दीपक का स्नेह समाप्त हो गया (kahani)

April 1973

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दीपक का स्नेह समाप्त हो गया । रुई की बाती चहुँ ओर धीमा-धीमा प्रकाश छोड़ रही थी। और अब अन्तिम लौ तीव्रता से चमकी और शून्य में विलीन हो गई।

बुझते दीपक के सम्मुख एक प्रश्न था-बन्धु अभी तक तो तुम मन्द-मन्द जल रहे थे और अब एक साथ अपनी तीव्र लौ से वातावरण को आलोकित कर बुझ गये। ऐसा क्यों?

दीपक ने धूम्र की वक्र रेखा बनाते हुए कहा-अन्तिम समय भी मेरा प्रयास यह था कि सम्पूर्ण शक्ति लगाकर इतना प्रकाश फैला दूँ कि यदि अन्धकार में कोई जीव भटक रहा हो तो उसे मार्ग दिखाई दे जाए।’


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