए श्रेष्ठ व ज्ञान सम्मत रहना अनिवार्य है।

----***----


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118