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April 1973

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खून की नदियाँ बहाना आसान है पर एक बूँद आँसू सुखाना बहुत मुश्किल है -बायरन

आइन्स्टीन एक प्रतिभाशाली वैज्ञानिक, अमेरिकन सरकार को उनकी विद्वता का इतना विश्वास था कि उन पर लाखों रुपया यों ही खर्च कर दिया जाता है। उनके मस्तिष्क में तैयार ज्ञान और वह जानकारियाँ, जिनके कारण अमेरिका एक सर्व शक्तिशाली राष्ट्र बन रहा था, किसी और के हाथ न लग जायें इसके लिये आइन्स्टीन के पीछे सदैव जासूस लगे रहते थे। सुविधा के लिये उनके लिए एक अलग ही कालोनी बसाई थी। आइन्स्टीन उसी में घूम सकते थे, उसी के पार्कों का आनन्द ले सकते थे पर उनके व्यक्तित्व आचरण के अनुगमन की बात आज संसार के लोगों में वैसी नहीं है जैसी अब्राहम लिंकन, सन्त सुकरात, गाँधीजी, लूथरकिंग आदि के प्रति है। यह उदाहरण हमें बताते हैं कि नैतिकता ज्ञान से भी बड़ी आवश्यकता है।

कुत्ता सबसे हीन जानवर माना जाता है। उसकी तुलना दे दी जाये तो मनुष्य मरने मारने पर उतारू हो जाता है। एक प्रश्न है कि तब भी लोग उसे क्यों पालते हैं? अमेरिका और इंग्लैण्ड में तो कुत्तों पर हजारों रुपये तक खर्च कर दिये जाते हैं। यह सम्मान उसके एक ही गुण “स्वामिभक्ति” पर दिया गया है। शेर बड़ा वीर, साहसी और सुन्दर जीव है पर उसके पालने का परिणाम यह होगा कि वह एक दिन में घर के लोगों को खाकर जंगल भाग जायेगा। नैतिकता यों गुणों का सर्वतोमुखी विकास है उसकी स्वल्प मात्रा भी सुख प्रदान करती है पर अनीति का एक अंश भी सारे मनुष्य समाज को संकट में डाल देता है। इसलिए नीति परक साधनों के विकास और सामंजस्य की आवश्यकता आदि से ही रही है।

शान्ति और मानवता कोई आज की ही माँग या आवश्यकता नहीं हैं, यह तो एक अनादि आवश्यकता है जो कई बार पूरी हुई और कई बार बिगड़ी। पर इतिहास ने आज की परिस्थितियों में साफ-साफ सोचने का रास्ता बना दिया है, इसलिये यदि युग में द्वन्द्व और अशान्ति का बाहुल्य है तो शान्ति और मानवता की प्रतिष्ठा की सम्भावनायें उससे भी अधिक है।

इतिहास का हर पिछला पन्ना यह बताता है कि जिस युग में नैतिकता के स्तम्भ दृढ़ और शीर्षस्थ रहे विश्व सुख, शान्ति और चैन अमन से जिया, जबकि अनैतिकता और स्वार्थ की प्रवृत्ति जब भी बड़ी अशान्ति तब-तब बढ़ती रही। राम, कृष्ण, गौतम, बुद्ध, शंकराचार्य, ईसामसीह, सुकरात और स्वाइत्जर आदि महापुरुषों के समय में हम नैतिकता का विकास देखते हैं इसलिये उनके बाद संसार में स्पष्ट शान्ति के दर्शन हुए पर चंगेज खाँ, हिटलर, मुसोलिनी और सिकन्दर का समय ऐसा रहा जब लोगों की व्यक्तिगत महत्त्वाकाँक्षाएँ अनियंत्रित हुई और उन्होंने समाज की शान्ति-व्यवस्था को उजाड़ कर रख दिया।

इन दिनों परिस्थितियों के निष्कर्ष बताते हैं कि मनुष्य यदि नैतिकता को चरम निष्ठा तक बनाये रखना स्वीकार कर ले तो न केवल व्यक्तिगत जीवन को वरन् सारे समाज को शान्तिपूर्ण बना सकता है। ऐसे व्यक्तियों का बाहुल्य जिस दिन हो जायेगा जो नीति के मामले में अपनी किसी भी महत्त्वाकाँक्षा को कुचल डालने से हिम्मत न हारेंगे तो इस धरती का दृश्य ही कुछ और रहेगा। उस दिन यहाँ सर्वत्र सुख, ही सुख शान्ति ही शान्ति होगी।

संसार को शान्ति की सन्देश सुनाने के लिए एक दिन गाँधी जी की समाधि को नमन करके विश्व यात्रा पर निकल पड़े। न इसके पास पैसा था, न सवारी, न कोट न यात्रा के उपयुक्त सामान।

पाकिस्तान पहुँचे तो स्वागत हुआ। खैर के दरे को पार करते हुए अफगानिस्तान पाकिस्तान, ईरान, पार करते हुए रूस पहुँचे। यह वहाँ पूरे चार महीने गाँव-गाँव घूमे। फिर पोलैण्ड फिर जर्मनी वे लोग जा पहुँचे। फ्राँस सरकार ने इस प्रकार आन्दोलन करने की इजाजत नहीं दी और गिरफ्तार करके इंग्लैण्ड के सीमा पर छोड़ दिया। वहाँ वट्रेन्ड रसेल जैसे शान्ति वादियों ने इनका भारी स्वागत किया। इसके बाद वे अमेरिका पहुँचे वहाँ उन्होंने छः महीने उस महाद्वीप में अपनी प्रचार यात्रा चलाई। जापान में आठ हजार मील का सफर उन्होंने किया इस प्रकार अपनी यात्रा पूरी कर के गाँधी जी की समाधि पर पुनः लौट आये।

इन शान्ति यात्रियों के नाम है-श्री सतीश कुमार और श्री प्रभाकर मेंनन।


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