मृग मरीचिका में भटकती हमारी भ्रान्त मनःस्थिति

April 1973

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जो कुछ हम देखते और समझते हैं वह सब सही ही नहीं होता। उसमें भ्रम का भी एक बहुत बड़ा अंश जुड़ा रहता है। इसलिए मोटे रूप से जो कुछ समझते हैं उसी में यथार्थता नहीं मान लेना चाहिए वरन् वस्तुस्थिति जानने के लिए गहराई तक प्रवेश करना चाहिए।

मृग मरीचिका की बात प्रसिद्ध है। सूखे रेगिस्तानों में खार की परतें रेत के ऊपर उभरी होती है। रात को चन्द्रमा की चाँदनी में वे स्वच्छ जल से भरे तालाब जैसी दीखती हैं। प्यासे हिरन वहाँ अपनी प्यास बुझाने को आते हैं पर मिलता कुछ नहीं। दूसरी ओर नजर उठाकर देखते हैं तो वैसे ही जल दृश्य फिर देखते हैं, वे उधर दौड़ते हैं पर मिलता वहाँ भी कुछ नहीं। इस प्रकार के भ्रम जंजाल में फँसे प्यास बुझाने के स्थान पर दौड़-धूम के अतिरिक्त थकान से ग्रसित होते जाते हैं।

कस्तूरी हिरन के बारे में भी ऐसी बात है। अपनी नाभि में से निकलने वाली सुगन्ध को वह अन्यत्र समझता है और उसका आनन्द लेने के लिए दिशा-दिशा में दौड़ता है परन्तु अन्त तक असफल ही बना रहता है।

पतंगे दीपक पर उसका रूप दर्शन करने के लिए दौड़ते हैं और पंखों को जला बैठते हैं। चकोरी की चन्द्रमा का प्रतीक समझ कर अंगार को खाने और अपनी चोंच जला लेने की किम्वदन्ती प्रसिद्ध है। कुत्ता सूखी हड्डी चबाते समय अपने जबड़े में निकलने वाले रक्त को हड्डी का रस समझता है और अपने शोषण को बाहर की उपलब्धि मानता है। ऐसे असंख्य उदाहरण अल्पविकसित पिछड़े प्राणियों के हैं।

सिसली द्वीप और इटली की मुख्य भूमि के मध्य अवस्थित मैसीना जल मउरु मध्य के आकाश में ऐसे दृश्य दिखाई पड़ते रहते हैं जिन्हें जादुई सृष्टि-तिलस्मी या मृग-मरीचिका कह सकते हैं। आकाश में तैरते हुए घर, महल, पेड़, यहाँ तक कि पशु और मनुष्य भी सीख पड़ते हैं। इटली की भाषा में इन्हें ‘पाता मोर गाना’ कहते हैं। उस क्षेत्र के निवासियों की मान्यता है यह जादुई रचना ‘मोर गाना’ नामक अप्सरा द्वारा की जाती है।

ऐसी ही मृग मरीचिका कभी-कभी जापान की पश्चिमी तटवर्ती तोयामा खाड़ी के ऊपर भी देखी जाती हैं उत्तरी अमेरिका की विशाल झीलों के ऊपर भी अक्सर ऐसे ही तिलस्मी दृश्य देखने को मिलते हैं।

भूत-प्रेतों की मान्यता के दिनों इस अजूबे का समाधान सरल था पर अब इस विज्ञान वादी युग में हर बात की यथार्थता जानने का प्रयत्न किया जाता है। विशाल जल राशि के भूतल गर्भ में कई बार छुटपुट विस्फोट होते रहते हैं उसमें गैसें ही नहीं कितने ही विचित्र तथा दूसरे पदार्थ भी मिले रहते हैं। यह उछलकर जल की सतह के ऊपर आते हैं, तो सूर्य की किरणें-वायु चक्र तथा विशिष्ट विद्युत तरंगों का एक असाधारण कुहरा बन जाता है। इसके छितराते हुए मेघ खण्ड आँखों को भ्रम में डालते हैं। उस उथल पुथल में ऐसा आभास होता है मानो कोई जीवधारी आकृतियाँ एवं भवन उद्यान जैसी रचनाएँ, आकाश में तैर रही हैं। वायुयानों में टेलीविजन यन्त्रों में से वस्तु स्थिति मालूम की गई तो यह सत्य सिद्ध हुए, यह दृश्य मृग मरीचिका भर उनका वैसा अस्तित्व वही जैसा कि आँखों को दीख पड़ता है।

तृष्णाग्रस्त होकर सम्पत्ति के संग्रह में उचित अनुचित का भेद छोड़कर निरन्तर संलग्न रहना लगना तो अच्छा है पर उसमें सार कुछ नहीं। निर्वाह के लिए जितना आवश्यक है उतने का ही उपयोग किया जा सकता है शेष तो जहाँ का तहाँ ही पड़ा रहता है। बालू में से तेल निकालने की भ्रान्ति उपहासास्पद मानी जाती है। पर जब वासना और तृष्णा में से आनन्द और संतोष पाने का प्रयत्न करते है, तो वस्तुतः यह मृग मरीचिका जैसी भ्रान्तिग्रस्त मनः स्थिति का ही परिणाम है।


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