दोमुँहा(kahani)

April 1973

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पोस्ट एलिजाबेथ के अजायब घर में एक ऐसा सर्प भरती किया गया था जिसके एक ही धड़ में पास-पास दो मुँह थे। एक दिन दोनों झगड़ पड़े और दोनों ने एक दूसरे को बुरी तरह घायल कर दिया। चौकीदार के बीच बचाव करने पर इस समय तो झगड़ा शान्त हो गया, पर शाम को अवसर पाते ही एक ने दूसरे पर प्रतिशोधात्मक आक्रमण किया और जम कर लड़ाई हुई । सवेरे देखा गया कि दोनों मुँह घायल थे और एक ने दूसरे को बुरी तरह चबा डाला था। बेचारा सर्प मरा हुआ पड़ा था।

ठीक ऐसे ही एक दुमुँहा सर्प न्यूयार्क के अजायबघर में रखा गया था। यह किंग स्नेक जाति से लड़ न पड़े इसलिए चौकीदार उनके बीच में एक मोटे कार्डवोर्ड का टुकड़ा लगाये रहता था। इतने पर भी यह कठिनाई बनी ही रहती थी कि एक मुँह एक दिशा में चलना चाहता था और दूसरा मुँह दूसरी दिशा में । ऐसी स्थिति में धड़ की जो खींचतान भरी दुर्गति होती थी उसे देखते हुए उस अभागे पर दर्शकों को दया ही आती थी।

श्याम देश में एक इसी प्रकार का दुमुँहा कछुआ था। दोनों सिर जब दो दिशाओं में चलना चाहते तो पैरों की लड़खड़ाहट और खींचतान से उसे भारी मुसीबत का सामना करना पड़ता था और प्रायः एक ही स्थान पर आगे पीछे खिंचता घिसटता वहीं उलटा पुल्टा होता रहता था।

दुमुँहा सर्प की बात बड़ी अचम्भे की प्रतीत होती है और एक ही शरीर के अंग एक दूसरे के लिए प्राण घातक सिद्ध हों अजीब लगती है पर ध्यान से देखने पर हम स्वयं भी इसी प्रकार के दुमुँहे सर्प हैं। अपने भविष्य को अपने समाज को नष्ट करने वाली प्रवृत्तियाँ अपना कर हम भी तो अपना ही सर्वनाश नियोजित करते हैं।


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