हकीम लुकमान (kahani)

April 1978

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

हकीम लुकमान बड़े तत्वज्ञानी थे। बचपन में वे गुलाम थे। अपने मालिक की मर्जी के अनुसार ही चला करते थे। वे दिन रात मालिक की सेवा में ही गले रहते थे। मालिक ने एक दिन लुकमान को जानबूझ कर एक कड़वी ककड़ी खाने को दी व कहा, “लो यह ककड़ी खाओ।” मालिक ने सोचा था कि लुकमान इसे चखते ही फेंक देगा व प्रथम ग्रास को थूक देगा। मगर यह क्या? लुकमान वह पूरी कंकड़ी बिना मुँह बनाए खा गए। उनके मुँह के हाव-भाव ने ऐसा भी न महसूस होने दिया कि ककड़ी उन्हें कड़वी लगी।

मालिक ने पूछा, “वह ककड़ी तो कड़वी थी उसे तू पूरी ही खा कैसे गया?” लुकमान ने कहा, “मेरे अच्छे मालिक आप मुझे रोज ही खाने-पीने की कितनी चीजें देते हैं, उन्हीं के सहारे मेरा जीवन चल रहा है व आपके ही अनुदान से मैं इतना सुख प्राप्त करता आ रहा हूँ! आपने मुझे जब सदैव इतनी सारी अच्छी वस्तुएँ दीं व उन्हें मैंने स्वीकार कर अपना जीवन चलाया तो आज यदि कड़वी चीज आ गई तो उसे भी मैं स्वीकार क्यों न करता?” लुकमान ने कहा, “मालिक मुझे तो तेरी बगिया में रहना है मुझे तो तेरे फूलों से भी उतना ही प्यार है जितना तेरे काँटों से।”

मालिक बड़ा उदार हृदय व समझदार था, उसने बात समझी और वह विचार करने लगा “सच है उस मालिक ने हमें जन्म दिया, हमारा पालन किया व तरह-तरह के अनुदान देकर हमें इतने सुख में रखा तो यदि कभी-कभी हम विपत्तियों में पड़ जायें व हमारे जीवन में प्रतिकूलताएँ आवें तो उन्हें प्रभु का प्रसाद मानकर स्वीकार करना चाहिए। मालिक ने लुकमान से कहा, “तुमने मुझे बड़ा सबक सिखाया है कि जो परमात्मा हमें तरह-तरह के सुख देता है, उसके हाथ से अगर कभी दुःख भी मिले तो उसे खुशी से भोगना चाहिए।”

मालिक ने लुकमान का बड़ा सम्मान किया व उसी दिन लुकमान को आजाद कर दिया।

----***----


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118